Friday, December 30, 2011

आओ: मनाएं नया साल



  
                             करें   परिवेश  का  मंथन,  मिलेगा  सत्य  शिव सुंदर,
                                            हलाहल भी अगर निकले, पिएं बन सौम्य शिव शंकर।

                                            मिटे संशय अनास्था तम् , मिटे विद्वेष और जड़ता,
                                             कुहासे  में  दबे  रवि की, पुन: बिखरे  सहज ममता।

                                            सुधा हो तन, सुधा  हो मन, सुधा चिंतन, सुधा वाणी,
                                            सुधा अपना, सुधा सबका, सुधा हो विश्व कल्याणी।

                                            उठो! ऐ देव संतानों, सुनों कुछ कह रहा कण-कण,
                                            सुधा  बन  जाए  मंथन का, सुनहरा  वर्ष ये नूतन।

नव वर्ष मंगलमय हो,
स्वागत            2012




Wednesday, December 21, 2011

जान देने वाले जाड़े से डर गए ...

लोकपाल बिल के मसले पर टीम अन्ना और सरकार के बीच चल रही नूरा कुश्ती जल्दी थमने वाली नहीं है। अब ये लड़ाई सड़कों पर वसूले जाने वाले टोल टैक्स की तरह हो गई है, जो अनंतकाल तक चलती रहेगी। दिल्ली से शुरू होकर ये लड़ाई अब मायानगरी यानि मुंबई पहुंच गई है। अब देखिए अन्ना जी लोकपाल के लिए जान देने की बात कर रहे थे, जाड़े से डर गए।

खैर मुझे उनकी सेहत की चिंता है, आप स्वस्थ रहें, मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। अन्ना जी दिल्ली में वाकई ठंड बहुत होती है, इसीलिए यहां लोग शाम को दो ड्रिंक्स ले लेते हैं। अब आम आदमी तो ऐसा नहीं कर सकता ना कि ठंड हो तो मुंबई खिसक ले, बेचारे दो ड्रिंक्स लेकर किसी तरह यहीं डटे रहते हैं। अच्छा हुआ आप यहां से चले गए नहीं, आप लोकपाल छोड़कर लोगों को पेड़ बांधकर पीटने में लग जाते। पता लगा कि लोकपाल मूवमेंट से 
जुडे लोग शराब छुडाने के लिए लोगों पर लाठियां भांज रहे हैं। 

अन्ना जी आज खुद को ठगा से महसूस कर रहे है, कल मैने टीवी पर उन्हें देखा, बहुत निराश लग रहे थे। दरअसल इसके लिए आप और आपकी टीम की बेअंदाजी जिम्मेदार है। लोकपाल कानून बने बगैर पूरे देश में जीत का जश्न मनाने के साथ ही देश की हर समस्या का समाधान आप लोग बताने लगे। बेअंदाजी भी ऐसी कि आम आदमी को लगने लगा कि ये लोग हत्थे से बाहर हो गए हैं। अरविंद केजरीवाल ने विभागीय बकाये का भुगतान प्रधानमंत्री को भेजा। हां भाई प्रधानमंत्री निवास पर बकाए के भुगतान करने के लिए काउंटर खुला है, कोई भी आए और यहां बकाये का भुगतान करे। प्रशांत भूषण जी कश्मीर समस्या का हल करने लगे और आप शराब पीने वालों को पेड़ से बांध कर पीटने की सलाह देने लगे। इतना ही नहीं चुनाव वाले इलाकों में जाकर एक पार्टी के खिलाफ जहर भी उगलने लगे।

अब राहुल गांधी के खिलाफ आप इसलिए आग उगलने लगे कि वो आपके गांव रालेगन सिद्धी के प्रधान से नहीं मिले। अन्ना जी जब आपने राहुल के खिलाफ जहर उगला तो मुझे हैरानी नहीं हुई, मुझे हैरानी तब हुई जब इस नौजवान ने आपकी बातों का आज तक कोई जवाब नहीं दिया। वैसे तो मेरा मानना है कि राहुल राजनीति की एबीसीडी नहीं जानता है, लेकिन उसके संस्कार की तारीफ करनी होगी। वरना किसी और नौजवान के बारे में आप टिप्पणी करके देखिए... खैर ज्यादा दूर नहीं बस वहीं राज ठाकरे को सीधे कुछ कह कर देख लें, उदाहरण वहीं मिल जाएगा। 

खैर विषयांतर हो रहा हूं। मेरा कहने के मकसद सिर्फ ये था कि अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ फोकस होकर लड़ाई लड़ते तो जनता पूरी तरह आपके साथ रहती। अब ये लड़ाई राजनीतिक हो गई है। इसमें जात धर्म की बात हो रही है। आप अनशन तुडवाने के लिए दलित और मुश्लिम बच्चियों को तलाशते हैं और मंच से इसका ऐलान कर छोटे बच्चों में जात धर्म का जहर बोते हैं। 

बहरहाल केंद्र सरकार जितनी कमजोर दिखाई दे रही थी, उसने जो लोकपाल का जो मसौदा तैयार किया है, उससे इतना तो साफ है कि वो एक सीमा के आगे नहीं झुक सकती और झुकना भी नहीं  चाहिए। प्रधानमंत्री जी देश आपको ईमानदार मानता है, भ्रष्टाचार का खात्मा कैसे हो, ये जरूर आप देखे और इस मामले में ठोस पहल जरूरी है। 

(नोट. दोनों तस्वीर खुशदीप के ब्लाग से साभार)

आप मेरे मुख्य ब्लाग आधा सच पर देख सकते हैं " बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री ... http://aadhasachonline.blogspot.com
  

Saturday, December 17, 2011

कांटा निकालिए प्रधानमंत्री जी ...

