मंदसौर में किसानों का हिंसक प्रदर्शन ! |
हिंसक किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस की साजिश कहना सौ फीसदी गलत है, क्योंकि देश में कांग्रेस की जो हालत है वो किसी से छिपी नहीं है, कांग्रेस के कहने पर पार्टी के नेता तक तो सड़क पर आते नहीं , ऐसे में किसानों का सड़क पर उतरना तो दूर की बात है । सच ये है कि इस आंदोलन और हिंसा के पीछे है " किसानों का लालच " । इस लालच की वजह है उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद किसानों की कर्ज माफी । दरअसल यूपी चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने ऐलान किया था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो पहली ही कैबिनेट में किसानों का कर्जा माफ हो जाएगा। चुनाव जीतने के बाद कर्जा माफ हुआ भी, ये अलग बात है कि इसमें इतना पेंच फंसा दिया गया है कि सही मायने में कुछ ही किसानों को इसका लाभ मिला है।
उत्तर प्रदेश में कर्जा माफ की खबर जंगल मे आग की तरह फैल गई। महाराष्ट्र में सबसे पहले शिवसेना ने इसे मुद्दा बनाया और कहाकि अगर यूपी में किसानों का कर्जा माफ हो सकता है तो महाराष्ट्र और पूरे देश में क्यों नहीं ? बस यहीं किसानों के बीच लालच का बीज बोया गया जो आज विकराल रूप ले चुका है। चूंकि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस पापुलर नेता है, वो जानते के किस मुद्दे का समाधान कैसे निकल सकता है, वो लगातार किसान नेताओं के संपर्क मे भी है। यही वजह है कि यहां किसानों का एक गुट आंदोलन खत्म करने का ऐलान भी कर चुका है।
मध्यप्रदेश के हालात अलग है । यहां सरकार आंदोलन की गंभीरता को ही नहीं समझ पाई, जबकि सभी को पता है कि मंदसौर - नीमच राजस्थान का बार्डर क्षेत्र है और जहां अफीम की खेती होने से किसान सम्पन्न होने के साथ ही उपद्रवी भी है। एमपी में ना सिर्फ मुख्यमंत्री बल्कि उनके अफसर भी अपने मूल कार्य को लेकर हमेशा से लापरवाह रहे हैं। मंदसौर के डीएम स्वतंत्र सिंह मंदसौर में काफी समय से तैनात है, लेकिन वो भी हालात कि बिगड़ने देने के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। रही बात किसानों पर सीआरपीएफ के गोली चलाने की तो कहा जा रहा है कि अगर गोली न चलाते तो उग्र किसान सीआरपीएफ के जवानों को मार गिराते , क्योंकि यहां सीआरपीएफ जवानों की संख्या कम थी।
किसानों के आंदोलन के बाद भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इसे सुलझाने को लेकर गंभीर नहीं रहे। आपको जानकार हैरानी होगी कि जिस समय किसान सड़क पर थे और वो हिंसा पर उतारू थे, उस वक्त मुख्यमंत्री भोपाल में अखबार के दफ्तरों मे चक्कर काट रहे थे। उनकी कोशिश है कि प्रदेश में एक ही दिन में दो करोड से ज्यादा पौधे लगाकर ग्रीनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराएं। इसके लिए माहौल बनाने में लगे है। इसी तरह की मूर्खाना कामों में अधिक रूचि लेने में मंदसौर के जिलाधिकारी का नाम भी शुमार है।
मध्यप्रदेश में गोली से किसानों की मौत हो गई, हिंसक आंदोलनकारी किसान अब तक सैक़डों वाहन फूंक चुके है, कानून व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। इसके बाद भी समस्या के समाधान के लिए कैबिनेट के सहयोगियों के साथ बैठक करने या फिर सीनियर अधिकारियों के साथ रणनीति तैयार करने के बजाए मुख्यमंत्री शिवराज किसानों की मौत की बोली लगाते फिर रहे थे, पहले पांच लाख मुआवजा घोषित किया, फिर इसे बढाकर 10 लाख कर दिया , अब ये रकम एक करोड तक पहुंच गई है।
हद तो तब हो गई जब बुधवार को तीरंदाज बन रहे मंदसौर के डीएम स्वतंत्र सिंह बिना सुरक्षाकर्मियों को साथ लिए हिंसक किसानों की भीड़ में चले गए । यहां लौंडे लपाडियों ने उन्हें थप्पड जड़ दिया । वैसे टीवी पर किसानों की जो उदंडता दिखाई दे रही है, उससे तो एक बार ये कहा जा सकता है कि सीआरपीएफ ने गोली चलाने का जो फैसला लिया वो मजबूरी में लिया गया सही फैसला था ।
नोट : मध्यप्रदेश में आंदोलनकारी हिंसक किसान मारे गए हैं और इस पूरे घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। ऐसे में जांच के पहले एक करोड मुआवजे का ऐलान करना न्यायिक जांच को प्रभावित करने जैसा है। सवाल ये है कि अगर जांच में ये तथ्य सामने आता है कि सीआरपीएफ ने मजबूरी और अपने बचाव में गोली चलाई , फिर क्या मुआवजे की रकम किसानों से वापस ली जाएगी ?