Tuesday, March 20, 2012

शर्मनाक : यात्री के ऊपर किया पेशाब ...

क हैरान करने वाली घटना की जानकारी आपको देता हूं। इसकी जानकारी तो मुझे   कल ही यानि सोमवार को शाम मिल गई थी, पर यकीन नहीं हो रहा था कि राजधानी जैसी ट्रेन के एसी 2 कोच में ऐसी घटना भी हो सकती है। पर जब पूरे मामले की जानकारी हुई तो तृणमूल कांग्रेस और  उसके नेताओं से नफरत सी हो गई है।

ममता बनर्जी फायर ब्रांड नेता हैं, ये सभी जानते हैं। सबको पता है कि रेलमंत्री कोई भी हो राज ममता का ही चलेगा। इसलिए पूरी पार्टी इस समय बेलगाम हो गई है। जब नेताओं का ये हाल है तो नेताओं के कारिंदे तो दो कदम आगे चलेंगे ही। हुआ क्या, पूरा वाकया बताता हूं। हावड़ा दिल्ली राजधानी पर टीएमसी के एक सांसद सफर कर रहे थे, वो एसी 1 में थे, जबकि उनका गनर एसी 2 में था। रात में उसने ट्रेन में ही शराब पी और हंगामा करता रहा। कुछ लोगों ने शोर मचाने से रोका तो वह नाराज हो गया। 

बात यहीं तक होती तो गनीमत थी, देर रात गनर को टायलेट जाना था, बेलगाम गनर ने उस आदमी के ऊपर पेशाब करने लगा, जिसने उसे शोर  मचाने से रोका था। जब उसने शोर मचाया तो गनर ने अपनी सर्विस रिवाल्वर उसके ऊपर तान दी, और कहा कि शोर मचाया तो यहीं ढेर कर दूंगा। बहरहाल इस शोर शराबे में और यात्री भी उठ गए और सभी ने टीटीई को बुलाकर कम्पलेंट दर्ज कराई। लेकिन ये गनर टीएमसी सांसद का था, तो रेल कर्मचारी कोई भी कार्रवाई करने से पीछे हट गए।

बाद में भुक्तभोगी पैंसेजर ने इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर पूरे मामले की जानकारी दी और गनर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। चलिए बात यहीं खत्म होती तो समझ लिया जाता कि शराब के नशे में गनर ने कुछ कर दिया होगा, पर इससे भी शर्मनाक बात तो ये है कि जब टीएमसी सांसद जो महिला हैं, उन्हें ये जानकारी दी गई कि आपके गनर ने ऐसा किया तो उनका कहना था, ये छोटी मोटी बातें होती रहती हैं। 

मै जानता हूं कि इस मामले की शिकायत अगर ममता बनर्जी से भी होगी तो वो कोई खास तवज्जो नहीं देंगी, क्योंकि अपर क्लास का आदमी उनकी प्राथमिकता में ही नहीं है। उनसे किराया भी  ज्यादा वसूला जाएगा, इन्हें सर्विस टैक्स भी देना होगा, बदले में अपर क्लास यात्रियों को सोते समय पेशाब से नहाना होगा। अब इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं.. आक्क थू, ऐसी राजनीति की। 

Saturday, March 10, 2012

टीपू बन गया सुल्तान ...

बराइये नहीं यहां बात टीपू सुल्तान की नहीं हो रही है। दरअसल मुलायम सिह यादव के बेटे अखिलेश यादव को लोग घर में प्यार से टीपू बुलाते हैं। यही टीपू अब उत्तर प्रदेश का सुल्तान बन रहा है, क्योंकि पार्टी विधायक दल की बैठक में उसे नेता चुन लिया गया है। 15 मार्च को शपथ ग्रहण के बाद टीपू यूपी का सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बन जाएगा।

मुख्यमंत्री भले ही टीपू बन रहा हो, लेकिन ना जाने क्यों यूपी के युवाओं की उम्मींदे काफी बढ़ गई हैं, उन्हें लग रहा है कि पहली बार ऐसा होगा जब यूपी की गद्दी को कोई ऐसा युवा संभालने जा रहा है, जिसे युवाओं की जरूरतों की जानकारी है। युवाओं की तकलीफों का उसे अहसास है। युवाओं की उम्मीदों पर अखिलेश कितने खरे उतरेंगे, ये बाद की बात है, पर आज युवाओं को लग रहा है कि यही मायने में अब सरकार में उनका प्रतिनिधित्व हो रहा है।

