Sunday, December 29, 2013

वाड्रा को बेईमान बता कर बने मुख्यमंत्री !

ज बिना लाग लपेट के एक सवाल  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना जाए कि केजरीवाल ने जितने भी आरोप आपके परिवार और पार्टी पर लगाएं है, वो सही हैं, इसलिए आपकी पार्टी उनके साथ खड़ी हैं, या फिर पार्टी में कहीं कई विचार पनप रहे हैं,  लेकिन सही फैसला लेने में मुश्किल आ रही है और आपका बीमार नेतृत्व पार्टी को अपाहिज  बना रहा है।  

खैर सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना अब कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। मेरी नजर में तो आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने एक ऐसी राजनीतिक भूल की है, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। सबको पता ही है किसी भी राजनीतिक दल को दिल्ली की जनता ने बहुमत नहीं दिया, लिहाजा लोग सरकार बनाने की पहल ना करते और ना ही किसी को समर्थन का ऐलान करते ! लेकिन कांग्रेस के मूर्ख सलाहकारों को लगा कि अगर वो आप को समर्थन का ऐलान करती है, तो ऐसा करके वो दिल्ली की जनता के दिल मे जगह बना लेगी और केजरीवाल जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पाएंगे, लिहाजा वो जनता का विश्वास खो देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। इधर पहले तो केजरीवाल समर्थन लेने से इनकार करते रहे और कहाकि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। इस पर कांग्रेसी दो कदम आगे आ गए और कहने लगे की उनका समर्थन बिना शर्त है, सरकार बनाकर दिखाएं। 

अब कांग्रेसियों की करतूतों से केजरीवाल क्या देश की जनता वाकिफ है, सब जानते हैं कि इन पर आसानी से भरोसा करना मूर्खता है। लिहाजा केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो जनता से पूछ कर इसका फैसला करेंगे। इस ऐलान के साथ केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच निकल गए, और जनता की सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया। हर सभा में ऐलान करते रहे कि सरकार बनाते ही सबसे पहला काम भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे और दोषी हुई तो शीला दीक्षित तक को जेल भेजेंगे। आप पार्टी ने कांग्रेस पर हमला जारी रखा, लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि वो केजरीवाल को बेनकाब कर देंगे, इसलिए समर्थन देने के फैसले पर अडिग रहे। मैने तो पहली दफा देखा कि जिसके समर्थन से कोई दल सरकार बनाने जा रहा है वो उसके नेताओं को गाली सरेआम गाली दे रहा है और पार्टी कह रही है कि नहीं सब ठीक है। वैसे अंदर की बात तो ये भी है कांग्रेस में एक तपका ऐसा है जो पूर्व  मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोधी है, उसे लग रहा है कि केजरीवाल जब जांच पड़ताल शुरू करेंगे तो शीला की असलियत सामने आ जाएगी।

केजरीवाल ने शपथ लेने से पहले कांग्रेस को इतना घेर दिया है कि अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। शपथ लेने के दौरान भी केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वो किसी से समर्थन की गुजारिश नहीं करेंगे। बहुमत मिला तो सरकार चला कर जनता की सेवा वरना जनता के बीच रहकर उसकी सेवा। अब कांग्रेस के गले मे ये हड्डी ऐसी फंसी है कि ना उगलते बन रहा है ना ही निगलते बन रहा है। अगर कांग्रेस समर्थन वापसी का ऐलान करती है तो उसकी दिल्ली में भारी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। बता रहे हैं कि इस सामान्य मसले को पेंचीदा बनाने के बाद अब कांग्रेसी 10 जनपथ की ओर देख रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि 10 जनपथ में तमाम जानकार बैठे हैं, जो मुद्दे का हल निकाल देंगे। बहरहाल शपथग्रहण के बाद से जो माहौल बना है, उससे दो बातें सामने हैं। एक तो दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा, दूसरा दिल्ली में आराजक राजनीति की शुरुआत  हो गई है। 

वैसे आप कहेंगे कि सोनिया गांधी से सवाल पूछना आसान है, लेकिन किसी मुद्दे का समाधान देना मुश्किल है। मैं समाधान दे रहा हूं। एक टीवी  न्यूज चैनल के स्टिंग आँपरेशन में पार्टी के पांच विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हट कर बयान दिया और केजरीवाल को  पागल तक बताया। कांग्रेस आलाकमान को इस मामले को तत्काल गंभीरता से लेते हुए अपने पांचो विधायकों को पार्टी से निलंबित कर उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इससे दिल्ली की जनता में ये संदेश जाएगा कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अरविंद की आलोचना करने पर इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उधर विधायक दल बदल कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। अब ये रिस्क तो रहेगा ही कि कहीं विधायक बीजेपी में शामिल  होकर उनकी सरकार ना बनवा दें ? अगर ऐसा होता भी है तो हर्षवर्धन के मुकाबले अरविंद कांग्रेस को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। कुछ मिलाकर दिल्ली में एक सभ्य तरीके से राजनीति होती तो हम देख सकेंगे।