पैर में चुभा कांटा, जब चलने में मुश्किल पैदा करे, तो उसे निकालना जरूरी हो जाता है। भले ही आपको कितनी भी जल्दी हो आगे जाने की, लेकिन कुछ देर रुक कर अगर आपने कांटे को निकाल दिया तो, उसके बाद आपकी रफ्तार भी बढ़ जाएगी और कांटा चुभेगा भी नहीं। 
ये सामान्य सी बात देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ना जाने क्यों समझ में नहीं आ रही है। मुझे लगता है कि अब सही वक्त आ गया है जब सरकार के लिए मुश्किल पैदा करने वाले मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। किसी एक मंत्री के आचरण की वजह से अगर संसद बाधित हो जाए, तो इसे सामान्य घटना नहीं मानी जानी चाहिए। 
गृहमंत्री पी चिदंबरम पर गंभीर आरोप हैं। टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन के गोरखधंधे में ए राजा के साथ चिंदंबरम को शामिल बताया जा रहा है। सुब्रह्मयम स्वामी ने जितने सुबूत अब तक पेश किए है, उससे ये भले ना साफ हो कि वो चोरी में शामिल थे, परंतु चिदंबरम के भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, इसके लिए ये सुबूत पुख्ता हैं। अब अगर चिदंबरम के खिलाफ जांच के पुख्ता सुबूत हैं, तो उनके मंत्री रहते हुए भला जांच कैसे हो सकती है?
प्रधानमंत्री जी पांच मिनट रुकिए और सोनिया गांधी से सलाह कीजिए कि अब चिदंबरम को बाहर का रास्ता दिखाए बगैर सरकार को आगे चलाना संभव नहीं है। मनमोहन जी गृहमंत्री बहुत जिम्मेदारी का पद है, यहां दागी मंत्री को बैठाना ठीक नहीं है। आपने पूर्व गृहमंत्री शिवराज सिंह पाटिल को सिर्फ इसलिए सरकार से बाहर कर दिया था कि उन्होंने बम धमाके वाले दिन तीन बार सफारी सूट बदल दिया था। उनका अपराध इनके अपराध के मुकाबले कुछ भी नहीं था। इसलिए बिना ज्यादा सोच विचार किए चिदंबरम को तत्काल सरकार से बाहर का रास्ता दिखाएं।
अच्छा प्रधानमंत्री की तो मजबूरी है, उन्हें सब को साथ लेकर चलना होता है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि चिदंबरम में की क्या मजबूरी है। आप खुद को नेक इंशान, चरित्रवान, और ईमानदार मानते हैं। देश की संसद में आपका बहिष्कार चल रहा है, आपको लोग सुनने को तैयार नहीं है। बेईमानी का दाग लगा है, धोखाधडी करने वाले उद्योगपति को बचाने के लिए कुर्सी का बेजा इस्तेमाल के पुख्ता कागजात अखबारों और टीवी चैनलों के दफ्तर में पहुंच चुके हैं। देश आपके बारे में एक राय बना चुका है कि आप के कपडे जितने सफेद हैं, कामधाम उतना पाक साफ बिल्कुल नहीं है। वैसे भी सफेद कमीज पर दाग जल्दी लगती भी है और दिखती भी है। तो कुर्सी पर चिपके रहने की जिद्द क्यों है ? 
बहरहाल सियासी गलियारे से जो खबरे छन कर आ रही हैं, बताया जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान भी इस बात से अब सहमत है कि चिदंबरम से पीछा छुडा लिया जाना चाहिए, लेकिन मुश्किल ये है कि अगला गृहमंत्री बनाया किसे जाए। विकल्प मिलते ही चिदंबरम से कहा जाएगा कि गृहमंत्री रहते हुए उन्हें अपना केस लड़ने के लिए पूरा समय नहीं मिल पाएगा, लिहाजा वो कोर्ट में जाकर अपनी और अपने उद्योगपति मित्र की कानूनी लड़ाई लड़ें। 
वैसे प्रधानमंत्री जी आपका एक मंत्री और नाकारा है, जिसकी जिम्मेदारी होती है कि वो संसद सत्र के दौरान ऐसा फ्लोर मैनेज करे कि कम से कम जरूरी काम तो पूरे हो ही जाएं। लेकिन पहले नौ दिन एफडीआई के मामले में निकल गए, अब दो दिन चिंदबंरम जी के भेंट चढ गई। फ्लोर मैनेजर की हालत ये है कि संसद के भीतर वो विपक्ष को तो मैनेज कर नहीं पाए, सहयोगी दलों के सांसद भी शोर शराबा करते रहे।     

Friday, December 16, 2011

सचिन का भारत रत्न ...

भारत रत्न को लेकर नियमों जो बदलाव सरकार ने किए  है,  ये सही नहीं है। अभी तक कला, साहित्य, विज्ञान और लोकसेवा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने वालों को ही ये सम्मान दिया जाता था, लेकिन अब इसे किसी भी क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने वालों के लिए खोल दिया गया  है। मेरा मानना है कि किसी  भी क्षेत्र में शानदार उपलब्धि हासिल करने वाले को ये सम्मान देने का ऐलान कर सरकार इसमें भी राजनीति करने की सोच रही है। सच तो ये है कि भारत रत्न के नियमों में बदलाव की बात क्रिकेटर सचिन तेदुलकर को लेकर शुरू हुई थी। इसके अलावा अभी तक किसी और क्षेत्र में ये पुरस्कार देने की मांग नहीं हो रही है। अच्छा होता कि इसमें सिर्फ खेल को शामिल किया जाता।
" किसी भी क्षेत्र " शब्द का इस्तेमाल किए जाने से इस पुरस्कार की गरिमा पर धब्बा लगा है। अब सरकार इसे भी पद्मश्री बना देगी। क्योंकि इन पुरस्कारों में राजनीति होती है। कई क्षेत्रों में आज भी ऐसे लोग हैं, जिन्हे पद्मश्री मिल जाना चाहिए था, पर उन्हें नहीं दिया गया है और सत्ता के करीबियों को ये सम्मान दिया गया। 
सरकार बनाने और बचाने के खेल में भी कहीं  इसका इस्तेमाल शुरू ना  हो जाए। पिछले दिनों एक नेता का समर्थन जुटाऩे के लिए  एक एयरपोर्ट का नाम उस नेता के पिता के नाम कर दिया गया था। अब भारत रत्न भी चला करेगा। बहरहाल नियमों में बदलाव सचिन तेंदुलकर के लिए किया गया है तो उनके सौवें शतक पर उन्हें ये सम्मान देने का ऐलान कर दिया जाना चाहिए। हाकी के जादूगर ध्यानचंद्र को उसी समय ये सम्मान दिया गया होता तो ज्यादा बेहतर था, आज हाकी की जो हालात है, खैर उस पर चर्चा करना भी ठीक नहीं है।

Wednesday, December 14, 2011

ये है मौत का सौदागर ...

