Thursday, June 15, 2017

केजरीवाल को साथ बैठाने को सोनिया तैयार नहीं

धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का  । माफ कीजिएगा लेकिन ये सच  है कि आम आदमी पार्टी की हालत इस वक्त कुछ ऐसी ही है । देश की सियासत में पहली बार ऐसा देख रहा हूं कि राष्ट्रपति के चुनाव में  जहां हर एक सांसद और विधायक का वोट महत्वपूर्ण होता है, फिर भी लोग केजरीवाल को अपने साथ बैठाने के लिए तैयार नहीं है । हालत ये हो गई है कि विपक्ष की जमात में जगह बनाने के लिए बेचारे केजरीवाल विपक्ष के ही दूसरे नेताओं के घर के चक्कर काट रहे हैं। 


राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए है। सोनिया गांधी ने कल ही एक बैठक भी की । इस बैठक में सभी महत्वपूर्ण नेता मौजूद थे, लेकिन केजरीवाल को इस बैठक से दूर रखा गया। जबकि केजरीवाल के पास दिल्ली और पंजाब में अच्छी संख्या में विधायक है और सांसद भी हैं। ऐसे में केजरीवाल चुनाव में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। इधर खुद केजरीवाल भी विपक्ष के कई नेताओं के धर जा चुके हैं और खुद ही आँफर कर रहे हैं कि वो भी विपक्ष के उम्मीदवार को समर्थन देने को तैयार है। उन्होंने यहां तक कहा कि उनकी कोई शर्त भी नहीं है। शरद यादव जैसे बड़े नेता ने उनकी बात को सोनियां गांधी तक पहुंचाई भी, लेकिन सोनिया किसी कीमत पर केजरीवाल को अपने बगल में बैठाने के लिए तैयार नहीं हैं। 


केजरीवाल से ज्यादातर नेताओं की नाराजगी की ठोस वजह भी है। दरअसल केजरीवाल सभी राजनीतिक दलों को गाली देते रहे हैं, नेताओं के परिवारीजनों के खिलाफ बिना ठोस सुबूत के गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। जबकि अब खुलासा हो गया है कि उन्होने गलत तरीके से अपने सगे साढू को ठेका दिलवाकर फायदा पहुंचाया।  इस मामले में जांच भी शुरू हो गई है। दूसरा आम आदमी पार्टी के नेताओं पर चरित्रहीनता के आरोप हैं। एक मंत्री को इसी लिए हटाया गया क्योंकि वो राशन कार्ड बनाने के नाम पर महिलाओं का शोषण कर रहा था फिर आप नेताओं पर आरोप है कि उन्होने पंजाब चुनाव के दौरान महिलाओं का यौनशोषण किया। लिहाजा ऐसे गंभीर आरोपों से घिरे पार्टी के नेताओं से विपक्ष खासतौर पर सोनिया गांधी दूरी बनाए रखना चाहती हैं। 

इतना ही नहीं इन दिनों आम आदमी पार्टी में जो कुछ चल रहा है उससे विश्वास के साथ ये कहना भी मुश्किल है कि केजरीवाल के इच्छानुसार उनके विधायक और सांसद वोट देंगे ही। कपिल मिश्रा ने जिस तरह से एक के बाद एक तमाम खुलासे किए हैं, उससे अब पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर हुई है । खासतौर पर केजरीवाल के साढू को जिस तरह से फायदा पहुंचाया गया है, उसके बाद पार्टी में उनकी हनक कमजोर हुई है। इसी तरह कुमार विश्वास की पार्टी में एक मजबूत स्थिति है, इस समय केजरीवाल और विश्वास में भी 36 का आँकडा है। दो दिन पहले पार्टी प्रवक्ता दिलीप पांडेय से केजरीवाल ने जो बयान दिलवाया उससे भी पार्टी टूट के कगार है। लिहाजा अब किसी भी हाल में सोनिया गांधी तो केजरीवाल को अपने साथ बैठाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है । 




Wednesday, June 7, 2017

हिंसक किसान आंदोलन की वजह यूपी की कर्जामाफी !

