Sunday, November 4, 2012

बौड़म गड़करी का बड़बोलापन

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी अब अपना संतुलन खो बैठे हैं। भोपाल में रविवार को महिलाओं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जब उन्होंने स्वामी विवेकानंद की तुलना माफिया दाउद इब्राहिम से की तो लोग हैरान रह गए। गड़करी ने कहाकि स्वामी विवेकानंद और माफिया दाउद इब्राहिम दोनों का ही आईक्यू स्तर बराबर है। फर्क बस इतना है कि विवेकानंद ने अपने आईक्यू का इस्तेमाल देश के निर्माण में लगाया जबकि  दाऊद ने अपराध में। स्वामी विवेकानंद और दाउद के आईक्यू को एक जैसा बता कर गड़करी क्या साबित करना चाहते थे ? ये तो वही बता सकते हैं, लेकिन वहां मौजूद लोगों में किसी को ये बात समझ में नहीं आई। महिलाओं के कार्यक्रम दाउद की चर्चा आखिर क्यों ? मुझे तो लगता है कि गड़करी बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी खिसकती देख पटरी से उतर गए हैं। वैसे मेरा मानना है कि गड़करी का आईक्यू भी दाउद से कम नहीं है, जो एक छोटे से कार्यकर्ता होकर पार्टीध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच गए। एक  कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरे के लिए रास्ता साफ करा लिया, जबकि उनसे तमाम वरिष्ठ पार्टी नेता अभी तक इंतजार कर रहे हैं।

मुझे तो लगता है कि गड़करी की जुबान फिसली नहीं है, बल्कि इस बयान के पीछे गड़करी की गहरी साजिश है। दरअसल आजकल देश भर में जब भी गड़करी की बात होती है तो उनके भ्रष्टाचार की चर्चा हो रही है। नितिन इससे परेशान हो गए हैं। सच्चाई ये भी है कि उन्हें बीजेपी अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल देने का रास्ता भी साफ कर लिया गया था,  पर जिस तरह उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं, उससे अब उनका दोबारा अध्यक्ष बनना भी मुश्किल हो गया है। नितिन से संघ का भी मोह भंग होता दिखाई दे रहा है। लगता है कि इसी वजह से गड़करी उटपटांग कुछ भी बोल रहे हैं, जिससे लोगों का ध्यान उनके भ्रष्टाचार से से हट जाए। विवाद में तो वो रहें, लेकिन बात विवेकानंद और  दाऊद की हो। अगर गडकरी की ये सोच है तो एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए वाकई ये गंभीर मसला है। 

मेरा तो गड़करी को सुझाव होगा कि बिना देरी  किए अपने इस वक्तव्य पर देश से माफी मांगकर इस विवाद को यहीं खत्म कर दें। वरना उन्हें भी लोग बडबोला गड़करी कहकर गंभीरता से लेना ही बंद कर देंगे। मैं तो यही मानता हूं कि देश को शर्मशार किया है नितिन गड़करी ने।  


एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।   

Tuesday, October 9, 2012

सोनिया के दामाद या सरकार के ?

मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए। वैसे तो जवाब प्रधानमंत्री को ही देना चाहिए, भले जवाब देने के पहले वो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ विचार विमर्श कर लें। मेरा सवाल है कि व्यवसायी राबर्ट वाड्रा आखिर किसके दामाद हैं ? चलिए आपको जवाब देने में मुश्किल ना हो इसलिए आप्सन भी दे देता हूं।

ए.  सरकार के , बी. कांग्रेस पार्टी के, सी. सोनिया गांधी के और डी. यूपीए गठबंधन के

ये सवाल इस लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राबर्ट पर आरोपों का जवाब सरकार के मंत्री दे रहे हैं। वित्तमंत्री पी चिंदरबरम, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, राजीव शुक्ला, अंबिका सोनी समेत कुछ और मंत्री रावर्ट के पीछे मजबूती से खड़े हैं। इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि रावर्ट सरकार के दामाद हैं क्या ? क्यों ये सारे मंत्री बिना जांच के रावर्ट को क्लीन चिट दे रहे हैं। अच्छा सरकार के मंत्री के साथ कांग्रेस के नेता भी रावर्ट के मामले में इस तरह बयान दे रहे हैं, जैसे रावर्ट की कंपनी का लेखाजोखा कांग्रेस दफ्तर में ही तैयार होता है। अच्छा कांग्रेस के नेता अगर रावर्ट को क्लीन चिट देते हैं तो बात समझ में आती है। ना जाने क्यों यूपीए गंठबंधन में शामिल एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार भी उनके साथ खड़े हैं। आखिर ऐसा क्या है? सब एक ही भाषा बोल रहे हैं।

सच कहूं तो  जो मामले सामने आए हैं, उससे इतना तो साफ है कि वाड्रा की कमीज बेदाग तो बिल्कुल नहीं है। वाड्रा साहब अगर आपको अपनी साख की फिक्र है तो आप खुद आएं देश के सामने और सरकार से कहें कि मेरी जांच करा ली जाए, वरना देश में गलत संदेश जाएगा। वैसे आपका ग्राफ अब इतना नीचे आ चुका है कि आज देश में सर्वे करा लिया जाए तो प्रियंका गांधी जैसी बेटी को सब स्वीकार करेंगे, मैं भी। लेकिन आप जैसे दामाद के बारे में लोग सौ बार सोचेंगे। इसलिए आप अपनी जांच के लिए खुद पहल करें और आगे आएं।  


एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।    


Wednesday, October 3, 2012

मजा नहीं देती पुरानी महिला : श्रीप्रकाश

ज सुबह कुछ आईएएस अफसरों का फोन आया, कहने लगे हमारे एक आईएएस साथी पर सिर्फ आरोप है कि उसने ट्रेन में एक महिला के साथ छेड़छाड़ की कोशिश की तो आपने अपने ब्लाग पर उसकी तस्वीर डाल दी और केंद्रीय कोयलामंत्री श्रीप्रकाश ने देश ही नहीं दुनिया भर की महिलाओं की इज्जत उछाल दी तो आप खामोश हैं। दरअसल ये बात सच नहीं  है। सच ये है कि कुछ आफिस और घर के काम में इतना उलझा हूं कि समय नहीं मिल पाया । कल ही मुझे अपने दूसरे ब्लाग "आधा सच" पर अरविंद की नई पार्टी के बारे  में अपनी राय देनी पड़ी, फिर आईएएस अफसर की करतूत सामने आ गई। 