मुझे फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा को मौत का सौदागर कहने में कोई हिचक नहीं है। इसकी ठोस वजह भी है। मुंबई ताज होटल में घुस कर जब आतंकवादी बेगुनाहों की हत्या कर रहे और पूरा देश न्यूज चैनल के सामने बैठ कर आंसू बहा रहा था, उस समय देख का एक शख्श इस पूरे घटनाक्रम पर बहुत उत्साहित था। वो इस हादसे में अपने फिल्म की कहानी तलाश रहा था। उसे लग रहा था कि ये तो सुपर हिट फिल्म की स्टोरी है।

इस हादसे की हर बारीकियों को वो फिल्म में शामिल करना चाहते थेे, लिहाजा उनकी कोशिश थी कि कैसे जलते हुए ताज होटल तक पहुंचा जाए। आपको पता होना चाहिए कि जब ऐसी बड़ी घटना होती है तो वहां आम आदमी के प्रवेश को रोक दिया जाता है, क्योंकि ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मामला था, और सभी तरह के सुराग होटल से लेने थे, इसकी वजह से पूरा होटल परिसर को लगभग सील कर दिया गया था, क्योंकि इसमें सिर्फ देश की टीम को जांच नहीं करना था, बल्कि भारत ने अमेरिका और इज़राइल से भी जांच में सहयोग मांगा था। ऐसे में राम गोपाल वर्मा को लगा कि उनका होटल तक पहुंचना मुश्किल है। लिहाजा उन्होंने उस समय के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख और उनके पुत्र रितेश के साथ वहां पहुंच गए।

उस दौरान भी पूरे देश में हंगामा खड़ा हो गया था, लोगों ने कहा कि देश गमगीन है और रामू फिल्म बनाने के लिेए मौके का मुआयना कर रहे हैं। तब रामू ने सफाई दी थी कि न अभी उन्होंने इस पर फिल्म बनाने की सोची है और ना ही भविष्य मे बनाएंगे। लेकिन ये फिल्मों की दुनिया है, बाहर से राम दिखाई देती हैं पर हैं रावण। अब रामू ने खुद साफ कर दिया है कि वो इस पर फिल्म बना रहे हैं। जब फिल्म बना ही रहे हो तो नेता के बेटे रितेश को भी ओबलाइज कर दो, उसी के जरिए तो वहां पहुंचे थे रामू काका.....।

तस्वीर:- गुगल और न्यूज 24 से साभार

Tuesday, December 13, 2011

बेमानी है ये श्रद्धांजलि ...

मुझे लगता है कि कम से कम इस विषय पर तो राजनीति नहीं ही होनी चाहिए। संसद पर हमले के शहीद हुए लोगों को  यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी जब हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया जाएगा। इस घटना को याद करते हुए आज 10 साल बीत चुके हैं लेकिन सवाल एक आज भी रह रहकर काटता है। संसद पर हमले के मास्टर माइंड मोहम्मद अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी, लेकिन वोट के सौदागरों ने इस मसले को कुछ ऐसे रंग में रंग दिया कि  अफजल गुरु का केस फाइलों में बंद होकर सरकारी महकमें की इस फाइल को मोटा बनाता जा रहा है।
कहते हैं, कोर्ट कचहरी का मुकदमा कभी बूढ़ा नहीं होता लेकिन अपनों को खो चुकी आंखे आज बूढ़ी हो चुकी हैं। शहीदों के परिजनों को कई वादे मिले लेकिन आज तक पूरे न हो सके। किसी से बेटा बिछड़ा तो किसी की मांग सूनी हो गई लेकिन देश 10 साल बीत जाने के बाद भी गुनहगार को सजा दिए जाने की बाट जोह रहा है। अफजल गुरु की फांसी पर दया याचिका राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है।
आज इस मौके पर संसद भवन परिसर में आयोजित एक समारोह में हमले में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि की खानापूरी की गई। प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति समेत तमाम लोगों ने संसद भवन परिसर में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में हिस्सा लिया, लेकिन शहीद के परिवारों का भरोसा अब सरकार पर नहीं रहा, लिहाजा उन्होंने इस सरकारी आयोजन से खुद को दूर रखा। 
हमले के वक्त देश के उप-प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने मानते हैं  कि  गुनहगार को फांसी की सजा न हो पाना दुखद है, लेकिन देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद फांसी को कानूनी प्रकिया में दखल मानते हैं। सच तो ये है कि अफजल को सजा न मिल पाना आतंक के खिलाफ हमारी कमजोरी  को दिखाता है। सवाल सिर्फ एक अफजल का नहीं है...हमारी ढिलाई आज हमें बेबस बना रही है। यदि हमारे नीति नयंता दृढ़ता के साथ न खड़े हुए तो न जाने कितने साल और बीतेंगे, न जाने कितने अफजल और बनेंगे।

Sunday, December 11, 2011

कुमार का तोता राहुल या अन्ना ?