मंदसौर में किसानों का हिंसक प्रदर्शन !
हिंसक किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस की साजिश कहना सौ फीसदी गलत है, क्योंकि देश में कांग्रेस की जो हालत है वो किसी से छिपी नहीं है, कांग्रेस के कहने पर पार्टी के नेता तक तो सड़क पर आते नहीं , ऐसे में किसानों का सड़क पर उतरना तो दूर की बात है । सच ये है कि इस आंदोलन और हिंसा के पीछे है " किसानों का लालच " । इस लालच की वजह है उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद किसानों की कर्ज माफी । दरअसल यूपी चुनाव जीतने के लिए  बीजेपी ने ऐलान किया था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो पहली ही कैबिनेट में किसानों का कर्जा माफ  हो जाएगा। चुनाव जीतने के बाद कर्जा माफ हुआ भी, ये अलग बात है कि इसमें इतना पेंच फंसा दिया गया है कि सही मायने में कुछ ही किसानों को इसका लाभ मिला है। 

उत्तर प्रदेश में कर्जा माफ की खबर जंगल मे आग की तरह फैल गई। महाराष्ट्र में सबसे पहले शिवसेना ने इसे मुद्दा बनाया और कहाकि अगर यूपी में किसानों का कर्जा माफ हो सकता है तो महाराष्ट्र और पूरे देश में क्यों नहीं ?  बस यहीं किसानों के बीच लालच का बीज बोया गया जो आज विकराल रूप ले चुका है। चूंकि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस पापुलर नेता है, वो जानते के किस मुद्दे का समाधान कैसे निकल सकता है, वो लगातार किसान नेताओं के संपर्क मे भी है। यही वजह है कि यहां किसानों का एक गुट आंदोलन खत्म करने का ऐलान भी कर चुका है।  

मध्यप्रदेश के हालात अलग है । यहां सरकार आंदोलन की गंभीरता को ही नहीं समझ पाई, जबकि सभी को पता है कि मंदसौर - नीमच राजस्थान का बार्डर क्षेत्र है और जहां अफीम की खेती होने से किसान सम्पन्न होने के साथ ही उपद्रवी भी है। एमपी में ना सिर्फ मुख्यमंत्री बल्कि उनके अफसर भी अपने मूल कार्य को लेकर हमेशा से लापरवाह रहे हैं। मंदसौर के डीएम स्वतंत्र सिंह मंदसौर में काफी समय से तैनात है, लेकिन वो भी हालात कि बिगड़ने देने के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। रही बात किसानों पर सीआरपीएफ के गोली चलाने की तो कहा जा रहा है कि अगर गोली न चलाते तो उग्र किसान सीआरपीएफ के जवानों को मार गिराते , क्योंकि यहां सीआरपीएफ जवानों की संख्या कम थी। 

किसानों के आंदोलन के बाद भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इसे सुलझाने को लेकर गंभीर नहीं रहे। आपको जानकार हैरानी होगी कि जिस समय किसान सड़क पर थे और वो हिंसा पर उतारू थे, उस वक्त मुख्यमंत्री भोपाल में अखबार के दफ्तरों मे चक्कर काट रहे थे। उनकी कोशिश है कि प्रदेश में एक ही दिन में दो करोड से ज्यादा पौधे लगाकर ग्रीनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराएं। इसके लिए माहौल बनाने में लगे है। इसी तरह की मूर्खाना कामों में अधिक रूचि लेने में मंदसौर के जिलाधिकारी का नाम भी शुमार है। 

मध्यप्रदेश में गोली से किसानों की मौत हो गई, हिंसक आंदोलनकारी किसान अब तक सैक़डों वाहन फूंक चुके है, कानून व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। इसके बाद भी समस्या के समाधान के लिए कैबिनेट के सहयोगियों के साथ बैठक करने या फिर सीनियर अधिकारियों के साथ रणनीति तैयार करने के बजाए मुख्यमंत्री शिवराज किसानों की मौत की बोली लगाते फिर रहे थे, पहले पांच लाख मुआवजा घोषित किया, फिर इसे बढाकर 10 लाख कर दिया , अब ये रकम एक करोड तक पहुंच गई है। 
हद तो तब हो गई जब बुधवार को तीरंदाज बन रहे मंदसौर के डीएम स्वतंत्र सिंह बिना सुरक्षाकर्मियों को साथ लिए हिंसक किसानों की भीड़ में चले गए । यहां लौंडे लपाडियों ने उन्हें थप्पड जड़ दिया । वैसे टीवी पर किसानों की जो उदंडता दिखाई दे रही है, उससे तो एक बार ये कहा जा सकता है कि सीआरपीएफ ने गोली चलाने का जो फैसला लिया वो मजबूरी में लिया गया सही फैसला था । 


