Thursday, June 13, 2013

नीतीश के दांत : खाने के और दिखाने के और !

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगें .............. अब क्या हुआ ?
नीतीश कुमार की ये तस्वीर गोधरा दंगे के बाद की है। एक सार्वजनिक मंच पर नीतीश ने सिर्फ नरेन्द्र मोदी के हाथ में हाथ ही नहीं डाला, बल्कि जनता के सामने हाथ ऊंचा कर अपनी दोस्ती का भी इजहार कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस तस्वीर के बाद नीतीश कुमार के बारे में कुछ कहना-लिखना ही बेमानी है, पर मेरी कोशिश है कि उन्हें जरा पुरानी बातें भी याद करा दूं। प्रसंगवश ये बताना जरूरी है कि गुजरात दंगे की शुरुआत गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 डिब्बे में आग लगाने से हुई, जिसमें सवार 59 कार सेवकों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात के हालात बेकाबू हो गए और जगह-जगह दंगे फसाद में बड़ी संख्या में एक खास वर्ग के लोग मारे गए। सभ्यसमाज में किसी से भी आप बात करें वो यही कहेगा कि दंगे नहीं होने चाहिए थे, मेरा भी यही मानना है कि वो दंगा गुजरात के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। अब नीतीश कुमार की बात कर ली जाए। गुजरात में जब दंगा हुआ उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसमें नीतीश कुमार रेलमंत्री थे। दंगे की शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने से हुई, जिसमें 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया। ट्रेन में ये हादसा हुआ था, ऐसे में अगर नीतीश कुमार में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो उन्हें तुरंत रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। खैर, ट्रेन में हुए हादसे की प्रतिक्रिया हुई और गुजरात में दंगा भड़क गया। बड़ी संख्या में एक ही वर्ग के लोग मारे गए। मोदी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठे, आरोप यहां तक लगा कि उन्होंने जानबूझ कर दंगा रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। मामला अदालत में है, फैसला होगा, तब  देखा जाएगा। 

गुजरात दंगे से सिर्फ गुजरात ही नहीं पूरा देश सिहर गया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात पहुंचे और उन्होंने मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया। सच तो ये है कि वाजपेयी मोदी को मुख्यमंत्री के पद से ही हटाना चाहते थे, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की वजह से उन्हें नहीं हटाया जा सका। आज वही आडवाणी नीतीश कुमार के लिए धर्मनिरपेक्ष हैं। जिस आडवाणी की रथयात्रा से देश भर में माहौल खराब हुआ और अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई, देश के अलग अलग हिस्सों में दंगे हुए, जिसमें हजारों लोग मारे गए। आज वो आडवाणी बिहार के मुख्यमंत्री के आदर्श है। खैर ये उनका व्यक्तिगत मामला है। मैं सीधा सवाल नीतीश से करना चाहता हूं। बताइये नीतीश जी, मेरे ख्याल से जब आप रेलमंत्री थे तो बालिग रहे ही होंगे, इतनी समझ जरूर होगी कि अल्पसंख्यकों के साथ बुरा हुआ है। उस वक्त आप खामोश क्यों थे ? आपने उस दौरान केंद्र की सरकार पर ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया कि मुख्यमंत्री को तुरंत बर्खास्त किया जाए ? आपने उस वक्त गुजरात जाकर क्या अल्पसंख्यकों के घाव पर मरहम लगाने की कोई कोशिश की ? मुझे पता है आप कोई जवाब नहीं देंगें। जवाब भी मैं ही दे देता हूं, आपको कुर्सी बहुत प्यारी थी, इसीलिए आप रेलमंत्री भी बने रहे और दंगे को लेकर आंख पर पट्टी भी बांधे रहे। 

मैं समझता हूं कि ये तस्वीर आपको नीतीश कुमार का असली चेहरा दिखाने के लिेए काफी है। क्योंकि गुजरात दंगे के बाद नीतीश हमेशा मोदी के साथ बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे हैं। दोनों की खूब बातें होती रही हैं, खूब हालचाल होते रहे हैं। लेकिन सिर्फ मुझे ही नहीं लगता, बल्कि बिहार के लोगों का भी मानना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश में " अहम् " आ गया है। वो अब खुद को मोदी से बड़ा आईकान समझने लगे। लेकिन नीतीश कुमार भूल गए कि आज राजनीतिक स्थिति यह है कि जिस बिहार के वो मुख्यमंत्री हैं, उसी बिहार में नरेन्द्र मोदी के पक्ष में एक मजबूत ग्रुप तैयार हो चुका है, जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार जब मोदी के खिलाफ जहर उगलते हैं तो इससे इन्हें काफी तकलीफ भी होती है। यही वजह है कि बिहार का एक बड़ा तबका आज नीतीश से चिढ़ने लगा है। नीतीश को ये बात पता है कि अब बिहार की राजनीति में दो ध्रुव है। एक पिछड़ों की जमात है और दूसरा अगड़ों की जमात है। यादव को छोड़ कर पिछड़ों और अगड़ों का बड़ा तबका आज नरेन्द्र मोदी के नाम की जय-जयकार कर रहा है। सच बताऊं मुझे लगता है कि नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य में काफी मुश्किल होने वाली है, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सेना के मिग-21 के उस लड़ाकू उड़ान जैसी है, जो अकसर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, जिसमे बेचारे तीरंदाज पायलटों को भी जान गवानी पड़ जाती है।