अन्ना के सहयोगी कुमार विश्वास ने जंतर मंतर पर धरना को संबोधित करते हुए कहा कि एक चुटकुला सुनाया। उन्होने कहा कि दिल्ली के चांदनी चौक में वो तोता खरीदने गए। दुकानदार ने कहा एक तोते का दाम 10 हजार बताया और कहा कि इसे पूरा गीता याद  है। दूसरे तोते की कीमत 20 हजार बताई और कहा कि इसे गीता और कुरान दोनों याद है। तीसरे तोते  की कीमत 30 हजार बताया और कहा कि इसे  गीता,  कुरान और बाईबिल तीनों याद है।

लेकिन एक तोता इनमें से बिल्कुल अलग था उसकी कीमत दुकानदार ने एक लाख बताया। जब दुकानदार से पूछा गया कि इस तोते की कीमत एक लाख है, आखिर इसकी खासियत क्या है ? इसे क्या क्या याद है ? दुकानदार ने कहा कि ये जानता तो कुछ भी नहीं है, लेकिन तीनों तोते इसे अपना बास  कहते हैं। इस चुटकुले पर खूब ताली बजी। यहां  तक की मीडिया के लोगों ने भी ताली ठोंकी।

अब जानकार लोगों में बहस शुरू हो गई कि आखिर कुमार विश्वास किसकी ओर इशारा कर रहे हैं ? एक ने कहा कि मुझे लगता है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ओर इशारा किया जा रहा है, लेकिन सामने से जवाब मिला कि ना ना राहुल गांधी तो फिर भी पढ़ा लिखा है और राजनीति को समझने की कोशिश में ही वो गांव-गांव जा रहे हैं। इसलिए ये बात उनके लिए नहीं हो सकती। 

फिर विश्वास ने ये बात किसके लिए कही होगी ? सामने जवाब दिया गया कि उन्होंने निश्चित  रूप से ये बात अन्ना के लिए की होगी,  क्योंकि उनके आसपास जो लोग हैं वो कुछ ना कुछ जानते है, अन्ना ही कम पढ़े लिखें है और सबसे कम जानते हैं। लेकिन उनकी टीम में शामिल पूर्व मंत्री, जाने माने वकील, पूर्व आईपीएस और पूर्व आईआरएस जैसे लोग अन्ना को अपना बास कहते हैं। 

कुमार विश्वास देश के लोगों के दिलों पर राज करते हैं अपने गीतों के जरिए। वो अध्यापक भी हैं, लेकिन जब इस तरह की बात करते हैं तो उनकी छवि रामलीला के जोकर जैसी हो जाती है, जिसका काम हर आधे घंटे बाद मंच पर आकर जनता का मनोरंजन करना होता है। 

Thursday, December 8, 2011

गर्भवती हो गई थीं साध्वी !

मुझे नहीं पता कि सच क्या है, लेकिन भगवाधारियों के बारे में समय समय पर जिस तरह की बाते सामने आती हैं, वो इस समाज की बहुत ही भयावह  तस्वीर सामने रखती हैं। मेरा मानना है कि आज भी संत समाज पर दुनिया यकीन करती है। यही वजह है कि कथा कीर्तन में हजारों लोग जमा होते हैं। पर एक के बाद एक ऐसे ही भगवाधारियों के बारे में कथा कहानी सामने आएगी, तो निश्चित ही संत समाज को भी कटघरे में खड़ा होना पडेगा। जब भी संतो पर ऐसे गंभीर आरोप लगते हैं, मेरे सामने स्वामी नित्यानंद की वो सीडी घूमने लगती है, जिसमें वो दक्षिण भारत की एक अभिनेत्री के साथ अश्लील हरकत करते हुए कैद  हुए थे।
आमतौर पर कोई महिला ऐसे संगीन आरोप नहीं लगाती है, फिर साध्वी तो यहां तक कह रही हैं कि वो गर्भवती हो गई थीं। उन्हें खाने के साथ कोई नशीला पदार्थ  दिया गया, उसके बाद स्वामी ने उनके साथ कुकर्म किया। बहरहाल एक महिला और संत से जुड़ा ये गंभीर मामला है, इसलिए अच्छा होगा कि साध्वी ने जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उसे ही आप सभी के सामने रखा जाए। वैसे भी इस मामले में पुलिस की जांच चल रही है।  देखिए साध्वी  ने जो पुलिस में रिपोर्द दर्ज कराई है वो ही शिकायती पत्र...

प्रार्थना पत्र
सेवामें 
श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय 
शाहजहांपुर।