नोट :  मध्यप्रदेश में आंदोलनकारी हिंसक किसान मारे गए हैं और इस पूरे घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। ऐसे में जांच के पहले एक करोड मुआवजे का ऐलान करना न्यायिक जांच को प्रभावित करने जैसा है। सवाल ये है कि अगर जांच में ये तथ्य सामने आता है कि सीआरपीएफ ने मजबूरी और अपने बचाव में गोली चलाई , फिर क्या मुआवजे की रकम किसानों से वापस ली जाएगी ? 

 

Wednesday, July 16, 2014

यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों !

श्री शक्ति एक्सप्रेस के पहले ही सफर में उधरपुर - कटरा रेल लाइन ने संकेत दे दिया है कि वो अभी रेल यात्रा के लिए पूरी तरह फिट नहीं है। श्री शक्ति एक्सप्रेस बीती रात जैसे ही टनल के भीतर घुसी, पटरी पर फिसलन की वजह से ट्रेन आगे नहीं बढ़ सकी और टनल के भीतर ही फंस गई। ट्रेन को टनल से निकालने के लिए इंजन के ड्राईवर ने काफी मशक्कत की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। आधी रात को इसकी जानकारी जैसे ही उत्तर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को हुई, सब के होश उड़ गए। बहरहाल कोशिश शुरू हो गई कि कैसे ट्रेन को टनल से बाहर निकाला जाए। आनन फानन में फैसला किया गया कि एक और इंजन  वहां भेजकर ट्रेन में पीछे से धक्का लगाया जाए, हो सकता है कि दो इंजन के जरिए इस ट्रेन को आगे बढ़ाया जा सके। बहरहाल रेलवे की कोशिश कामयाब रही और ट्रेन को किसी तरह टनल से बाहर कर लिया गया। लेकिन इससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि  क्या इस ट्रैक पर आगे ट्रेन का संचालन जारी रखा जाए, या फिर इसे रोका जाए !  बहरहाल रेलवे की किरकिरी न हो, इसलिए मीडिया को जानकारी दी गई कि  इंजन में खराबी की वजह से ट्रेन टनल मे लगभग दो घंटे फंसी रही, जबकि सच ये नहीं है, रेल अफसर अपनी नाकामी छिपा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सहयोगी मंत्रियों को कहते रहते हैं कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और महत्वपूर्ण फैसलों में सोशल मीडिया के सकारात्मक राय को उसमें शामिल करें। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे लेकर लापरवाह हैं। वो अभी से अफसरों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं, खासतौर पर अगर रेलमंत्रालय की बात करूं, तो ये बात सौ फीसदी सच साबित होती है। आपको पता होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब ऊधमपुर से कटरा रेल लाइन की शुरुआत करने वाले थे, उसके पहले ही मैने आगाह कर दिया था कि ये रेल लाइन खतरनाक है, इस पर जल्दबाजी में ट्रेन का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस रेल पटरी के शुरू हो जाने से रोजाना ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू हो जाएगी, इसमें हजारों यात्री सफर करेंगे, इसलिए उनकी जान को जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि मोदी ने इन बातों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और वाहवाही लूटने के लिए रेल अफसरों के इशारे पर कटरा रेलवे स्टेशन पहुंच गए और ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के लिए हरी झंड़ी दिखा दी।