मुलायम सिंह यादव की पहले भी यूपी में सरकार रही है। लेकिन मैं उसे समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं मानता। वो नचनियों और गवइयों की बुनियाद पर बनने वाली सरकार रही है। होता क्या था कि अमर सिंह कुछ फिल्मी कलाकारों को मैनेज कर लेते थे, और समाजवादी पार्टी के बैनर तले होने वाली सभाओं में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, जया प्रदा, संजय दत्त, मनोज तिवारी टाइप लोग भाषण देते थे। इन्हीं फिल्मी कलाकारों के दम पर अमर सिंह भी नेता बने घूम रहे थे। 

जिस तरह से मुर्गे को लगता है कि अगर वो सुबह सबको ना जगाए और तो दिन ही नहीं निकलेगा, उसी तरह अमर सिंह को भी लगने लगा था कि समाजवादी पार्टी उनके बगैर शून्य है। बहरहाल जिस अमिताभ बच्चन को वो बड़ा भैया कहते थे, आजकल बड़ा भैया से नाराज चल रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव को तो वो नेता जी कहते थे, तो नेता से कितने दिनों तक बन सकती थी। खैर बात कुछ और हो रही थी, मैं कहीं और चला गया, लेकिन मेरा अभी भी पक्का मानना है कि समाजवादी पार्टी से अमर सिंह का अलग होना भी पार्टी की ऐतिहासिक जीत की एक वजह है। 
इसके अलावा मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव से भी यूपी को भगवान बचाए रखे। सच तो ये है कि शिवपाल में राजनीति की ना समझ है, ना राजनीतिक चरित्र है, ना ईमानदारी है और ना ही जनता और पार्टी में उनकी छवि ठीक है। समाजवादी पार्टी में जितने में गंदे किस्म के लोग है, उन्हें शिवपाल यादव का ही संरक्षण प्राप्त है। मुझे लगता है कि अब अखिलेश की अगुवाई में समाजवादी पार्टी मे कम से कम महिलाओं को शोषण बंद हो जाएगा। कुछ गुंडे छवि के लोगों को पार्टी में शामिल करने से साफ मना कर दिए जाने से अखिलेश का ग्राफ बहुत ऊंचा हो गया है। यही वजह  है कि लोगों की उम्मीद जगी है कि अब इस पार्टी में भी साफ सुथरे लोगों के लिए गुंजाइस बनी रहेगी।

भाई आजम खां वाकई वरिष्ठ नेता हैं। लेकिन उन्हें भी जिस तरह से इस बार चुनाव के दौरान रामपुर में ही रखा गया, उससे भी सपा को फायदा हुआ है। अब जनता गाली गलौज और गंदी सियासत को समझने लगी है। रामपुर में एक  खास परिवार को जिस तरह तल्ख भाषा में आजम खां कोसते रहते हैं, ये बात भी लोगों के गले नहीं उतरती। इसलिए जरूरी था कि आजम भाई पर नकेल कसा जाए। चुनाव प्रयार का कमान मुलायम और अखिलेश के हाथ में होने से लगा कि सच में अब समाजवादी पार्टी की सभा हो रही है, लोहियावादी नेताओं की सभा हो रही है, जनेश्वर जी जैसा सोचते थे, उन विचारों की सभा हो रही है। 

बहरहाल अब भाई अखिलेश जी आपकी ताजपोशी हो जाएगी, लेकिन आगे का काम जरा मुश्किल है। यूपी कि अफसरशाही से भी बदबू आती है। मैने देखा बीएसपी की सरकार में जिलाधिकारी.... जिलाधिकारी बन कर काम नहीं कर रहे थे, बल्कि वो बीएसपी के जिलाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे। अब यूपी में मान सम्मान वाले अफसर नहीं रह गए, आपको देखना होगा कि जिस अफसर में अभी रीढ की हड्डी बची हो, उसे जिम्मेदारी का काम सौंपे, वरना जूता उठाने और उसे साफ करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे।      

Friday, March 9, 2012

द्रविण के सन्यास से सचिन पर बढ़ा दबाव...