चलिए आपको अपने कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बारे में भी जानकारी दे दूं। कोयला मंत्री ने एक सार्वजनिक सभा में कहाकि "  महिला जब पुरानी हो जाती है तो मजा नहीं  देती " । इस बयान की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है। व्यक्तिगत  रुप से मेरा मानना है कि ऐसा मंत्री पद पर नहीं पृथ्वी पर रहने लायक नहीं है। 

मेरा सवाल है कि क्या श्रीप्रकाश जायसवाल के इस बयान से कांग्रेस पार्टी भी सहमत है ? अगर नहीं तो श्रीप्रकाश जायसवाल इस बयान के 24 घंटे से ज्यादा बीत जाने के बाद भी पार्टी और पद पर कैसे बने हुए हैं ?

दूसरा सवाल अगर श्रीप्रकाश जायसवाल अपना व्यक्तिगत अनुभव जनता के साथ शेयर कर रहे थे तो क्या उनके  घर उनकी पत्नी अभी भी  बनी हुई है ? अगर बनी हुई हैं तो क्या वह अपने पति के बयान से सहमत हैं ?

कांग्रेस की अध्यक्षा खुद महिला हैं। एक सवाल उनसे भी पूछना चाहता हूं। सोनिया जी मैंने देखा था जब संसद में महिला आरक्षण बिल पास नही हो पाया तो सच में आप दुखी थी । आपको इस बात की पीड़ा थी कि आधी आबादी को उसका  हक दिलाने  में आप कामयाब  नहीं हो पा  रही हैं। लेकिन आपका एक मंत्री जो विवादित है कोल ब्लाक आवंटन में, उसकी इतनी घटिया बात को आप सुनकर कैसे नजरअंदाज कर सकती हैं ? 

महिलाओं को आप आरक्षण मत दिलाइये, वो इतना  सक्षम हैं कि खुद चुनाव जीत कर संसद मे आ जाएंगी, लेकिन महिलाओं के साथ राक्षसी सलूक करने वालों के साथ मत खड़ी होइये। 

कानपुर की महिलाएं इस मंत्री के खिलाफ सड़कों पर  है, महिला आयोग ने मंत्री के करतूत की सार्वजनिक रूप  से निंदा की है। महिला आयोग ने इस मामले में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप  करने को कहा है। अब देश के महिलाएं आपकी ओर देख रही हैं कि ऐसे मंत्री के खिलाफ आप  क्या कार्रवाई करती हैं। वरना  देश की महिलाओं को लगेगा कि श्रीप्रकाश  ने  जो बात कही है,  उसको कांग्रेस का समर्थन हासिल  है, यानि पार्टी भी मानती है कि ज्यादा उम्र की महिलाएं मजा नहीं देतीं। 

हां आपको बता दूं  श्रीप्रकाश  ने  आज कहा है कि अगर उनकी बात महिलाओं को ठीक नहीं लगी है तो उन्हें खेद है। 



Tuesday, October 2, 2012

इस IAS को पहचान लो !

आपको पता है लखनऊ मेल वीआईपी ट्रेन कही जाती है। इसमें ज्यादातर बड़े नेता और हुक्मरान ही सफर करते मिलते हैं। एसी फर्स्ट और एसी टू में सामान्य लोगों को बर्थ मिलना बहुत मुश्किल है। ऐसे में जब सुबह सुबह खबर मिली की एक आईएएस अफसर ने चलती ट्रेन में लड़की के साथ दुराचार करने की कोशिश की,  तो पहले यकीन नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद मैने कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि हां ये बात सही है।
मां के साथ सफर कर रही एक लड़की के साथ आइएएस अधिकारी शशिभूषण  ने सोमवार सुबह दुराचार का प्रयास किया। ये देख बेचारी मां तो बिल्कुल घबरा गई और उसके शोर मचाने पर आईएएस भागकर बगल की एसी फर्स्ट बोगी में छिप गया। बहरहाल ट्रेन में चल रहे रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के सुरक्षा दस्ते ने दिलेरी दिखाई और बदमाश आईएएस को पकड़कर लखनऊ में जीआरपी के हवाले कर दिया। लेकिन सच तो ये है कि बदमाशों की पहुच बहुत दूर दूर तक होती है। उनके खिलाफ कार्रवाई हो सके, ये इतना आसान नहीं है। अब देखिए ट्रेन सुबह सात बजे के करीब लखनऊ पहुंच गई। इसके साथ ही ये मामला भी जीआरपी के पास आ गया।
शिकायतकर्ता लड़की भी मौजूद है और बदमाश आईएएस भी। लेकिन पुलिस भी तो बदमाशों के पाले में खड़ी रहती है, लिहाजा उसे रिपोर्ट दर्ज कराने में पांच घंटे लग गए। बताया गया कि आरोपी आइएएस अधिकारी की पैरवी के लिए भी यहां कई लोग सक्रिय हो गए । थाने में आरोपी आईएएस ने बताया कि रास्ते में लगेज महिला की बर्थ पर गिर गया था। उसे उठाने गया था। फिर महिला ने पहले उसका नाम पूछा, नाम से उसे पता लगा कि मैं अनुसूचित जाति का हूं तो वह चिढ गई और अभद्रता का आरोप लगा दिया। हंसी आती है पढे लिखे आईएएस पर । अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए ये बता रहा है कि मेरी जाति से वो नाराज हो गई। भाई जाति से आरक्षण लेते रहो, अब ये क्या बात है कि दुष्कर्म का आरोप लगे वहां भी जाति को आगे कर मुकदमा दर्ज होने से छूट पाने की कोशिश करो। बहरहाल पहली बार लगा कि यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फैसला कर लेते हैं, उन्होंने कई घंटे तक मामला दर्ज न करने पर नाराजगी जताई। इसके बाद अफसरों ने इंस्पेक्टर अनिल राय को निलंबित कर दिया। रेलवे कोर्ट ने दुराचार के आरोपी आईएएस को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। 

Tuesday, September 25, 2012

जय हो ! मोबाइल से ट्रांसफर कर देता है " कृपा "