मैं प्रधानमंत्री को एक बार फिर बताना चाहता हूं कि इस रेल पटरी पर जल्दबाजी  में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करना खतरे से खाली नहीं है, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट इसे खतरनाक बता  रही है। इसी साल जनवरी में रेल अफसर ने रेल पटरी का सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कम से कम दो तीन मानसून तक इस पटरी पर ट्रेनों का संचालन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मानसून में इस ट्रैक का पूरी तरह परीक्षण होना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि टनल में अचानक  बड़ी मात्रा में पानी भर जाए, जिससे बीच में ट्रेनों की आवाजाही रोकनी पड़े। इतना  ही नहीं टनल नंबर 20 में तकनीकि खामियों की वजह से सेफ्टी कमिश्नर ने 27 से 29 जनवरी तक निरीक्षण किया, लेकिन एनओसी नहीं दिया।अंदर की खबर है कि काफी दबाव के बाद रफ्तार नियंत्रण कर ट्रेन चलाने की अनुमति दी है। टनल नंबर 18 में काफी दिक्कतहै। बताया गया है कि इस टनल में 100 लीटर पानी प्रति सेकेंड भर जाता है। ये वही टनल है, जिसकी वजह से अभी तक यहां ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा था। पानी का रास्ता बदलने के लिए फिलहाल कुछ समय पहले 22 करोड का टेंडर दे दिया गया, काम हुआ या नहीं, कोई बताने को तैयार नहीं। एक विदेशी कंपनी को कंसल्टैंसी के लिए 50 करोड रूपये दिए गए। उसने जो सुझाव दिया वो नहीं माना गया। इस कंसल्टैंसी कंपनी से कहा गया कि वो सेफ्टी सर्टिफिकेट दे, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया।

मैं फिर जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रेलवे के अधिकारी रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रेलमंत्री रेलवे को जानने समझने वालों की एक एक्सपर्ट टीम बनाएं और हर बड़े फैसले को लागू करने के पहले एक्सपर्ट की राय जरूर ले। रेल अफसरों के बड़बोलेपन की वजह से ही रेलमंत्री सदानंद गौड़ा की रेल हादसे के मामले में सार्वजनिक रूप से किरकिरी हो चुकी है, जब गौड़ा ने रेल अधिकारियों के कहने पर मीडिया में बयान दिया कि ट्रेन हादसे की वजह नक्सली हैं, उन्होंने बंद का आह्वान किया था और रेल पटरी के साथ छेड़छाड़ की, इसी वजह से हादसा हुआ। इसके थोड़ी ही देर बाद गृह मंत्रालय ने रेलमंत्री की बात को खारिज कर दिया। बाद में रेलमंत्री ने अपनी बात बदली और कहाकि पूरे मामले की जांच हो रही है, उसके बाद ही दुर्घटना की असल वजह पता चलेगी। लेकिन ये बात पूरी तरह सच है कि अगर रेलमंत्री थोड़ा भी ढीले पड़े तो ये अफसर मनमानी करने से पीछे हटने वाले नहीं है।

यही वजह है कि जिस अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में रेल पटरी को खतरनाक बताया, उसे तत्काल उत्तर रेलवे से स्थानांतरित कर दिया गया। वजह साफ है कि रेल अधिकारियों का मानना है कि वैष्णों देवी मां के धाम कटरा से अगर मोदी को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने  का अवसर मिला तो वो मंत्रालय पर नरम रहेंगे और अफसरों पर उनका भरोसा बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से सच्चाई को छिपाकर इन अफसरों ने एक ऐसे रेलमार्ग पर आनन फानन में ट्रेनों का संचालन शुरू करा दिया, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक है। ये अफसर नई सरकार को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को धोखा दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी, ट्रेनों  के संचालन की शुरुआत आप कर चुके हैं, अभी भी समय है इस रेल मार्ग की नए सिरे से पूरी जांच पड़ताल आप स्वयं कराएं। ब्राजील से वापस आएं तो 7 आरसीआर जाने के पहले सीधे रेल मंत्रालय पहुंचे और उन सभी अफसरों को सामने बैठाएं, जिन्हें इस रेल मार्ग को जल्दबाजी में शुरू करने की हडबड़ी थी। ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि रेल अधिकारियों ने अपने ही महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को खारिज कर ट्रेनों का संचालन शुरू कराया और पहले ही दिन श्री शक्ति एक्सप्रेस टनल मे फंस गई। जांच जरूरी है। 

 

Sunday, December 29, 2013

वाड्रा को बेईमान बता कर बने मुख्यमंत्री !