कुछ दिन पहले हुए महराजगंज लोकसभा उप चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को लगभग डेढ लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा। नीतीश की समझ में क्यों नहीं आया कि अब उनका असली चेहरा बिहार की जनता के सामने आ चुका है। दरअसल विधानसभा चुनाव में जो कामयाबी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को मिली, उसे ये अपनी जीत समझने लगे। जबकि सच्चाई ये थी कि लोग लालू और राबड़ी की सरकार से लोग इतने तंग थे कि वो बदलाव चाहते थे। बस उन्होंने इस गंठबंधन को मौका दे दिया। आज तो नीतीश पर भी तरह-तरह के गंभीर आरोप हैं। उन पर भी उंगली उठने लगी है। नीतीश सिर्फ अपनी ही पार्टी के नहीं बल्कि दूसरे दलों के भी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भ्रष्ट मानते हैं। लेकिन अब बिहार की जनता उनसे पूछ रही है कि भ्रष्ट नौकरशाह एन के सिंह और भ्रष्ट उद्योगपति किंग महेन्द्रा को राज्यसभा में उन्होंने क्यों भेजा? इतना ही नहीं उन्होंने अपने स्वजातीय नौकरशाह जो प्राइवेट सेक्रटरी था, उसे किस नैतिकता के साथ राज्यसभा में भेजा? इन सबके बाद भी जब नीतीश कुमार ईमानदारी की बात करते हैं तो बिहार में लोग हैरान रह जाते हैं। लोकसभा के उप चुनाव में हार इन तमाम गंदगी का ही नतीजा है।

अच्छा गली-मोहल्ले से गुजरने के दौरान कई बार आपको कंचा खेलते बच्चे दिखाई पड़ते हैं, जो साथ में खेलते भी है, फिर भी एक दूसरे को मां-बहन की गाली देते रहते हैं। आज जब जेडीयू की ओर से बयान आया कि वो दंगाई के साथ नहीं रह सकते, तो सच मे गली मोहल्ले में कंचा खेलते हुए और आपस में गाली गलौच करने वाले उन्हीं बच्चों की याद आ गई। मैं चाहता हूं कि नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता की अपनी परिभाषा सार्वजनिक करें, जिससे देश की जनता ये समझ सके कि आडवाणी किस तरह धर्मनिरपेक्ष हैं और नीतीश कुमार कैसे साम्प्रदायिक हैं। सच कहूं तो नीतीश कुमार का बनावटी चेहरा यह है कि एक तरफ वो नरेन्द्र मोदी को दंगाई कहते हैं और दूसरी तरफ भाजपा के साथ सत्ता सुख भी लूट रहे हैं। अगर नरेन्द्र मोदी दंगाई हैं और भाजपा उन्हें लगातार प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की राह आसान कर रही है, तो फिर भाजपा से अलग क्यों नहीं हो जाते ? इसमे इतना सोच विचार क्यों ? नीतीश कुमार एक साथ धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का जो खेल-खेल रहे हैं, उस पर जनता की नजर अब कैसे नहीं होगी?

मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के विरोध में उतरने की जरूरत क्या थी? लगता तो ये है कि नीतीश कुमार पर अहंकार और खुशफहमी भारी पड़ गई है। बिहार को संभालने के बजाए वो देश संभालने का ख्वाब देखने लगे हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नीतीश कुमार मुसलमानों की टोपी और गमछा पहन कर मोदी को दंगाई कहने से भी नहीं रूके। मैं जानना चाहता हूं कि क्या धर्मनिरेपक्ष होने और दिखने के लिए टोपी और गमछा ओड़ना जरूरी है? भाई अगर मुसलमान इतने से भी प्रभावित नहीं हुए तो क्या आने वाले समय में जेडीयू अपने चुनावी घोषणा पत्र में "खतना" को तो अनिवार्य नहीं कर देंगी ?  सच ये है कि जेडीयू की ताकत बिहार में भाजपा के साथ मिलने के कारण बढ़ी है। भाजपा ने लालू से मुक्ति के लिए अपने हित जेडीयू के लिए कुर्बान कर दिया। सबको पता है कि जेडीयू के पास कार्यकर्ता कम नेता ज्यादा हैं। जमीनी स्तर पर लालू से मुकाबले के लिए जेडीयू या नीतीश कुमार का कोई नेटवर्क नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता ही जमीनी स्तर पर लालू को चुनौती देने के लिए खडे रहते हैं। भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक मोदी के तीखे विरोध और नीतीश कुमार द्वारा मुस्लिम टोपी और गमछा पहनने की वजह से उनसे नाराज हैं और उनका कड़ा विरोध भी कर रहे हैं, उपचुनाव में हार इसकी एक बड़ी वजह है।

बहरहाल अब बीजेपी में नरेन्द्र मोदी का नाम बहुत आगे बढ़ चुका है, इतना आगे कि वहां से पीछे हटना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। जेडीयू को समझ लेना चाहिए कि जब मोदी का विरोध करने वाले आडवाणी को पार्टी और संघ ने दरकिनार कर दिया तो जेडीयू की भला क्या हैसियत है। ये देखते हुए भी नीतीश कुमार नूरा कुश्ती का खेल खेल रहे हैं, ये भी बिहार की जनता बखूबी समझ रही है। मैं पहले भी कहता रहा हूं आज भी कह रहा हूं कि अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति मे आगे बढ़ने से रोकना किसी के लिए आसान नहीं है। अगर जेडीयू इस मुद्दे पर बीजेपी से अलग रास्ते पर चलती है तो ये उसके लिए भी आसान नहीं होगा, मुझे तो लगता है कि इसका फायदा भी बीजेपी को होगा। बहरहाल अभी 48 घंटे का इंतजार बाकी है, बीजेपी की अंतिम कोशिश है कि गठबंधन बना रहे, लेकिन ये आसान नहीं है। जो हालात हैं उसे देखकर तो मैं यही कहूंगा कि जो लोग जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव और नीतीश कुमार से गठबंधन ना तोड़ने की भीख मांग रहे हैं वो बीजेपी, संघ और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। वैसे भविष्य तय करेगा, लेकिन इस मुद्दे पर कही जेडीयू ही टूट जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 




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Tuesday, June 4, 2013

याद करो "बाबा" की कारस्तानी !

मैं बाबा रामदेव को "बाबा" नहीं मानता हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि "बाबा" में जो गुण होने चाहिए, वैसा कुछ भी इनमें नहीं है, लिहाजा इन्हें रामदेव यानि रामू का संबोधन ही करूंगा। मुझे याद है दो साल पहले दिल्ली में योग शिविर के नाम पर देशभर से तमाम लोगों को यहां जमा किया गया और बाद में रामू कालाधन के मामले में सरकार से सौदेबाजी करने लग गया। सबको पता है रामू ने देश को धोखा दिया। बात पुरानी है, पर याद कीजिए उन्होंने एक दिन पहले ही यानि तीन जून 11 को सरकार के साथ अंदरखाने समझौता कर लिया था। फिर भी रामू का ड्रामा जारी रहा। खुद कह रहे थे कि उनकी  90 फीसदी बात मान ली गई है, बस  कुछ ही रह गई है। लेकिन सच्चाई ये है कि कपिल सिब्बल के साथ मीटिंग में एक दिन पहले ही वो सभी मुद्दों पर समझौता कर चुके थे। इतना ही नहीं उन्होंने ये समझौता लिखित में किया था। अगले दिन के लिए उन्होंने सरकार से सिर्फ छह घंटे वो  भी तप के लिए अनुमति मांगी और कहाकि चार जून को दोपहर ढाई बजे तक सब खत्म कर दूंगा। ये समझौता करने के बाद भी रामदेव के चेले सुबह मंच से चंदा वसूल रहे थे। क्या सब ड्रामा चंदे के पैसे के लिए था। पढिए उस वक्त की सनसनीखेज रिपोर्ट।