निर्मल बाबा की तरह कृपा का कारोबार करने वाले बाबा देश के कोने-कोने में छुपे हैं। अब ताजा मामला फैजाबाद का है। अंडा बेच कर किसी तरह परिवार चलाने वाला पप्पू अब समागम के जरिए लोगों का इलाज कर रहा है। बेचारी भोली-भाली जनता की बीमारी ठीक होने की आस में यहां डेरा डाले हुए है और  पप्पुवा अपना उल्लू सीधा कर रहा हैं।

बस पपुआ को देखते ही आपकी बीमारी छू मंतर हो जाएगी। हालाकि यहां का राग निर्मल बाबा से थोड़ा अलग है। पप्पू बाबा ने ईशा मसीह के नाम की दुकानदारी खोल रखी है। यहां तड़पते लोगों का रोग देखते ही देखते भाग जाता है। इसके छूने से लड़कियां गिर पड़ती हैं, ईश्वर की कृपा ट्रांसफर होने लगती है और सारे रोग-दोष भाग खड़े होते हैं। पप्पुआ का दावा तो यह भी है कि वो मोबाइल से ही कृपा ट्रांसफर कर सकता हैं, इससे छोटी मोटी नहीं कैंसर जैसी बीमारी भी वो ठीक कर देता हैं। इस दरबार में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिनके पास पप्पू बाबा के चमत्कार के कई किस्से ना हों।

लेकिन पप्पू बाबा को यहां स्थानीय लोग फ्राड बता रहे हैं। यहां के अफसर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं, उनका कहना है कि जब तक कोई शिकायत ना करे, उसे कैसे पकड़ा जा सकता है। दरअसल पप्पू बाबा का पूरा नाम राजकुमार प्रजापति है। गरीब परिवार में पैदा हुआ पप्पू आठवीं के बाद नहीं पढ़ पाया। ये कुछ दिन तक अंडे का ठेला भी लगाया, लेकिन इसका कोई भी कारोबार नहीं जम सका। लिहाजा पप्पू बन गया बाबा, अंधविश्वास का कारोबार चल निकला।

पहले हम सबने निर्मल बाबा की कृपा देखी, स्वामी नित्यानंद का दिव्य ज्ञान और पॉल दीनाकरन के चमत्कार के दावे भी देखे हैं। लेकिन धर्म-आध्यात्म और विश्वास के परदे में अंधविश्वास और पाखंड फैलाने वालों की कमी नहीं है. इस कड़ी में एक नया नाम है पप्पू बाबा का. जो सिर्फ छूकर अपने भक्तों को मदहोश करने और फिर उसकी सारी मुसीबतों को छू-मंतर करने का दावा करता है। अब बताइये पप्पू ने तो निर्मल बाबा को काफी पीछे छोड़ दिया है, ये मोबाइल से ही कृपा ट्रांसफर कर देता है और सात समंदर पार बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।







Wednesday, September 5, 2012

हैप्पी.... टीचर्स डे

हाहहाहाह... कितना समय बदल गया। कल के टीचर सिर्फ यादों में रह गए हैं और आज का "टीचर" हमेशा साथ है। वो टीचर पूरे दिन पढ़ा पढ़ाकर दिमाग को थका देते थे, ये टीचर दिमाग को कितना शुकून देता है। अब देखिए उस पुराने टीचर का देश दुनिया में कितना सम्मान है, लेकिन बेचारे इस टीचर को तो घर में भी उतना सम्मान नहीं मिल पाता है, जितने का ये हकदार है।
चलिए जी आज के इस मुबारक मौके पर हम दोनों टीचर को दिल से याद करते हैं। हालाकि एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वो टीचर हमारे जीवन को सुधारने के लिए पूरे दिन डांट डपट करते रहे और इस टीचर की वजह से डांट डपट होती रहती है। उस टीचर के साथ जीवन का मकसद जुड़ा था और इस टीचर के साथ जीवन का अंतिम सत्य...।

चलिए जी कोई बात नहीं..  HAPPY TEACHER’s DAY

Wednesday, August 15, 2012

ई कइसन 15 अगस्त ...


हर अदमी परेशान हव,

हर अदमी पस्त हव ।

मार ओके पटक  के ,

जे कहै 15 अगस्त हव।

Wednesday, June 20, 2012

कत्तई ईमानदार नहीं है रक्षामंत्री ....

गांव में हमारे एक मित्र देश की सच्चाई को गांव की भाषा में बड़े ही आसान तरीके से समझाया करते हैं। उनका अंदाज हल्का फुल्का होता है, पर बात तो वो बहुत ही गंभीर करते हैं। चलिए पहले आपको दो लाइन उनकी पढा़ देते हैं, उसके बाद मूल विषय पर आता हूं। वो कहते हैं...

माई आन्हर, बाऊ आन्हर
हमैं छोड़, सब भाई आन्हर।
केके  केके दिया देखाई,
बिजुरी अस भौजाई आन्हर।

भोजपुरी की इन चार लाइनों का आपको अर्थ भी समझाता हूं। कहने का आशय ये है कि मां अंधी है, पिता भी अंधे हैं, उसके अलावा सारे भाई भी अंधे हैं। उसका कहना है कि ऐसे हालात में वो किस किस को रोशनी दिखाए,  यहां तक की दूसरे घर से आई उसकी भाभी भी अंधों जैसा व्यवहार कर रही है। ये चार लाइनें देश की मौजूदा व्यवस्था के लिए कही गई हैं। जहां बेहतरी की अब कोई उम्मीद नहीं दिखाई  दे रही है। इसकी वजह भी है। आदमी जिसे बहुत ज्यादा ईमानदार और अच्छा आदमी समझता है अगर उसके बारे में कुछ ऐसी वैसी बात पता चलती है, तो उसका पूरी व्यवस्था से भरोसा टूट जाता है। ऐसा ही कुछ किया है रक्षामंत्री ए के एंटोनी ने..