ज बिना लाग लपेट के एक सवाल  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना जाए कि केजरीवाल ने जितने भी आरोप आपके परिवार और पार्टी पर लगाएं है, वो सही हैं, इसलिए आपकी पार्टी उनके साथ खड़ी हैं, या फिर पार्टी में कहीं कई विचार पनप रहे हैं,  लेकिन सही फैसला लेने में मुश्किल आ रही है और आपका बीमार नेतृत्व पार्टी को अपाहिज  बना रहा है।  

खैर सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना अब कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। मेरी नजर में तो आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने एक ऐसी राजनीतिक भूल की है, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। सबको पता ही है किसी भी राजनीतिक दल को दिल्ली की जनता ने बहुमत नहीं दिया, लिहाजा लोग सरकार बनाने की पहल ना करते और ना ही किसी को समर्थन का ऐलान करते ! लेकिन कांग्रेस के मूर्ख सलाहकारों को लगा कि अगर वो आप को समर्थन का ऐलान करती है, तो ऐसा करके वो दिल्ली की जनता के दिल मे जगह बना लेगी और केजरीवाल जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पाएंगे, लिहाजा वो जनता का विश्वास खो देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। इधर पहले तो केजरीवाल समर्थन लेने से इनकार करते रहे और कहाकि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। इस पर कांग्रेसी दो कदम आगे आ गए और कहने लगे की उनका समर्थन बिना शर्त है, सरकार बनाकर दिखाएं। 

अब कांग्रेसियों की करतूतों से केजरीवाल क्या देश की जनता वाकिफ है, सब जानते हैं कि इन पर आसानी से भरोसा करना मूर्खता है। लिहाजा केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो जनता से पूछ कर इसका फैसला करेंगे। इस ऐलान के साथ केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच निकल गए, और जनता की सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया। हर सभा में ऐलान करते रहे कि सरकार बनाते ही सबसे पहला काम भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे और दोषी हुई तो शीला दीक्षित तक को जेल भेजेंगे। आप पार्टी ने कांग्रेस पर हमला जारी रखा, लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि वो केजरीवाल को बेनकाब कर देंगे, इसलिए समर्थन देने के फैसले पर अडिग रहे। मैने तो पहली दफा देखा कि जिसके समर्थन से कोई दल सरकार बनाने जा रहा है वो उसके नेताओं को गाली सरेआम गाली दे रहा है और पार्टी कह रही है कि नहीं सब ठीक है। वैसे अंदर की बात तो ये भी है कांग्रेस में एक तपका ऐसा है जो पूर्व  मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोधी है, उसे लग रहा है कि केजरीवाल जब जांच पड़ताल शुरू करेंगे तो शीला की असलियत सामने आ जाएगी।

केजरीवाल ने शपथ लेने से पहले कांग्रेस को इतना घेर दिया है कि अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। शपथ लेने के दौरान भी केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वो किसी से समर्थन की गुजारिश नहीं करेंगे। बहुमत मिला तो सरकार चला कर जनता की सेवा वरना जनता के बीच रहकर उसकी सेवा। अब कांग्रेस के गले मे ये हड्डी ऐसी फंसी है कि ना उगलते बन रहा है ना ही निगलते बन रहा है। अगर कांग्रेस समर्थन वापसी का ऐलान करती है तो उसकी दिल्ली में भारी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। बता रहे हैं कि इस सामान्य मसले को पेंचीदा बनाने के बाद अब कांग्रेसी 10 जनपथ की ओर देख रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि 10 जनपथ में तमाम जानकार बैठे हैं, जो मुद्दे का हल निकाल देंगे। बहरहाल शपथग्रहण के बाद से जो माहौल बना है, उससे दो बातें सामने हैं। एक तो दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा, दूसरा दिल्ली में आराजक राजनीति की शुरुआत  हो गई है। 