विषय:- शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक शोषण कर जीवन बर्बाद करने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कार्रवाई करबाने के संबंध में। 
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महोदय, निवेदन है कि प्रार्थिनी साध्वी चिदर्पिता गौतम हाल निवासिनी एफ-14, फेस-2 श्रीराम नगर कालोनी बदायूं उत्तर प्रदेश, दिल्ली की मूल निवासिनी है। पारिवारिक पृष्ठ भूमि व व्यक्तिगत रुचि आध्यात्मिक और राजनैतिक होने के कारण परिवार में आते-जाते रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती निवासी मुमुक्षु आश्रम जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान लेने को प्रेरित करने लगे। उनके उत्कृष्ट विचारों का प्रार्थिनी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वर्ष 2००1 से उनके संपर्क में आने के बाद उनके दिल्ली स्थित सांसद निवास में रह कर राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने लगी। इस दौरान उनके साथ कई कमेटी दौरे और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर गई, जिससे प्रार्थिनी को वास्तव में एक अलग अनुभव व ज्ञान मिला। वर्ष 2००4 तक वह गुरु की ही तरह प्रार्थिनी को सिखाते रहे और प्रार्थिनी भी उन्हें संरक्षक मानते हुए शिष्या की ही तरह सीखती रही, उन पर प्रार्थिनी को भाई या पिता से भी अधिक विश्वास हो गया, तभी वर्ष 2००4 में वह प्रार्थिनी को जप-तप और धार्मिक अनुष्ठान कराने के लिए पे्ररित कर हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में ले आये। यहां उन्होंने ज्ञान बर्धक बातें सिखाई भीं, लेकिन अचानक प्रार्थिनी को उनकी नियत में परिवर्तन दिखने लगा, जिससे प्रार्थिनी किसी तरह से निकलकर भागने की मन ही मन युक्ति सोच ही रही थी कि तभी वह वर्ष 2००5 में अपने व्यक्तिगत अंगरक्षकों के बल पर अपनी गाड़ी में कैद कर शाहजहाँपुर स्थित मुमुक्षु आश्रम ले आये और आश्रम के अंदर बने दिव्य धाम के नाम से बुलाए जाने वाले अपने निवास में लाकर बंद कर दिया। यहाँ कई दिनों तक प्रार्थिनी पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने का दबाव बनाया गया, जिसका प्रार्थिनी ने विरोध किया, तो उन्होंने अज्ञात असलाहधारी लोगों की निगरानी में दिव्य धाम में ही कैद कर दिया, पर प्रार्थिनी शारीरिक सम्बन्ध बनाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थी, लेकिन अपने रसोईये के साथ साजिश कर खाने में किसी तरह का पदार्थ मिलबा कर उन्होंने प्रार्थिनी को ग्रहण करा दिया, जिससे प्रार्थिनी शक्तिहीन हो गयी। उसी रात शराब के नशे में धुत्त स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी पर टूट पड़े। विरोध करने के बावजूद वह प्रार्थिनी के साथ बलात्कार करने में कामयाब हो गये, लेकिन उनके दिव्य धाम स्थित निवास में कैद होने के कारण प्रार्थिनी कुछ नहीं कर पायी। बलात्कार करते समय उन्होंने वीडियो फिल्म बना ली थी, जिसे दिखा कर बदनाम करने व जान से मारने की धमकी भी दी, तभी दहशत के चलते उनके कुकृत्य की किसी से चर्चा तक नहीं कर पाई। उस एक दिन के बाद वह जब मन में आता, तब प्रार्थिनी का शारीरिक व मानसिक शोषण करते। यह सिलसिला अनवरत सालों-साल चलता रहा और प्रार्थिनी नरक से भी बदतर वह जिंदगी मजबूरी में इसलिए जीती रही क्योंकि चौबीस घंटे उनके द्वारा छोड़े गये असलाहधारी लोगों की निगरानी में रहती थी। इस बीच दिव्य धाम से बाहर भी गयी तो उनके लोग साथ ही जाते थे, जिन्हें उनका स्पष्ट निर्देश रहता था कि किसी से बात तक नहीं करने देनी है और न ही कहीं प्रार्थिनी की इच्छानुसार ले जाना है। शहर में रहते हुए लंबे समय बाद प्रार्थिनी को लगने लगा कि अब उसकी जिंदगी यही है तो स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को मन से पति रूप में स्वीकार करते हुए प्रार्थिनी भी उसी जिंदगी में खुश रहने का प्रयास करने लगी। महोदय इसी बीच प्रार्थिनी दो बार गर्भवती भी हुई। प्रार्थिनी बच्चे को जन्म देना चाहती थी, लेकिन स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी की इच्छा यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि उन्हें संत समाज बहिष्कृत कर देगा, जिससे सार्वजनिक तौर पर मृत्यु ही हो जायेगी। ऐसा होने से पहले या तो वह आत्म हत्या कर लेंगे या फिर प्रार्थिनी को मार देंगे। इतने पर भी प्रार्थिनी गर्भपात कराने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने अपने ऊँचे राजनैतिक कद का दुरुपयोग करते हुए पहले बरेली स्थित अज्ञात अस्पताल में और दूसरी बार लखनऊ स्थित अज्ञात अस्पताल में जबरन गर्भपात करा दिया, जिससे दोनों बार प्रार्थिनी को बेहद शारीरिक और मानसिक कष्ट हुआ और महीनों बिस्तर पर पड़ी रही। उस समय प्रार्थिनी की देखभाल करने वाला तक कोई नहीं था। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी को अपने लोगों की निगरानी में छोडक़र हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में जाकर रहने लगे। प्रार्थिनी कुछ समय बाद स्वत: ही स्वस्थ हो गयी और स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के वापस आने पर दोनों बार प्रार्थिनी ने जबरन कराये गये गर्भपात का जवाब माँगा तो उन्होंने प्रार्थिनी को दोनों बार बुरी तरह लात-घूंसों से मारा-पीटा ही नहीं, बल्कि एक दिन गले में रस्सी का फंदा डाल कर जान से मारने का भी प्रयास किया और यह चेतावनी देकर जान बख्शी कि जीवन में पुन: किसी बात को लेकर सवाल-जवाब किया तो लाश का भी पता नहीं चलने देंगे, तो दहशत में प्रार्थिनी मौन हो गयी और डर के कारण उसी गुलामी की जिंदगी को पुन: जीने का प्रयास करने लगी। इसी तरह उनके अन्य दर्जनों बालिग, नाबालिग व विवाहित महिलाओं से नाजायज संबंध हैं।
प्रार्थिनी को सामान्य देखकर स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी को कुछ समय पश्चात मुमुक्षु आश्रम के साथ दैवी सम्पद संस्कृत महाविद्यालय का प्रबंधक व एसएस विधि महाविद्यालय में उपाध्यक्ष बनवा दिया और पुन: प्रार्थिनी का भरपूर दुरुपयोग करने लगे, क्योंकि वह प्रार्थिनी से एक बार में लगभग सौ-डेढ़ सौ कोरे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाते और उनका अपनी इच्छानुसार प्रयोग करते, जिस पर प्रार्थिनी को आशंका है कि उन्होंने हस्ताक्षरों का भी दुरुपयोग किया होगा, लेकिन प्रार्थिनी ने सभी दायित्वों का निष्ठा से निर्वहन किया। इसके साथ ही स्वयं को व्यस्त रखने व मानसिक संतुलन बनाये रखने के लिये प्रार्थिनी ने आगे की शिक्षा भी ग्रहण की। प्रार्थिनी को हालात से समझौता करते देख वर्ष 2०1० में श्री शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ का प्रधानाचार्य भी नियुक्त कर दिया गया। प्रार्थिनी मन से दायित्व का निर्वहन करने लगी थी तो अब उनके असलाहधारी लोगों की निगरानी पहले की तुलना में कम हो गयी और प्रार्थिनी मोबाईल आदि पर इच्छानुसार व्यक्तियों से बात करने लगी। इस बीच बदायूं निवासी पत्रकार बीपी गौतम और प्रार्थिनी के बीच संपर्क स्थापित हुआ। प्रकृति व व्यवहार मिलने के कारण विवाह कर लिया, जिससे स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती बेहद आक्रोशित हैं, जिसके चलते वह प्रार्थिनी को धमका रहे हैं और उसका बकाया वेतन भी नहीं दे रहे हैं।
प्रार्थिनी ने जब उनसे मोबाईल पर वेतन देने की बात कही तो काफी दिनों तक वह आश्वासन देते रहे, लेकिन बाद में स्पष्ट मना करते हुए धमकी भी देने लगे कि वह उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे और पति को सब कुछ बताकर वैवाहिक जीवन तहस-नहस करा देंगे, साथ ही चेतावनी दी कि किसी से उनके बारे में चर्चा तक की तो चाहे तुम धरती के किसी कोने में जाकर छिप जाना, छोडेंगे नहीं। महोदय स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती के पास आपराधिक प्रवृति के लोगों का भी आना-जाना है, जिससे प्रार्थिनी उनकी धमकी से बेहद डरी-सहमी है, क्योंकि वह कभी भी कुछ भी करा सकते है, इसलिए प्रार्थिनी को सुरक्षा मुहैया कराते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कड़ी कानूनी कार्रवाई करबाने की कृपा करें। 
                                                                   प्रार्थिनी
                                                         (साध्वी चिदर्पिता गौतम)
                                                              पत्नी श्री बीपी गौतम
                                                              निवासी-एफ-14, फेस-2
                                                          श्रीराम नगर कालोनी-बदायूं।