कहा जा रहा था कि रक्षामंत्री की पत्नी टीचर हैं और एक बहुत ही साधारण महिला है। हो सकता है कि उनकी बनाई पेंटिंग की बाजार की कीमत और भी ज्यादा हो, पर उनकी पेंटिंग पांच सितारा होटल खरीदते तो किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं मिलता। पर एयरोपोर्ट अथारिटी की खरीददारी से अब एंटोनी की ईमानदारी पर उंगली तो उठेगी ही। मैं तो दावे के साथ कह सकता हूं कि ईमानदार नहीं है रक्षामंत्री ए के एंटोनी।

Friday, June 15, 2012

राष्ट्रपति पद की आड़ में बंगालियों की जंग ....

दिल्ली में महाभारत तो महामहिम के लिए हो रही है. यानि यहां नए राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है। पर पूरे दिन टीवी चैनलों पर जो तस्वीर दिखाई दे रही है, उससे लगता है कि यहां प्रणव मुखर्जी और ममता बनर्जी के बीच कोई लड़ाई चल रही है। पूरा चुनाव प्रणव वर्सेज ममता दिखाई दे रहा है।
बंगाल के दो महत्वपूर्ण इस कदर एक दूसरे के विरोधी कैसे हो गए, ये बात किसी के भी समझ में नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले ही ममता की आत्मकथा ‘माई अनफ़ॉरगेटेबल मेमॅरीज’ प्रकाशित हुई है, इसमें ममता ने प्रणव मुखर्जी को अपना बड़ा भाई बताया है और कहा कि वो उनका बहुत आदर करतीं हैं। इस किताब में उन्होंने स्व. राजीव गांधी की भी खुल कर तारीफ की है। एक ओर राजीव गांधी की प्रशंसा दूसरी ओर सोनिया गांधी की बात को नकारना, प्रणव को बड़ा भाई बताना और उन्हीं के रास्ते में कांटे बोना। ये सब क्या हो रहा है, आसानी से किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे भी ममता जब भी केंद्र सरकार से नाराज होती हैं, तो प्रणव मुखर्जी ही उन्हें मनाते रहे हैं। उनके बीच बचाव के बाद ही रास्ता निकलता रहा है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि प्रणव एक दम से ममता की आंखों के किरकिरी बन गए। अंदर से जो बात छन कर बाहर आ रही है, उससे लगता है कि पूरी ममता समर्थन का कीमत मांग रही हैं। कीमत भी ऐसी जो देना संभव नहीं है। ये सही बात है कि पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने तमाम तरह के कर्जे ले रखें हैं और बंगाल को सालाना 21 हजार करोड़ रुपये सिर्फ ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है। ममता तीन साल के लिए ब्याज का भुगतान बंद कराना चाहती हैं। इसके अलावा एक स्पेशल पैकेज की मांग भी है। बंगाल को दिया गया तो यही पैकेज यूपी को भी देना होगा। 
प्रणव दादा की राजनीति में ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जिससे उन पर ये इल्जाम लगे कि राष्ट्रपति बनने के लिए उन्होंने सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया। लगता है कि मुखर्जी ने साफ मना कर दिया कि समर्थन के एवज में जो मांग की जा रही है, वो पूरी नहीं हो सकती। ऐसे में ममता जो कर रही हैं, उसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं।

चलते - चलते
हाहाहहाहाहहा टीएमसी नेता पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को भी मौका मिल गया ममता को गठबंधन धर्म समझाने का। ममता के जले पर नमक छिड़कते हुए श्री त्रिवेदी ने कहा कि ममता ने गठबंधन की मर्यादा को तोड़ा है। यूपीए सरकार में शामिल होने के बाद भी जिस तरह वो अपना अलग राग अलाप रही हैं, वो ठीक नहीं है। कहते है ना कि जब दिन खराब होता है तो आप हाथी पर बैठे रहे फिर भी कुत्ता काट लेता है। कुछ ऐसा ही इस समय ममता के साथ है। कल जो लोग सामने खड़े नहीं हो पाते थे, वो आज ममता को मर्यादा का पाठ पढ़ा रहे हैं।  
  

Thursday, June 14, 2012

खत्म होगा ममता का खेल ....

ममता बनर्जी का खेल खत्म होने वाला है। ममता की राजनीति को अगर आप थोडा भी समझते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि ये अविश्वसनीय, अड़ियल और जिद्दी है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इन्होंने खून के आंसू रोने पर मजबूर कर दिया था। ममता वही है, हां अटल जैसे स्वाभिमानी मनमोहन सिंह नहीं हैं, ये अपनी जब तक पूरी किरकिरी और थू थू नहीं करा लेंगे, कुर्सी छोड़ने वाले नहीं है। वरना तो जिस तरह से इनका नाम मुलायम और ममता ने राष्ट्रपति पद के लिए लिया है, उससे साफ हो गया है कि आप यूपीए गठबंधन के निर्विवाद नेता नहीं रहे। लिहाजा आपको सरकार और देशहित में तुरंत कुर्सी छोड़कर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। खैर मनमोहन से ऐसे आदर्श की उम्मीद करना बैल से दुहना जैसा है।

खैर अब ममता की मुसीबत बढ़ने वाली है। वो कहने है ना ......... घर का ना घाट का। वैसी ही स्थिति बनने होने जा रही है ममता की। ममता की आज तक किसी से नहीं बनी है, तो भला मुलायम सिंह यादव से कितनी देर बनी रहेगी। ममता कभी भी सोच समझ कर ठंडे दिमाग से फैसला नहीं करती हैं। उनका  राजनीतिक मान मर्यादा से कोई सरोकार नहीं है। उनके लिए राष्ट्रपति का चुनाव और ग्राम प्रधान के चुनाव में कोई अंतर नहीं है। इस बार ममता मुलायम को समझने में धोखा खा रही है। उन्हें पता होना चाहिए कि मुलायम की आय से अधिक संपत्ति के मामले में बहुत फुरे फंसे हुए हैं, यही वजह है कि न्यूक्लीयर डील के दौरान जब यूपीए 1 से वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस लिया था, तो मुलायम झट से 10 जनपथ पहुंच गए और सरकार को समर्थन का ऐलान कर दिया। जबकि सबको पता है कि वामपंथियों से समाजवादी पार्टी के बहुत अच्छे रिश्ते थे। ये बात जानते हुए भी ममता ने मुलायम पर भरोसा किया है, जल्दी उन्हें मुलायम की हकीकत की जानकारी हो जाएगी।