वैसे आप कहेंगे कि सोनिया गांधी से सवाल पूछना आसान है, लेकिन किसी मुद्दे का समाधान देना मुश्किल है। मैं समाधान दे रहा हूं। एक टीवी  न्यूज चैनल के स्टिंग आँपरेशन में पार्टी के पांच विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हट कर बयान दिया और केजरीवाल को  पागल तक बताया। कांग्रेस आलाकमान को इस मामले को तत्काल गंभीरता से लेते हुए अपने पांचो विधायकों को पार्टी से निलंबित कर उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इससे दिल्ली की जनता में ये संदेश जाएगा कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अरविंद की आलोचना करने पर इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उधर विधायक दल बदल कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। अब ये रिस्क तो रहेगा ही कि कहीं विधायक बीजेपी में शामिल  होकर उनकी सरकार ना बनवा दें ? अगर ऐसा होता भी है तो हर्षवर्धन के मुकाबले अरविंद कांग्रेस को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। कुछ मिलाकर दिल्ली में एक सभ्य तरीके से राजनीति होती तो हम देख सकेंगे। 


   

Thursday, November 28, 2013

180 करोड़ दान कर आ गए वृद्धाश्रम !

हले गुजरात का एक किस्सा सुना दूं, फिर पूरी कहानी बताता हूं। बात करीब सात आठ साल पुरानी है, मुझे शिलांग से दिल्ली आना था, मैं शिलांग एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चेक के बाद लांज में मैं बैठा हुआ था। इसी बीच एक साहब मेरे पास आए और पूछा कि क्या आप "गुजराती" हैं । मैंने कहा.. नहीं मैं गुजराती नहीं हूं, यूपी का रहने वाला हूं। वो थोड़ा गंदा सा मुंह बनाया और चला गया। खैर थोड़ी देर में ही वहां बैठे दूसरे लोगों में से एक गुजराती को उसने तलाश लिया और उसके पास अपना ब्रीफकेश रख कर टाँयलेट चला गया। मुझे रहा नहीं गया, उसके वापस आने पर मैने पूछा कि क्या आप गुजराती की तलाश इसलिए कर रहे थे कि आपको  टाँयलेट जाना था और आप अपना ब्रीफकेश किसी गुजराती के पास रखना चाहते थे ? उसे मेरी बात पर कोई संकोच नहीं और कहां हां सही बात है। मैं गुजराती के अलावा किसी के पास ब्रीफकेश नहीं छोड़ सकता हूं। 

आप सोच रहे होंगे की आठ साल पुरानी बात आखिर आज मुझे याद क्यों आई ? दरअसल अखबार की एक खबर पढ़कर मैं हैरान हूं। हालाकि अखबार में पूरी खबर नहीं है, लेकिन जितनी बातें है, वो कम से कम मुझे चौंकाने के लिए काफी है। खबर ये कि गुजरात के एक दालिया दंपत्ति ने अपनी 180 करोड़ की प्रापर्टी स्कूल, कालेज और धार्मिक संस्थानों को दान कर खुद पत्नी के साथ सूरत के वृद्धाश्रम में आ गए। अखबार में इस बात का जिक्र नहीं है कि उनके बेटा - बेटी हैं या नहीं ! लेकिन उन्होंने शमशान घाट पर भी 50 हजार रुपये जमा करा दिए हैं, जिससे उनकी मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार आसानी से हो सके। नरोत्तम भाई ( 97 ) और उनकी पत्नी लक्ष्मी बहन ( 84 )  सूरत के पास इलाके अडाजड़ से अब इस आश्रम में ही रह रहे हैं। वो मीडिया से भी दूरी बनाए हुए हैं। 



Wednesday, October 9, 2013

राजेन्द्र यादव बोले तो साहित्य का आसाराम !

