Friday, March 9, 2012

द्रविण के सन्यास से सचिन पर बढ़ा दबाव...

भारतीय क्रिकेट टीम के अहम सदस्य राहुल द्रविण ने आज टेस्ट क्रिकेट से भी सन्यास का ऐलान कर दिया। द्रविण टी 20 और एक दिवसीय मैच से पहले ही सन्यास ले चुके हैं। द्रविण ने सन्यास की घोषणा करते हुए कहा कि मैने युवाओं को मौका देने के लिए सन्यास का फैसला किया है और अब युवा खिलाड़ी इतिहास बनाएं। हालाकि मीडिया में द्रविण के सन्यास को लेकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जैसे उन्होंने बहुत महान काम कर दिया हो, दरअसल सच ये है कि आस्ट्रेलिया में जिस तरह से टीम पिटी है उसके बाद द्रविण का आगे के मैचों में चुना जाना भी तय नहीं था।
द्रविण टीम में इसलिए थे कि उन्हें टीम की दीवार कहा जाता था, उन्हें भरोसेमंद कहा जाता था, मिस्टर डिपेंडेबिल के साथ ही ना जाने क्या क्या कहा जाता था। लेकिन आस्ट्रेलिया के दौरे से साफ हो गया था कि अब ना वो टीम की दीवार रहे, ना ही भरोसेमंद और डिपेंडेबिल रहे। ये बात खुद द्रविण भी जानते हैं। लिहाजा उन्होंने अगर सन्यास लेने का ऐलान किया तो इसमें कुछ भी खास नहीं है। मैं तो कहूंगा कि देर से उठाया गया सही कदम है। हालाकि द्रविण की प्रेस कान्फ्रेंस से ये बात भी साफ हो गई है कि टीम में भारी मतभेद है। पिछले दिनों टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इशारों इशोरों में साफ कर दिया था कि सभी सीनियर खिलाडियों को एक साथ टीम में नहीं रखा जा सकता। मतलब सचिन, सहवाग और द्वविण को एक साथ टीम में रखने से क्षेत्ररक्षण पर असर पड़ता है, मैं व्यक्तिगत रूप से और धोनी की बात से सहमत हूं, लेकिन द्रविण ने जाते जाते जो किया, उससे सवाल खड़ा होना तय है।
द्रविण ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन खिलाड़ियों का नाम लिया, जिन्हें वे बहुत मानते हैं और इन खिलाड़ियों को मिस भी करेंगे। इसमें उन्होंने सौरभ गांगुली, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह समेत तमाम खिलाड़ियों के नाम लिए, लेकिन मौजूदा टीम के कप्तान धोनी का उन्होंने कहीं जिक्र तक नहीं किया। इससे साफ है कि सीनियर खिलाड़ी धोनी को पसंद नहीं करते हैं, या फिर टीम में सबकुछ ठीक नहीं है। बहरहाल द्रविण के उज्जवल भविष्य और सुखद पारिवारिक जीवन की मैं भी कामना करता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर द्रविण ये मानते है कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिलना चाहिए, तो ये बात सचिन की समझ में क्यों नहीं आ रही है।
सचिन अपने शतकों के शतक से महज एक कदम दूर हैं। मुझे भी लगता है कि उनका शतकों का शतक बनना ही चाहिए। लेकिन सवाल ये उठता है कि कि आखिर इस एक शतक के लिए देश को कितना इंतजार करना होगा। अभी तक इस शतक के लिए देश साल भर इंतजार कर चुका है और इस दौरान सचिन टेस्ट मैच और एकदिवसीय मिलाकर कुछ 45 से भी ज्यादा पारी खेल चुके हैं और नाकाम रहे हैं। सच तो ये है कि अब सचिन के शतकों के शतक का ना किसी को इंतजार है और ना ही इसमें अब किसी की रुचि रह गई है।
साल भर पहले की बात है कि न्यूज चैनल अभियान चलाए हुए थे कि सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए। सरकार पर भी इतना दबाव बढा कि भारत रत्न दिए जाने के प्रावधान में फेरबदल कर साफ कर दिया गया कि अब किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने पर भारत रत्न दिया जा सकता है। सचिन की लगातार नाकाम से हालत ये हो गई है कि अब कोई भारत रत्न दिए जाने की बात नहीं कर रहा, उल्टे ये पूछ रहा है कि आखिर टीम से सचिन कब बाहर होगे। द्रविण के सन्यास के बाद तो सचिन पर नैतिक दवाब और भी बढ गया है।  
  

1 comment:

  1. अब सचिन को कौन हटा सकता है। वो अपनी मर्जी से सन्यास लेंगे।

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