सच ये है कि कांग्रेस को मुलायम की जरूरत है, उतना ही सच ये भी है कि मुलायम को कांग्रेस की कहीं ज्यादा जरूरत है। मुलायम के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति का मामला अभी भी विचाराधीन है और इसमें मुलायम सिंह बहुत बुरी तरह फंसे हुए हैं। ऐसे में मुलायम नहीं चाहेंगे कि उनकी छीछालेदर हो। ये डर उन्हें काफी समय से बना हुआ है, यही वजह है कि यूपीए वन को भी उन्होंने समर्थन दिया था, ये समर्थन उस समय भी जारी था, जब केंद्र सरकार समाजवादी पार्टी की कोई भी मांग मानने को तैयार नहीं थी। अभी भी मुलायम सिंह सरकार को बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं। पर ताजा हालात जो बन रहे हैं, उससे लगता है कि अब कांग्रेस ममता को किनारे लगाएगी और मुलायम को सरकार के अंदर लाने की पूरी कोशिश होगी। इतना नहीं मुलायम को कुछ अच्छे मंत्रालयों की भी पेशकश की जा सकती है। बहरहाल मामले चल रहे हैं, अभी कुछ भी अंतिम नहीं हो सकता है, पर ममता की मुश्किल जरूर बढने वाली है।   
   

Tuesday, June 12, 2012

प्रणव दा के राष्ट्रपति बनने की कीमत ....

रीब करीब अब तय हो गया है कि केंद्र सरकार में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ही यूपीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे। छोटी मोटी बातों की अनदेखी कर दी जाए तो श्री मुखर्जी की छवि आमतौर पर साफ सुथरी ही है। अगर मुखर्जी उम्मीदवार होते हैं, तो मुझे लगता नहीं रायसीना हिल यानि राष्ट्रपति भवन पहुंचने में उन्हें किसी तरह की दिक्कत होगी। यूपीए के साथ ही मुझे नहीं लगता कि एनडीए को भी श्री मुखर्जी से कोई दिक्कत है। जानकार तो कह रहे हैं कि दादा के राष्ट्रपति बनाने की जो भी कीमत चुकानी होगी, वो चुकाने के लिए सरकार तैयार है, बस जनता में ऐसा मैसेज ना जाए, इसी पर बातचीत चल रही है। 
चुनाव की अधिसूचना भले ही आज जारी हुई हो पर इस चुनाव की बिसात कई दिन से बिछाई जा रही हैं। चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद अब राजनीतिक दलों ने अपने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। रंग क्या, चलिए साफ साफ बताते हैं चुनाव में यूपीए उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए स्पेशल पैकेज के नाम पर पैसे की मांग हो रही है। जब राष्ट्रपति जैसे अहम चुनाव के लिए भी राजनीतिक दल सौदेबाजी कर रहे हैं तो दूसरे काम के लिए भला क्यों नहीं करते होंगे?
सच्चाई क्या है ये तो यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री जानें। पर जनता में जो संदेश जा रहा है उससे तो साफ है कि ममता और मुलायम ने सरकार को बंधक बना रखा है। वैसे तो बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही ममता लगातार स्पेशल पैकेज की मांग कर रही हैं। उनकी ये मांग इसलिए भी पूरी नहीं हो पा रही है कि उनसे काफी पहले से बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार स्पेशल पैकेज की मांग कर रहे हैं, पर ये पैकेज उन्हें नहीं दिया गया। ऐसे में अगर ममता की बात मानी जाती है तो देश में गलत संदेश जाता। फिर ममता ने नया राग अलापना शुरू कर दिया, वो कह रही हैं कि उन्हें स्पेशल पैकेज के साथ ही केंद्र से लिए कर्ज 20 हजार करोड रुपये की ब्याज वसूली तीन साल के लिए बंद कर दी जाए। चुनाव तक ममता कितनी चीजें मांग लेंगी, कुछ भी कहना मुश्किल है। अच्छा मुलायम भी ममता से पीछे नहीं, भारी भरकम पैकेज तो उन्हें भी चाहिए। अब वित्तमंत्री को देखना है कि वो रायसीना हिल पहुंचने के लिए सरकारी खजाने में सेंध लगाते हैं या नहीं।
खैर बड़ा सवाल ये है कि क्या मुखर्जी से जो उम्मीदें सोनिया गांधी को हैं, वो पूरी होंगी ? जबकि सबको पता है कि प्रणव दा कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता रहे हैं, सच कहूं तो मनमोहन सिंह के बजाए प्रवण दा को ही प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था। पर कहते हैं ना कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व नरसिम्हा राव ने जिस तरह गांधी परिवार को उन्हीं के घर में ही समेट कर रख दिया था, उसके बाद सोनिया कभी भी प्रणव को प्रधानमंत्री नहीं बना सकतीं थीं। उन्हें तलाश थी ऐसे आदमी की जिसके शरीर में शरीर की सबसे जरूरी हड्डी यानि रीढ़ की हड्डी ना हो। इसके लिए उन्होंने मनमोहन सिंह का चयन किया, और मैं दाद देता हूं सोनिया गांधी का कि उनका चयन बिल्कुल गलत नहीं था, मनमोहन से वफादार कोई और हो ही नहीं सकता था। बहरहाल कुछ भी हो, पर एक टीस दादा के मन में तो है ही, कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने से एक साजिश के तहत रोका गया। इसीलिए शायद उन्होंने रायसीना हिल के लिए हामी भर दी होगी, क्योंकि 7 आरसीआर तो उन्हें कांग्रेस भेजने वाली नहीं। अब राहुल गांधी इसके लिए लगभग तैयार हैं, दादा ने सोचा कि कल के छोकरे के अधीन काम करने से तो अच्छा है कि राष्ट्रपति ही बन जाएं। 
            