Wednesday, December 7, 2011

सोचना क्या ? गंदा है पर धंधा है ...

रिटेल सेक्टर में एफडीआई को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच बना गतिरोध फिलहाल खत्म हो गया है। वैसे जिद्द पर अड़ी सरकार ने कहा कि वो इसे वापस नहीं ले रही है, बल्कि तब तक के लिए स्थगित जरूर कर रही है जब तक इस पर आम सहमति ना बन जाए। सरकार के इस कदम  को विपक्ष ने भी सराहा और संसद के दोनों सदनों में पूरे दिन शांतिपूर्ण तरीके से काम काज  शुरु हो गया।

अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण फैसला लिया सरकार ने जिसके लिए संसद की कार्यवाही नौ दिन तक बाधित रही । यानि विपक्ष के साथ ही सरकार के सहयोगी भी इस मसले पर सरकार के साथ नहीं थे, लेकिन सरकार जिद्द पर अड़ी हुई थी कि नहीं वो एफड़ीआई से पीछे नहीं हट सकते। संसद के रुख से साफ हो गया था कि बिना पीछे हटे संसद की कार्यवाही  सुचारू रूप से नहीं  चल सकती, लेकिन इस जिद्द के पीछे आखिर कौन था, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार के हाथ बंधे दिखाई दे रहे थे। फिर मेरा सवाल ये भी है कि अगर एफड़ीआई देश के लिए वाकई फायदेमंद थी तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वैसा रुख क्यों नहीं अपनाया जो न्यूक्लीयर डील के दौरान अपनाया था। उस समय प्रधानमंत्री ने सरकार को दांव पर लगा दिया था, वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। ममता की धमकी के आगे क्यों झुक गई सरकार...। 

दरअसल मुझे लगता है कि सरकार यहां वालमार्ट के दबाव में काम कर रही थी। वो वालमार्ट को दिखाना चाहती थी कि हम तो बहुत चाहते हैं कि एफडीआई को मंजूरी मिल जाए, लेकिन विरोध काफी है, और विरोध की धार वो वालमार्ट को भी दिखा रहे थे, यही वजह है कि वालमार्ट को साधने में नौ दिन लग गए। मित्रों हमारे देश में "लाइजनिंग" को मान्यता नहीं है, लेकिन दुनिया के कई देशों में लाइजनिंग को कानूनी दर्जा मिला हुआ है। जानकार बता रहे हैं कि विदेश लाइजनर पिछले दो तीन सालों से देश में डटे हुए हैं और वो नेताओं के साथ ही मंत्रियों के संपर्क में हैं। वो लाइजनिंग करने में "सबकुछ" इस्तेमाल करते हैं।

दोस्तों ये सबकुछ को समझना बहुत जरूरी है। किसी को खुश करने के लिए जितनी भी चीजें और तरीके शामिल हैं, वो सब इसमें शामिल है। मुझे लगता है कि जो कुछ मैं कहना चाहता हूं आप समझ गए होंगे। पता चला है कि लाइजनर ने  एफडीआई के लिए भारत में भी कई करोड़ रुपये खर्च किए हैं। ऐसे में अगर पहले ही सरकार एफडीआई से पीछे हट जाती तो हमारे नेता और अफसर वालमार्ट के नुमाइदों के सामने क्या मुंह दिखाते। इसलिए उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की कि हम तो चाहते हैं, लेकिन संसद में इसके लिए बहुमत नहीं है। 

अच्छा कहीं वालमार्ट के लिए लाइजनिंग करने वाले सभी मामलों  का खुलासा ना कर दें, इसलिए सरकार ने एफडीआई को वापस लेने के बजाए स्थगित किया है। यानि सरकार अभी भी वालमार्ट को ये समझाने की कोशिश करेगी कि हमने हथियार नहीं डाले हैं, हम आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे। बहरहाल पर्दे के पीछे का खेल बहुत गंदा है, पर ये भी क्या करें इनका तो धंधा है। 
 

Tuesday, December 6, 2011

दिल है कि मानता नहीं ...