जाने माने साहित्यकार राजेन्द्र यादव के बारे में जो खबरें आ रही हैं, वो बहुत घिनौनी है। मैं ज्योति को नही जानता, लेकिन कहा जा रहा है कि ज्योति राजेन्द्र जी की सहयोगी थी, जिसे राजेन्द्र यादव बेटी की तरह स्नेह करते थे, फिर भी ज्योति का एक वीडियो बन गया, इस वीडियो को लेकर राजेन्द्र का एक अन्य सहयोगी ज्योति को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर  रहा था। वैसे ये वीडियो कहां बना, किसने बनाया, वीडियो में क्या है, वीडियो में ज्योति भर है या राजेन्द्र यादव भी हैं, किसी को कुछ नहीं पता। 

मैं हैरान इस बात पर हूं कि राजेन्द्र यादव के घर पर उनकी मौजूदगी में वीडियो की बात हो रही थी, झगड़ा झंझट सब उनकी आंखो के सामने होता रहा, ज्योति के साथ गाली गलौज हो रही थी, लेकिन साहित्यकार राजेन्द्र जी शराब पीते रहे। राजेन्द्र जी जिसे अपनी बेटी कहते हैं, उसे बचाने के लिए एक शब्द नहीं बोले। बहरहाल इसके बाद जो हुआ वो तो शर्म से डूब मरने की बात थी। ज्योति ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को बुला लिया, पुलिस राजेन्द्र जी के घर से उनके दूसरे सहयोगी को साथ ले गई। अब मामला न्यायालय में है, वहां सभी  के अभियोग तय होंगे। सच क्या है और गलत क्या है, ये तो जब तय होगा तब देखा जाएगा, लेकिन राजेन्द्र यादव मेरी नजरों में बहुत नीचे गिर गए। जरूरत इस बात की है कि  साहित्य का ये आसाराम आत्मचिंतन करे और पूरे मामले में खुद ही अपनी सफाई दें। 

ऐसा नहीं है कि राजेन्द्र यादव के घर हुई इस घटना की जानकारी अखबारों और चैनलों को नहीं है। सब को हर बात पता है। वैसे भी अब इस मामले में बकायदा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है। इसके बाद भी साहित्य के आसाराम पर किसी चैनल ने चर्चा नहीं की। मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर भी चर्चा होनी चाहिए। युवा लेखक और लेखिकाएं राजेन्द्र जी की प्रशंसक है, महिलाएं एक भरोसे से राजेन्द्र जी के पास आती हैं, अगर साहित्य की आड़ में कुछ ऐसा वैसा हो रहा है, तो ये गंभीर मामला है और इस पर भी बहस होनी चाहिए। 



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Tuesday, August 20, 2013

रिटायर होकर आराम करने आया है टुंडा !

मुझे देश में बढ़ रहे आतंकवाद के बारे में तो अच्छी जानकारी है, लेकिन आतंकवादियों इनके ठिकाने, इनके संगठन के बारे में बस सुनी सुनाई बातें ही पता हैं। देख रहा हूं तीन चार दिन से एक सेवानिवृत्त आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को लेकर दिल्ली पुलिस इधर उधर घूम रही है। हालाकि इसने अकेले ही पुलिस के पसीने छुड़ा दिए हैं। पुलिस उसे आतंकवाद की पांच घटनाओं में शामिल होने की बात करती है, टुंडा पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए दावा करता है कि वो पांच और यानि आतंकवाद की 10 घटनाओं में शामिल रहा है। खुद को अंडरवर्ल्ड डाँन दाउद इब्राहिम का सबसे करीबी भी बता रहा है। इतना ही नहीं खुद ही कह रहा है कि वो लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का बड़ा आतंकवादी है। पुलिस बहुत मेहनत से सवाल तैयार करती है, उसे लगता है कि टुंडा सही जवाब देने से हिचकेगा, लेकिन वो पुलिस को बिल्कुल निराश नहीं कर रहा है, आगे बढ़कर अपने अपराध कुबूलता जा रहा है। जानते हैं टुंडा खाने पीने का भी काफी शौकीन है, वो खाने में सिर्फ ये नहीं कहता है कि उसे बिरयानी चाहिए, बल्कि ये भी बताता है कि जामा मस्जिद की किस दुकान से बिरयानी मंगाई जाए। टुंडा के हाव भाव से साफ है कि वो यहां पुलिस से टांग तुडवाने नहीं बल्कि जेल में रहकर मुर्गे की टांग तोड़ने आया है।

