धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का । माफ कीजिएगा लेकिन ये सच है कि आम आदमी पार्टी की हालत इस वक्त कुछ ऐसी ही है । देश की सियासत में पहली बार ऐसा देख रहा हूं कि राष्ट्रपति के चुनाव में जहां हर एक सांसद और विधायक का वोट महत्वपूर्ण होता है, फिर भी लोग केजरीवाल को अपने साथ बैठाने के लिए तैयार नहीं है । हालत ये हो गई है कि विपक्ष की जमात में जगह बनाने के लिए बेचारे केजरीवाल विपक्ष के ही दूसरे नेताओं के घर के चक्कर काट रहे हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए है। सोनिया गांधी ने कल ही एक बैठक भी की । इस बैठक में सभी महत्वपूर्ण नेता मौजूद थे, लेकिन केजरीवाल को इस बैठक से दूर रखा गया। जबकि केजरीवाल के पास दिल्ली और पंजाब में अच्छी संख्या में विधायक है और सांसद भी हैं। ऐसे में केजरीवाल चुनाव में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। इधर खुद केजरीवाल भी विपक्ष के कई नेताओं के धर जा चुके हैं और खुद ही आँफर कर रहे हैं कि वो भी विपक्ष के उम्मीदवार को समर्थन देने को तैयार है। उन्होंने यहां तक कहा कि उनकी कोई शर्त भी नहीं है। शरद यादव जैसे बड़े नेता ने उनकी बात को सोनियां गांधी तक पहुंचाई भी, लेकिन सोनिया किसी कीमत पर केजरीवाल को अपने बगल में बैठाने के लिए तैयार नहीं हैं।
केजरीवाल से ज्यादातर नेताओं की नाराजगी की ठोस वजह भी है। दरअसल केजरीवाल सभी राजनीतिक दलों को गाली देते रहे हैं, नेताओं के परिवारीजनों के खिलाफ बिना ठोस सुबूत के गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। जबकि अब खुलासा हो गया है कि उन्होने गलत तरीके से अपने सगे साढू को ठेका दिलवाकर फायदा पहुंचाया। इस मामले में जांच भी शुरू हो गई है। दूसरा आम आदमी पार्टी के नेताओं पर चरित्रहीनता के आरोप हैं। एक मंत्री को इसी लिए हटाया गया क्योंकि वो राशन कार्ड बनाने के नाम पर महिलाओं का शोषण कर रहा था फिर आप नेताओं पर आरोप है कि उन्होने पंजाब चुनाव के दौरान महिलाओं का यौनशोषण किया। लिहाजा ऐसे गंभीर आरोपों से घिरे पार्टी के नेताओं से विपक्ष खासतौर पर सोनिया गांधी दूरी बनाए रखना चाहती हैं।
इतना ही नहीं इन दिनों आम आदमी पार्टी में जो कुछ चल रहा है उससे विश्वास के साथ ये कहना भी मुश्किल है कि केजरीवाल के इच्छानुसार उनके विधायक और सांसद वोट देंगे ही। कपिल मिश्रा ने जिस तरह से एक के बाद एक तमाम खुलासे किए हैं, उससे अब पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर हुई है । खासतौर पर केजरीवाल के साढू को जिस तरह से फायदा पहुंचाया गया है, उसके बाद पार्टी में उनकी हनक कमजोर हुई है। इसी तरह कुमार विश्वास की पार्टी में एक मजबूत स्थिति है, इस समय केजरीवाल और विश्वास में भी 36 का आँकडा है। दो दिन पहले पार्टी प्रवक्ता दिलीप पांडेय से केजरीवाल ने जो बयान दिलवाया उससे भी पार्टी टूट के कगार है। लिहाजा अब किसी भी हाल में सोनिया गांधी तो केजरीवाल को अपने साथ बैठाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है ।