आमतौर पर मैं बड़े या छोटे पर्दे के अभिनेता और अभिनेत्रियों के बारे में लिखता नहीं हू, क्योंकि ये ना मेरा विषय है और ना ही मेरा टेस्ट। लेकिन पाकिस्तान की मशहूर अभिनेत्री वीना मलिक इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। लिहाजा मुझे भी अपनी खामोशी तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। मै जानता हूं कि मेरे ब्लाग पर कम से कम 18 साल की उम्र से ज्यादा के लोग ही आते हैं, इसलिए मैने ये हिम्मत की है। इसके पहले कि इस आलेख पर आप मुझे खरी खरी सुनाएं, मैं पहले ही खेद व्यक्त कर दे रहा हूं।

वीना मलिक को पाकिस्तान के लोग पहले से जानते होंगे, लेकिन हमने तो पहली बार उनका नाम तब सुना जब पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहम्मद आसिफ पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा, और उनकी गर्लफ्रैंड रही वीना मलिक ने कहा कि उन्हें भी कुछ कुछ ये जानकारी है कि वो मैच फिक्सिंग में शामिल रहे हैं। इस विवादित बयान के बाद सुर्खियों में आई वीना को पिछले साल बिग बा़स ने अपने घर का मेहमान बनाया।

 वीना हिंदुस्तान के नौजवानों पर राज करना चाहती थीं, लिहाजा उन्होंने इस घर का बखूबी इस्तेमाल किया और इसके लिए मोहरा बनाया छोटे पर्दे के कलाकार अस्मित को। अस्मित के साथ उनकी चुहलबाजी तो लोग देख चुके हैं। हांलाकि इसी बिग बास के घर में एक बार वो बाथरुम से तौलिया लपेट कर बाहर आ रही थीं और उनका ये तोलिया गिर गया था। फक्क पड़ी वीना की समझ में नहीं आया कि वो क्या करें, लेकिन बिग बास ने बड़प्पन दिखाया और ये दृश्य उन्होंने पब्लिक होने से वैन कर दिया।

लगता है वीना शोहरत की भूखी हैं या फिर सुर्खियों में रहने की उन्हें बीमारी है। अब वो एक मैग्जीन के कवर पेज पर छपने के लिए न्यूड फोटो खिंचवाने को तैयार हो गईं। ये मैग्जीन मार्केट में आई तो हाय तौबा मचना ही था, तो खूब हो हल्ला हुआ। इस मैग्जीन को लेकर पाकिस्तान में ज्यादा बवाल मचा हुआ है। इसे गुस्से को शांत करने के लिए वीना ने साफ किया है कि उनकी तस्वीर के साथ छेडछाड़ की गई है, जबकि मैग्जीन के एडीटर ने दावा किया है कि फोटो सेशन का वीडियो भी उनके पास है, और तस्वीर के साथ किसी तरह की छेडछाड़ का कोई मतलब ही नहीं है।

बहरहाल अब वीना मलिक के वकील ने मुकदमा दायर कर मैग्जीन के एडीटर और फोटोग्राफर को आरोपी बनाया है। उनका कहना है कि इस तस्वीर से उनकी मुवक्किल की छवि को बुरी तरह नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए उन्होंने 10 करोड रुपये का हर्जाना मांगा है। इसके अलावा उन्होंने मैग्जीन की सभी प्रतियों को तत्काल मार्केट से वापस मंगाने को भी कहा है। अच्छा मुझे तो न्यूड फोटो की बात ही आसानी से समझ में नहीं आ रही, फिर उन्होंने बांह पर आईएसआई क्यों लिखवाया, कहीं विवाद को और हवा देने के लिए तो नहीं।

वैसे सच क्या है ये तो वीना या फिर मैग्जीन के एडीटर और फोटोग्राफर जानते हैं। पर मुझे तो लगता है कि दोनों के बीच ये मामला फिक्स है। इस तस्वीर के जरिए वीना सुर्खियों में तो आ गई हैं, अब उन्हें अपने देश वापस भी जाना है, लिहाजा कानूनी कार्रवाई कर इस पूरे विवाद को ठंडा करने की कोशिश भी हो सकती है। मेरा तो यही मानना है कि कामयाबी के लिए इस छोटे रास्ते का समर्थन ना भारत के लोग करेंगे और ना ही पाकिस्तान के, अभिनेत्री हैं इसलिए इनका दिल है कि मानता नहीं।









Monday, December 5, 2011

क्यों बदल गए अन्ना ...

सी साल लगभग सात महीने पहले जनलोकपाल बिल के लिए इस आंदोलन की शुरुआत हुई । जंतर मंतर पर अन्ना आमरण अनशन पर बैठे । इस आंदोलन को देश की आम जनता के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी समर्थन दिया । दो  दिन में जंतर मंतर उमडी भीड़ को देखकर टीम अन्ना बेलगाम हो गई और उन्होंने मंच से ही नेताओं की खबर लेनी शुरू कर दी । नेताओं को भ्रष्ट  बताया गया और देश के बिगड़े हालात के लिए जिम्मेदार भी । हालाकि मैं भी ये मानता हूं देश की बर्बादी के लिए राजनीतिक  दल  ही जिम्मेदार हैं, वो चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी । कोई किसी से कम नहीं है, जिसे जब मौका मिला वो हाथ साफ करने से पीछे नहीं रहा। 

चलिए कोई बात नहीं गाली सुनने के बाद भी नेताओं को ये लग रहा था कि अन्ना का आंदोलन देश को सही रास्ते पर ले जाने के लिए है, इसलिए वो इस आंदोलन को पार्टी लाइन से हटकर समर्थन देने के लिए जंतर मंतर आना चाहते थे, लेकिन अन्ना ने साफ इनकार कर दिया कि उन्हें नेताओं का समर्थन नहीं चाहिए । फिर भी उत्साह में कुछ नेताओं ने जंतर मंतर की ओर का रुख किया तो अन्ना के समर्थकों ने नेताओं को वहां  से खदेड़ दिया । बहरहाल सरकार  के आश्वासन के बाद अन्ना ने अनशन तोड़ दिया । इसके कुछ ही महीने  बाद रामलीला मैदान में अनशन के दौरान भी नेताओं पर सीधा हमला किया गया ।