हालांकि मेरा मानना है कि रामदेव (रामू) पर ज्यादा बातें करना समय की बर्बादी भर है। अब वो पूरी तरह कारोबार कर रहे हैं और उन्हें उसी नजर से देखा जाना चाहिए। अगर दो साल पहले की बात याद की जाए तो मैं रामदेव की असलियत जानकर हैरान हूं। वो सरकार से क्या बात कर रहे थे और अपने चेलों को क्या बता रहे थे। बहरहाल मुझे सरकार से सिर्फ एक बात की शिकायत है, उन्हें रात में सोये हुए लोगों को पर लाठी बिल्कुल नहीं चलानी चाहिए थी, वरना बेवजह दिल्ली में डेरा डाले लोगो को यहां से खदेड़े जाने को तो मैं पूरी तरह जायज मानता हूं। अब हर मुद्दे पर छोटी छोटी बात रखता हूं, जिससे आपको पूरे घटनाक्रम को समझने में आसानी होगी ।

दिल्ली में सरकार है ना
रामदेव के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में मित्रों से बात हो रही थी। सबके अलग अलग विचार थे। मेरी भी राय पूछी गई। मैने साफ कहा कि दिल्ली में मुझे पहली बार लगा कि यहां कोई सरकार काम करती है। सत्याग्रह के नाम यहां जमें नौटंकीबाजों को देर रात में हटाना सही है, या गलत ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन मैं सरकार के इस साहस की तारीफ करुंगा कि उन्होंने इतनी बड़ी भीड़ को बलपूर्वक हटाने का फैसला किया। इससे उन लोगों को सबक मिलेगा जो भीड़ को आगे कर सरकार को बंधक बनाने की कोशिश करते हैं। इस फैसले के बाद अब विरोधी कमजोर सरकार और कमजोर पीएम का राग अलापना तो बंद कर ही देगी।

संतों ने रामदेव से किया किनारा
अनशन के पहले सिर्फ एक धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर जी रामदेव का समर्थन कर रहे थे, लेकिन इनकी हरकत देख बाद में उन्होंने भी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके अलावा देश में तमाम धर्मगुरु हैं, पर कोई भी धर्मगुरु रामदेव के साथ खड़ा क्यों नहीं हो रहा है। क्या रामदेव के साधु धर्म की असलियत की जानकारी सभी धर्मगुरुओं को हो गई है। एक डाक्टर पिट जाता है, देश भर के डाक्टर एकजुट हो जाते हैं, एक इंजीनियर की पिटाई होती है, सभी इंजीनियर हड़ताल पर चले जाते हैं, पत्रकार की पिटाई के खिलाफ पत्रकार एकजुट हो जाते हैं। लेकिन ये बात रामदेव को सोचनी चाहिए क्यों आज उनके साथ धर्मगुरू नहीं हैं।

रामदेव की कारस्तानी

 बाबा रामदेव सरकार से कुछ बातें करते रहे और लोगों को दूसरी बात बता रहे थे। हुआ ये कि एयरपोर्ट पर जब मंत्रियों के ग्रुप से रामदेव की बातचीत हुई, तभी ज्यादातर मामलों में सहमति बन गई थी। लेकिन रामदेव सभी मामलों में लिखित आश्वासन चाहते थे, लिहाजा तय हुआ कि अगले दिन यानि तीन जून को फिर मिलते हैं और सभी बिंदुओं पर लिखित आश्वासन दे दिया जाएगा। अगले दिन सरकार की ओर से रामदेव को फोन कर बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया तो, रामदेव कुछ बेअंदाज लहजे में बात कर रहे थे। जैसे मैं नार्थ ब्लाक में बात नहीं करुंगा। जबकि नार्थ ब्लाक और साउथ ब्लाक में केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण आफिस हैं। यहां बातचीत की एक अलग गरिमा होती है। बहरहाल बाद में रामदेव बात के लिए होटल में मिलने को तैयार हो गए। यहां बातचीत से रामदेव पूरी तरह समहत हो गए और सहमति का पत्र भी कपिल सिब्बल को तीन जून को ही थमा दिया और सरकार से उन्होंने आग्रह किया कि अब वो अनशन नहीं करेंगे, लेकिन उन्हें एक दिन तप करने की अनुमति दी जाए। चार जून को दोपहर ढाई बजे तक मैं सब समाप्त कर दूंगा।

वादे से पलटे रामदेव
वादे के मुताबिक रामदेव को दोपहर ढाई बजे तप खत्म करना था। इस दौरान भी उनकी लगातार सरकार से फोन पर बातचीत होती रही। और वो अब तब करते रहे। आखिर में रामदेव को चेतावनी दी गई कि अगर वो तप खत्म नहीं करते हैं तो सरकार के साथ जो समझौता उन्होंने तीन जून को किया है, उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा। इस पर रामदेव हिल गए और उन्होंने शाम को लगभग सात बजे खुद ही ऐलान किया कि उनकी सभी मांगे मान ली गई हैं, बस कुछ चीजें लिखित में आनी है और उसके बाद हम अपनी जीत मनाएंगे। यहां तक की रामदेव समेत सभी लोग मंच पर जयकारा भी करने लगे थे।