चलते-चलते

राष्ट्रपति चुनाव को ममता और मुलायम ने जितना गंदा नहीं किया, उससे ज्यादा गंदा कर दिया पूर्व स्पीकर पीए संगमा ने। वैसे तो सब जानते हैं कि चुनाव कोई भी हो, वहां जाति पाति की बात होती ही है। ए पी जे अबुल कलाम भी राष्ट्रपति इसलिए नहीं बने थे कि वो बहुत ज्यादा काबिल थे, बल्कि वो मुसलमान थे, ये उनके पक्ष में गया था। लेकिन ये बात खुलकर किसी ने कही नहीं थी। लेकिन संगमा को क्या हो गया है, ये पढे लिखे हैं, काफी समय तक सक्रिय राजनीति में रहे हैं और यहां दिल्ली में खुलकर कह रहे हैं कि एक बार आदिवासी को भी राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। चलो भाई आदिवासी को ही बनाते हैं, तो ऐसा नहीं है ना का आप ही 24 कैरेट के आदिवासी हैं। बहुत सारे आदिवासी नेता हैं, जो इस पद के काबिल है। लेकिन इन्होंने जिस तरह से छुटभैये नेता की तरह उम्मीदवार बनने के लिए नेताओं को चौखटें चाटी उसके बाद तो इन्हें राष्टपति तो दूर राष्टपति भवन में क्लर्क बनाना भी गलत होगा। इनके चक्कर में इनकी बेटी आगाथा जो एनसीपी के कोटे से केंद्र में राज्यमंत्री है, उसे भी पार्टी की खरी खोटी सुननी पड़ गई।  

Sunday, May 13, 2012

गांव गया था, गांव से भागा

गांव गया था गांव से भागा

गांव गया था
गांव से भागा
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आंगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आंख में बाल देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा
 सरकारी स्कीम देखकर
बालू में से क्रीम देखकर
देह बनाती टीम देखकर
हवा में उड़ता भीम देखकर
सौ-सौ नीम हकीम देखकर
गिरवी राम रहीम देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा
नये धनी का रंग देखकर
रंग हुआ बदरंग देखकर
बातचीत का ढंग देखकर
कुएं-कुएं में भंग देखकर
झूठी शान उमंग देखकर
पुलिस चोर के संग देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा।
बिना टिकट बारात देखकर
टाट देखकर भात देखकर
वही ढाक के पात देखकर
पोखर में नवजात देखकर
पड़ी पेट पर लात देखकर
मैं अपनी औकात देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा
नये नये हथियार देखकर
लहू-लहू त्यौहार देखकर
झूठ की जै-जैकार देखकर
सच पर पड ती मार देखकर
भगतिन का श्रृंगार देखकर
गिरी व्यास की लार देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

गांव गया था
गांव से भागा
मुठ्‌ठी में कानून देखकर
किचकिच दोनों जून देखकर
सिर पर चढ़ा जुनून देखकर
गंजे को नाखून देखकर
उजबक अफलातून देखकर
पंडित का सैलून देखकर
गांव गया था
गांव से भागा।

स्व. कैलाश गौतम

Tuesday, April 24, 2012

बहुत याद आएगी मारुति 800

हले एक नजर इस तस्वीर पर डालिए, क्या आपको कुछ याद आ रहा है। अगर नहीं तो हम बताते हैं कि ये तस्वीर लगभग 28 साल पुरानी है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी अपने दिवंगत पुत्र संजय गांधी के सपने को पूरा कर रही हैं। संजय ने सपना देखा था कि  देश के मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए कार की सवारी का। यानि ऐसी सस्ती कार बनाने का जिसे लोग आसानी से खरीद सकें। चित्र में श्रीमति गांधी मारुति 800 पहली कार की चाभी लकी खरीददार दिल्ली के हरपाल सिंह को सौप रही हैं। लेकिन ये क्या खबर है, खबर ये है कि अब इस कार के  पहिए थम जाएंगे, क्योकि  मारुति ने 25 अप्रैल से इस कार के उत्पादन को पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है। 
मारुति 800 कार का सफर लगभग 28 साल का रहा और इस दौरान कंपनी ने 28 लाख  से ज्यादा कारें लोगों तक पहुंचाई। सच कहूं तो जिन लोगों की हैसियत एक सामान्य स्कूटर की रही, उनके हाथ में मारुति ने अपनी कार की चाभी थमाई। मारुति देश मे पहली कार निर्माता कंपनी है,  जिसकी सबसे ज्यादा कारें सड़कों पर फर्राटा भर रही हैं। इसमें मारुति 800 कार सड़कों पर दौड़ लगाने वाली चौपहिया वाहनों में पहले नंबर पर है। कंपनी का कहना है कि वह अब इसकी जगह एक नई कार को बाजार में उतारेगी। हालांकि अभी इसके नाम का खुलासा नहीं किया गया है लेकिन माना जा रहा है कि मारुति की सर्वो को मारुति 800 का स्थान दिया जा सकता है। वैसे सच ये है कि अब कोई कार मारुति 800 की जगह ले पाएगी, ये कहना काफी मुश्किल है। इसकी वजह है कि अब भारत में कई कंपनियों की छोटी कारें मौजूद हैं जो मारुति की नई कार को कड़ी चुनौती दे सकती है। 
मारुति सुजूकी इंडिया के चेयरमैन आर. सी. भार्गव का  कहना है कि 'मारुति 800 के साथ कंपनी भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है। लेकिन कारोबार पर भावना को हावी नहीं होने दिया जा सकता। कंपनी ने इसे बीएस-4 उत्सर्जन मानकों के अनुरूप नहीं ढाला है।' अब एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, चेन्नै, बेंगलुरु, हैदराबाद और अहमदाबाद सहित 13 शहरों में बीएस-4 उत्सर्जन मानक लागू हो गए हैं, जबकि देश के अन्य शहर अक्टूबर में बीएस-3 उत्सर्जन मानकों को अपनाएंगे। ऐसे में इस कार के उत्पादन को बंद करने के अलावा  कोई रास्ता  नहीं बचा था।
आपको याद होगा कि 1983 में जब इस कार की शुरुआत हुई थी उस समय लोगों के घरों  में एंबेसडर कार या फिर फिएट हुआ करती थी। लेकिन मारुति ने अपने आकर्षक लुक और बेहतर एवरेज के चक्कर में इन दोनों कारो की छुट्टी कर दी। मुझे याद है कि उस दौरान मैं इंटर में पढ़ रहा था, हमारे यहां एक सफेद रंग की फिएट कार हुआ करती थी, हमारे पडो़स में रहने वाले गुप्ता जी ने मारुति 800 कार खरीदी, तो उनके घर में पूरा मुहल्ला जमा हो गया इस कार को देखने के लिए। गुप्ता जी जब ये कार लेकर निकलते थे तो हम सब इस कार की ओर ललचाई आंखों से देखा करते थे। मुझे याद है गुप्ता जी का पूरा परिवार सुबह सुबह इस कार को पोछने में जुटा रहता था।
बहरहाल बाजार में प्रतिस्पर्धा है और जब भी प्रतिस्पर्धा होती है, तो इसका फायदा उपभोक्ताओं को ही मिलता है। मारुति 800 और आल्टो को बंद कर कंपनी इससे  भी कुछ कम कीमत में दूसरी कार बाजार में उतारने जा रही है। आपको पता है इस समय टाटा की नैनो सबसे सस्ती कारों में शुमार है और एक सर्वे से पता चला है कि ये युवाओं और महिलाओं की खास पसंद है। कंपनी इसी वर्ग को ध्यान में रखकर नई कार का प्लान कर रही है। उसे पता है कि बाजार पर कब्जा बनाने के लिए नैनो से बेहतर और उसके आप पास की कीमत में ही कार को मार्केट में लाना होगा। तो क्या करना है कुछ दिन इंतजार कर ही लेते हैं। वैसे सच बताऊं मारुति 800 बहुत याद आएगी। 