लेकिन अचानक  अन्ना की समझदारी में इजाफा कैसे हो गया ?  जिन नेताओं को मंचो से खुलेआम अन्ना चोर और भ्रष्ट बता रहे थे, अचानक  उनके आगे नतमस्तक क्यों हो गए ?  सभी राजनीतिक दलों के नेताओं  के घर जाकर उन्होंने मत्था टेका ।  यहां तक लालू यादव जैसे नेता से मिले, जबकि लालू पर  कितने गंभीर  भ्रष्ट्राचार के आरोप हैं । अगर  अन्ना को लोगों के घर ही जाना था, तो  नेताओं को जंतर मंतर आने से क्यों मना किया ?
खैर ये तो रही पुरानी बातें, अब 11 दिसंबर को  एक दिन का  सांकेतिक धरना जंतर मंतर पर प्रस्तावित है ।

 अन्ना सभी नेताओं को वहां आने का न्यौता दे रहे हैं । एक तरफ वो आर पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं नेताओं से जंतर मंतर   पर बहस की चुनौती भी दे रहे हैं । मुझे नहीं समझ में आ रहा है क्या अन्ना और उनकी  टीम को नहीं पता था कि ये नेता ही कानून बनाएंगे । मित्रों सब पता था । सच ये है कि  जनता का समर्थन देख  टीम अन्ना हत्थे से बाहर हो गई। सबने खुद को राष्ट्रीय नेता मान लिया और बड़ी बड़ी छोड़ने लगे। 

अन्ना लोगों की शराब छुडाने लगे । कहा कि शराब पीने वालों  को बांधकर डंडे  से पीटो । अन्ना जी आप तो दिल्ली में  27 दिसंबर से बैठ रहे हो ना अनशन पर । रामलीला मैदान में शराब पीने वालों पर पाबंदी लगी तो आप  और टेट वाले ही आमने सामने बैठे  दिखेंगे । गांव  और देश  में अंतर है अन्ना । 

दूसरे  सदस्य प्रशांत भूषण कश्मीर जैसे गंभीर मसले को सुलझाने लग गए । खैर जिस जनता ने उन्हें समर्थन दिया था, उसी जनता ने उन पर हमला कर ये बताने की कोशिश की कि ज्यादा उड़ना ठीक नहीं  है।
अरविंद केजरीवाल अपनी टीम के साथ चुनाव मैदान में कांग्रेस का विरोध करने सड़क पर आ गए । हास्यास्पद ये कि अपने गृहनगर हिसार में प्रचार किया । यहां उन्हें  पहले ही पता था कि कांग्रेस  उम्मीदवार तीसरे नंबर पर है, हारना तय है तो   हराने का श्रेय लेने पहुंच गए । 

टीम के ईमानदार लोग धीरे धीरे कटने लगे हैं इस आंदोलन से, चाहे वो  मैग्सेस अवार्ड विजेता राजेन्द्र जी हों या फिर पूर्व जस्टिस संतोष हेगड़े । बहरहाल अब नेताओं की  जरूरत अन्ना  को महसूस होने लगी है,  उन्हें  समझ में आ गया है कि नेताओं के बगैर उनका मकसद पूरा नहीं  हो सकता, इसलिए अब रुख में नरमी आई है । पर अब नेताओं को टीम अन्ना पर भरोसा नहीं है, क्योंकि टीम अन्ना भी तो दूध की धुली नहीं है ।  





Saturday, December 3, 2011

मैं जिदगी का साथ निभाता चला गया....


आज देश ने वो हीरा  खो  दिया, जिसकी भरपाई बिल्कुल आसान नहीं है । लगता है ये  गाना उन पर सिर्फ  फिल्माया  ही नहीं गया है, बल्कि ये कहें के  उनके  लिए ही लिखा  गया था तो  बिल्कुल गलत नहीं  होगा । क्योंकि हकीकत भी यही है कि "  वो जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।  "

जी हां हम बात कर रहे हैं हर दिल  अजीज,  सदाबहार हीरो धर्मदेव आनंद उर्फ देवानंद की। 1923 में जन्मे देवानंद ने कल 3 दिसंबर 11 को अंतिम  सांस ली। देवानंद साहब ने 100 से ज्यादा फिल्मों में किरदार  निभाया और उन्होंने  अपने  किरदार से दुनिया भर के लोगों के दिलो पर राज किया। सच कहूं तो  उनके जाने  से एक युग  का अंत  हो गया। 

देवानंद बनने  के लिए आज के  आज  के हीरो को " लेना होगा जनम उन्हें  कई  कई  बार..। " मित्रों ज्यादा कुछ  देवानंद के बारे में लिख  पाना मेरे लिए संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि लेपटाप पर उंगलियां  साथ  नहीं दे रही हैं। लेकिन इतना जरूर कहूंगा  कि सदाबहार,  हर दिल अजीज, जिंदा दिल ये सब कुछ  ऐसे शब्द  हैं जो अब  निरर्थक से हो गए हैं । दादा साहब फाल्के, फिल्म फेयर, पद्म भूषण जैसे  तमाम सम्मान उन्हें मिल चुका था। लेकिन मेरा मानना  है कि कुछ ऐसी शख्सियत होती हैं, जिन्हें  पुरस्कार दिए जाऩे से इन पुरस्कारों का मान बढता  है। देवानंद ऐसी शख्सियतों  में शुभार थे। 

मैं तो मित्रों बस यहीं  कहूंगा कि " अभी ना जाओ छोड़कर... कि दिल अभी भरा नहीं.. । मैं श्रद्धा से उन्हें  नमन करता हूं, मैं कोशिश करुंगा कि मेरी ओर से भी एक  फूल उनकी अर्थी  तक पहुंच  जाए, यही  मेरी ओर  से  उनके  लिए  सच्ची श्रद्धांजलि होगी।