सरकार का रुख सख्त
एयरपोर्ट पर बाबा से मंत्रियों के मिलने से सरकार की काफी छीछालेदर हो चुकी थी। दरअसल मीडिया और बीजेपी ने इस मुलाकात को ऐसे पेश किया था जैसे सरकार रामदेव के आगे नतमस्तक हो गई है। रामदेव को सम्मान देने को जब सरकार की कमजोरी समझी जाने लगी तो सरकार सख्त हो गई और तय किया गया कि अब कोई मुरव्वत नहीं बरती जाएगी। जो बात रामदेव से लगातार हो रही है, अगर वो उसे मानते हुए तप खत्म नहीं करते हैं, तो सख्ती बरती जाएगी। रामदेव को ये बात पहले बताई भी गई थी। लेकिन वो भीड़ देख बेअंदाज थे, उन्हें लग रहा था कि इतनी बडी संख्या में लोग यहां है, पुलिस उनका कुछ नहीं कर पाएगी।

रामदेव और सलवार सूट
रामदेव शाम को काफी देर तक आक्रामक तेवर में बात कर रहे थे। वो शिवाजी और भगत सिंह की बात कर रहे थे। लेकिन पुलिस को देख 15 फीट ऊंचे मंच से वो महिलाओं के बीच में कूद गए। उन्हें लगा कि महिलाओं की आड़ लेकर वो यहां से चंपत हो सकते हैं। लेकिन लगातार कैमरे उन्हें कवर किए हुए थे, इसलिए भाग नहीं पाए। लेकिन जैसे ही अंधेरे का आड मिला, रामदेव अपना भगवा त्याग कर एक महिला के पहने हुए सलवार सूट को पहन कर भागने की कोशिश की। मेरा सवाल है, रामदेव जी आप तो मरने से नहीं डरते, लेकिन पुलिस को देखते ही आपने अपना भगवा धर्म तो भंग किया ही, सत्याग्रहियों को उनके हालत पर छोड़ भागने की कोशिश की।

रामू ने पिटवाया सत्याग्रहियों को
रामदेव के पास जव पुलिस पहुंची और उन्हें बताया कि रामलीला मैदान में योग कार्यक्रम की अनुमति रद्द कर दी गई है तो रामू अगर पुलिस को सहयोग करते तो यहां कोई उपद्रव नहीं होता। पुलिस अधिकारी चाहते थे कि रामू लोगों को खुद संदेश दें की वो यहां शांति बनाए रखें और पुलिस जैसा कहती है वैसा ही करें, क्योंकि पुलिस ने तमाम बसों का इंतजाम किया था जिससे लोगों को रेलवे स्टेशन या बस अड्डे तक पहुंचाया जा सके। लेकिन रामू जब महिलाओं के बीच में कूदे, तब पुलिस को हरकत में आना मजबूरी हो गई। इस तरह से रामू के सहयोग ना करने के कारण ही वहां लाठी चली, और हां जिस तरह से रामू ने उतनी ऊंचाई से छलांग लगाई वो कोई साधु संत तो नहीं लग सकता।

अनशन की हकीकत
हालाकि ये बात बहुत ही भरोसे से नहीं कही जा सकती, लेकिन रामदेव के करीबियों में ही कुछ लोग उनकी बचकानी हरकतों से खफा हैं। उनका कहना है कि रामू खुद मंच से कहते रहे कि 99 फीसदी मांगे मान ली गई हैं, तो फिर इन्हें तप नहीं करना चाहिए था। वैसे तप करने के पीछे एक वजह करोडों के चेक थे। बताते हैं कि दानदाताओं ने चेक अनशन के लिए दिया था। जब अनशन होता ही नहीं तो रामदेव को डर था कि लोग चेक को बैंक से स्टाप पेमेंट ना करा दें।

झूठ दर झूठ बोलते रहे रामदेव
मुझे लगता है कि कम से कम साधु संतो से इतनी अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि वो झूठ नहीं बोलेगें, लेकिन ये तो झूठ का पुलिंदा है। अनशन शुरु करने से पहले ही सरकार से सभी बातें कर चुके थे, लेकिन अपने ही भक्तों को इस बात की जानकारी नहीं दी। लोगों को उकसाने के लिए सत्याग्रहियों से कहते रहे, मुझे दबाने की कोशिश की जा रही है। मेरी हत्या की साजिश की जा रही थी। मेरा एनकाउंटर होने वाला था। डुपट्टे से मेरा गला घोंटने की तैयारी थी। वाह रे रामदेव जी.।