Tuesday, March 20, 2012

शर्मनाक : यात्री के ऊपर किया पेशाब ...

क हैरान करने वाली घटना की जानकारी आपको देता हूं। इसकी जानकारी तो मुझे   कल ही यानि सोमवार को शाम मिल गई थी, पर यकीन नहीं हो रहा था कि राजधानी जैसी ट्रेन के एसी 2 कोच में ऐसी घटना भी हो सकती है। पर जब पूरे मामले की जानकारी हुई तो तृणमूल कांग्रेस और  उसके नेताओं से नफरत सी हो गई है।

ममता बनर्जी फायर ब्रांड नेता हैं, ये सभी जानते हैं। सबको पता है कि रेलमंत्री कोई भी हो राज ममता का ही चलेगा। इसलिए पूरी पार्टी इस समय बेलगाम हो गई है। जब नेताओं का ये हाल है तो नेताओं के कारिंदे तो दो कदम आगे चलेंगे ही। हुआ क्या, पूरा वाकया बताता हूं। हावड़ा दिल्ली राजधानी पर टीएमसी के एक सांसद सफर कर रहे थे, वो एसी 1 में थे, जबकि उनका गनर एसी 2 में था। रात में उसने ट्रेन में ही शराब पी और हंगामा करता रहा। कुछ लोगों ने शोर मचाने से रोका तो वह नाराज हो गया। 

बात यहीं तक होती तो गनीमत थी, देर रात गनर को टायलेट जाना था, बेलगाम गनर ने उस आदमी के ऊपर पेशाब करने लगा, जिसने उसे शोर  मचाने से रोका था। जब उसने शोर मचाया तो गनर ने अपनी सर्विस रिवाल्वर उसके ऊपर तान दी, और कहा कि शोर मचाया तो यहीं ढेर कर दूंगा। बहरहाल इस शोर शराबे में और यात्री भी उठ गए और सभी ने टीटीई को बुलाकर कम्पलेंट दर्ज कराई। लेकिन ये गनर टीएमसी सांसद का था, तो रेल कर्मचारी कोई भी कार्रवाई करने से पीछे हट गए।

बाद में भुक्तभोगी पैंसेजर ने इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर पूरे मामले की जानकारी दी और गनर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। चलिए बात यहीं खत्म होती तो समझ लिया जाता कि शराब के नशे में गनर ने कुछ कर दिया होगा, पर इससे भी शर्मनाक बात तो ये है कि जब टीएमसी सांसद जो महिला हैं, उन्हें ये जानकारी दी गई कि आपके गनर ने ऐसा किया तो उनका कहना था, ये छोटी मोटी बातें होती रहती हैं। 

मै जानता हूं कि इस मामले की शिकायत अगर ममता बनर्जी से भी होगी तो वो कोई खास तवज्जो नहीं देंगी, क्योंकि अपर क्लास का आदमी उनकी प्राथमिकता में ही नहीं है। उनसे किराया भी  ज्यादा वसूला जाएगा, इन्हें सर्विस टैक्स भी देना होगा, बदले में अपर क्लास यात्रियों को सोते समय पेशाब से नहाना होगा। अब इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं.. आक्क थू, ऐसी राजनीति की। 

Saturday, March 10, 2012

टीपू बन गया सुल्तान ...

बराइये नहीं यहां बात टीपू सुल्तान की नहीं हो रही है। दरअसल मुलायम सिह यादव के बेटे अखिलेश यादव को लोग घर में प्यार से टीपू बुलाते हैं। यही टीपू अब उत्तर प्रदेश का सुल्तान बन रहा है, क्योंकि पार्टी विधायक दल की बैठक में उसे नेता चुन लिया गया है। 15 मार्च को शपथ ग्रहण के बाद टीपू यूपी का सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बन जाएगा।

मुख्यमंत्री भले ही टीपू बन रहा हो, लेकिन ना जाने क्यों यूपी के युवाओं की उम्मींदे काफी बढ़ गई हैं, उन्हें लग रहा है कि पहली बार ऐसा होगा जब यूपी की गद्दी को कोई ऐसा युवा संभालने जा रहा है, जिसे युवाओं की जरूरतों की जानकारी है। युवाओं की तकलीफों का उसे अहसास है। युवाओं की उम्मीदों पर अखिलेश कितने खरे उतरेंगे, ये बाद की बात है, पर आज युवाओं को लग रहा है कि यही मायने में अब सरकार में उनका प्रतिनिधित्व हो रहा है।

मुलायम सिंह यादव की पहले भी यूपी में सरकार रही है। लेकिन मैं उसे समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं मानता। वो नचनियों और गवइयों की बुनियाद पर बनने वाली सरकार रही है। होता क्या था कि अमर सिंह कुछ फिल्मी कलाकारों को मैनेज कर लेते थे, और समाजवादी पार्टी के बैनर तले होने वाली सभाओं में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, जया प्रदा, संजय दत्त, मनोज तिवारी टाइप लोग भाषण देते थे। इन्हीं फिल्मी कलाकारों के दम पर अमर सिंह भी नेता बने घूम रहे थे। 