भारतीय क्रिकेट टीम के अहम सदस्य राहुल द्रविण ने आज टेस्ट क्रिकेट से भी सन्यास का ऐलान कर दिया। द्रविण टी 20 और एक दिवसीय मैच से पहले ही सन्यास ले चुके हैं। द्रविण ने सन्यास की घोषणा करते हुए कहा कि मैने युवाओं को मौका देने के लिए सन्यास का फैसला किया है और अब युवा खिलाड़ी इतिहास बनाएं। हालाकि मीडिया में द्रविण के सन्यास को लेकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जैसे उन्होंने बहुत महान काम कर दिया हो, दरअसल सच ये है कि आस्ट्रेलिया में जिस तरह से टीम पिटी है उसके बाद द्रविण का आगे के मैचों में चुना जाना भी तय नहीं था।
द्रविण टीम में इसलिए थे कि उन्हें टीम की दीवार कहा जाता था, उन्हें भरोसेमंद कहा जाता था, मिस्टर डिपेंडेबिल के साथ ही ना जाने क्या क्या कहा जाता था। लेकिन आस्ट्रेलिया के दौरे से साफ हो गया था कि अब ना वो टीम की दीवार रहे, ना ही भरोसेमंद और डिपेंडेबिल रहे। ये बात खुद द्रविण भी जानते हैं। लिहाजा उन्होंने अगर सन्यास लेने का ऐलान किया तो इसमें कुछ भी खास नहीं है। मैं तो कहूंगा कि देर से उठाया गया सही कदम है। हालाकि द्रविण की प्रेस कान्फ्रेंस से ये बात भी साफ हो गई है कि टीम में भारी मतभेद है। पिछले दिनों टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इशारों इशोरों में साफ कर दिया था कि सभी सीनियर खिलाडियों को एक साथ टीम में नहीं रखा जा सकता। मतलब सचिन, सहवाग और द्वविण को एक साथ टीम में रखने से क्षेत्ररक्षण पर असर पड़ता है, मैं व्यक्तिगत रूप से और धोनी की बात से सहमत हूं, लेकिन द्रविण ने जाते जाते जो किया, उससे सवाल खड़ा होना तय है।
द्रविण ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन खिलाड़ियों का नाम लिया, जिन्हें वे बहुत मानते हैं और इन खिलाड़ियों को मिस भी करेंगे। इसमें उन्होंने सौरभ गांगुली, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह समेत तमाम खिलाड़ियों के नाम लिए, लेकिन मौजूदा टीम के कप्तान धोनी का उन्होंने कहीं जिक्र तक नहीं किया। इससे साफ है कि सीनियर खिलाड़ी धोनी को पसंद नहीं करते हैं, या फिर टीम में सबकुछ ठीक नहीं है। बहरहाल द्रविण के उज्जवल भविष्य और सुखद पारिवारिक जीवन की मैं भी कामना करता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर द्रविण ये मानते है कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिलना चाहिए, तो ये बात सचिन की समझ में क्यों नहीं आ रही है।
सचिन अपने शतकों के शतक से महज एक कदम दूर हैं। मुझे भी लगता है कि उनका शतकों का शतक बनना ही चाहिए। लेकिन सवाल ये उठता है कि कि आखिर इस एक शतक के लिए देश को कितना इंतजार करना होगा। अभी तक इस शतक के लिए देश साल भर इंतजार कर चुका है और इस दौरान सचिन टेस्ट मैच और एकदिवसीय मिलाकर कुछ 45 से भी ज्यादा पारी खेल चुके हैं और नाकाम रहे हैं। सच तो ये है कि अब सचिन के शतकों के शतक का ना किसी को इंतजार है और ना ही इसमें अब किसी की रुचि रह गई है।
साल भर पहले की बात है कि न्यूज चैनल अभियान चलाए हुए थे कि सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए। सरकार पर भी इतना दबाव बढा कि भारत रत्न दिए जाने के प्रावधान में फेरबदल कर साफ कर दिया गया कि अब किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने पर भारत रत्न दिया जा सकता है। सचिन की लगातार नाकाम से हालत ये हो गई है कि अब कोई भारत रत्न दिए जाने की बात नहीं कर रहा, उल्टे ये पूछ रहा है कि आखिर टीम से सचिन कब बाहर होगे। द्रविण के सन्यास के बाद तो सचिन पर नैतिक दवाब और भी बढ गया है।