सुना है कि भारत - नेपाल सीमा यानि उत्तराखंड के बनबसा से दिल्ली पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया है। देखिये ये तो पुलिस का दावा है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि टुंडा पुलिस के बिछाए जाल में फंसा है, मेरा तो मानना है कि पुलिस इसके जाल में फंसी है। अंदर की बात बताऊं ? टुंडा की जो तस्वीर पुलिस के रिकार्ड में है, उस तस्वीर से तो पुलिस सात जन्म में भी टुंडा को तलाश नहीं सकती थी। हो सकता है कि ये बात गलत हो, पर मेरा तो यही मानना है कि टुंडा ने खुद ही पुलिस को अपनी पहचान बताई है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं क्या कहता जा रहा हूं। भला टुंडा क्यों पुलिस के हत्थे चढ़ेगा ? उसे मरना है क्या कि वो दिल्ली पुलिस के पास आएगा ? हां मुझे तो यही लगता है कि वो बिल्कुल आएगा, क्योंकि इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल टुंडा अब बूढा हो गया है और इस उम्र में वो पुलिस के साथ आंखमिचौनी नहीं खेल सकता। ऐसे मे हो सकता है कि आतंकवादी गैंग से ये रिटायर हो गया हो। साथियों ने उसे सलाह दी हो कि अब तुम्हे आराम की जरूरत है।

किसी आतंकवादी को आराम की जरूरत हो तो उसके लिए भारत की जेल से बढिया जगह भला कहां मिल सकती है। मुझे तो लगता है कि वो यहां पूरी तरह आराम करने के मूड में ही आया है। यही वजह है कि वो किसी भी मामले में अपना बचाव नहीं कर रहा है। आतंकवाद से जुड़ी जिस घटना के बारे में भी पुलिस उससे पूछताछ करती है, वो सभी अपने को शामिल बताता है। इतना ही देश के दूसरे राज्यों में भी हुई आतंकी घटनाओं में भी वो अपने को शामिल बताने से पीछे नहीं हटता। हालत ये है कि दिल्ली पुलिस से उसकी पूछताछ पूरी होगी, फिर उसे एक एक कर दूसरे राज्य की पुलिस रिमांड पर लेकर अपने यहां ले जाएगी। ऐसे में टुंडे का पर्यटन भी होता रहेगा। घूमने फिरने का टुंडा वैसे भी शौकीन है, अब सरकारी खर्चे पर उसे ये सुविधा मिलेगी, तो भला उसे क्या दिक्कत है। 

और हां, देश की पुलिस की कमजोरी ये टुंडा जानता है। यहां पुलिस प्रमोशन और पदक के लिए पागल रहती है। जाहिर है इतने बड़े आतंकी को पकडने वाली पुलिस टीम को प्रमोशन भी मिलेगा और पदक भी। इसलिए टुंडा पुलिस की हर बात बिना दबाव के खुद ही मान ले रहा है। उसे ये भी पता है कि  कोर्ट में उसका जितने साल मुकदमा चलेगा, उतनी तो उसकी उम्र भी नहीं बची है। अब टुंडा इतना बड़ा आतंकी है तो उसे कड़ी सुरक्षा में रखा भी जाएगा। टुंडा सुन चुका है कि यहां कसाब के रखरखाव पर मुंबई सरकार ने कई सौ करोड रुपये खर्च किए हैं। यहां तक की उसकी मौत के बाद उसके शव को कई महीने तक सुरक्षित रखा गया था। कसाब को उसकी मन पसंद का खाना मिलता था, अब इस उम्र में टुंडा और क्या चाहिए ? लेकिन टुंडा ने कुछ जल्दबाजी कर दी, अभी पुलिस की पूछताछ चल ही रही है कि उसने पुलिस से लजीज खाने की मांग रखनी शुरू कर दी। एक सलाह दे रहा हूं टुंडा, थोड़ा तसल्ली रखो, जेल में अच्छी सुविधा मिलेगी। अभी अगर बिरयानी वगैरह मांगने लगे तो आगे मुश्किल हो जाएगी।