जिस तरह से मुर्गे को लगता है कि अगर वो सुबह सबको ना जगाए और तो दिन ही नहीं निकलेगा, उसी तरह अमर सिंह को भी लगने लगा था कि समाजवादी पार्टी उनके बगैर शून्य है। बहरहाल जिस अमिताभ बच्चन को वो बड़ा भैया कहते थे, आजकल बड़ा भैया से नाराज चल रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव को तो वो नेता जी कहते थे, तो नेता से कितने दिनों तक बन सकती थी। खैर बात कुछ और हो रही थी, मैं कहीं और चला गया, लेकिन मेरा अभी भी पक्का मानना है कि समाजवादी पार्टी से अमर सिंह का अलग होना भी पार्टी की ऐतिहासिक जीत की एक वजह है। 
इसके अलावा मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव से भी यूपी को भगवान बचाए रखे। सच तो ये है कि शिवपाल में राजनीति की ना समझ है, ना राजनीतिक चरित्र है, ना ईमानदारी है और ना ही जनता और पार्टी में उनकी छवि ठीक है। समाजवादी पार्टी में जितने में गंदे किस्म के लोग है, उन्हें शिवपाल यादव का ही संरक्षण प्राप्त है। मुझे लगता है कि अब अखिलेश की अगुवाई में समाजवादी पार्टी मे कम से कम महिलाओं को शोषण बंद हो जाएगा। कुछ गुंडे छवि के लोगों को पार्टी में शामिल करने से साफ मना कर दिए जाने से अखिलेश का ग्राफ बहुत ऊंचा हो गया है। यही वजह  है कि लोगों की उम्मीद जगी है कि अब इस पार्टी में भी साफ सुथरे लोगों के लिए गुंजाइस बनी रहेगी।

भाई आजम खां वाकई वरिष्ठ नेता हैं। लेकिन उन्हें भी जिस तरह से इस बार चुनाव के दौरान रामपुर में ही रखा गया, उससे भी सपा को फायदा हुआ है। अब जनता गाली गलौज और गंदी सियासत को समझने लगी है। रामपुर में एक  खास परिवार को जिस तरह तल्ख भाषा में आजम खां कोसते रहते हैं, ये बात भी लोगों के गले नहीं उतरती। इसलिए जरूरी था कि आजम भाई पर नकेल कसा जाए। चुनाव प्रयार का कमान मुलायम और अखिलेश के हाथ में होने से लगा कि सच में अब समाजवादी पार्टी की सभा हो रही है, लोहियावादी नेताओं की सभा हो रही है, जनेश्वर जी जैसा सोचते थे, उन विचारों की सभा हो रही है। 

बहरहाल अब भाई अखिलेश जी आपकी ताजपोशी हो जाएगी, लेकिन आगे का काम जरा मुश्किल है। यूपी कि अफसरशाही से भी बदबू आती है। मैने देखा बीएसपी की सरकार में जिलाधिकारी.... जिलाधिकारी बन कर काम नहीं कर रहे थे, बल्कि वो बीएसपी के जिलाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे। अब यूपी में मान सम्मान वाले अफसर नहीं रह गए, आपको देखना होगा कि जिस अफसर में अभी रीढ की हड्डी बची हो, उसे जिम्मेदारी का काम सौंपे, वरना जूता उठाने और उसे साफ करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे।      

Friday, March 9, 2012

द्रविण के सन्यास से सचिन पर बढ़ा दबाव...

भारतीय क्रिकेट टीम के अहम सदस्य राहुल द्रविण ने आज टेस्ट क्रिकेट से भी सन्यास का ऐलान कर दिया। द्रविण टी 20 और एक दिवसीय मैच से पहले ही सन्यास ले चुके हैं। द्रविण ने सन्यास की घोषणा करते हुए कहा कि मैने युवाओं को मौका देने के लिए सन्यास का फैसला किया है और अब युवा खिलाड़ी इतिहास बनाएं। हालाकि मीडिया में द्रविण के सन्यास को लेकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जैसे उन्होंने बहुत महान काम कर दिया हो, दरअसल सच ये है कि आस्ट्रेलिया में जिस तरह से टीम पिटी है उसके बाद द्रविण का आगे के मैचों में चुना जाना भी तय नहीं था।
द्रविण टीम में इसलिए थे कि उन्हें टीम की दीवार कहा जाता था, उन्हें भरोसेमंद कहा जाता था, मिस्टर डिपेंडेबिल के साथ ही ना जाने क्या क्या कहा जाता था। लेकिन आस्ट्रेलिया के दौरे से साफ हो गया था कि अब ना वो टीम की दीवार रहे, ना ही भरोसेमंद और डिपेंडेबिल रहे। ये बात खुद द्रविण भी जानते हैं। लिहाजा उन्होंने अगर सन्यास लेने का ऐलान किया तो इसमें कुछ भी खास नहीं है। मैं तो कहूंगा कि देर से उठाया गया सही कदम है। हालाकि द्रविण की प्रेस कान्फ्रेंस से ये बात भी साफ हो गई है कि टीम में भारी मतभेद है। पिछले दिनों टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इशारों इशोरों में साफ कर दिया था कि सभी सीनियर खिलाडियों को एक साथ टीम में नहीं रखा जा सकता। मतलब सचिन, सहवाग और द्वविण को एक साथ टीम में रखने से क्षेत्ररक्षण पर असर पड़ता है, मैं व्यक्तिगत रूप से और धोनी की बात से सहमत हूं, लेकिन द्रविण ने जाते जाते जो किया, उससे सवाल खड़ा होना तय है।
द्रविण ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन खिलाड़ियों का नाम लिया, जिन्हें वे बहुत मानते हैं और इन खिलाड़ियों को मिस भी करेंगे। इसमें उन्होंने सौरभ गांगुली, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह समेत तमाम खिलाड़ियों के नाम लिए, लेकिन मौजूदा टीम के कप्तान धोनी का उन्होंने कहीं जिक्र तक नहीं किया। इससे साफ है कि सीनियर खिलाड़ी धोनी को पसंद नहीं करते हैं, या फिर टीम में सबकुछ ठीक नहीं है। बहरहाल द्रविण के उज्जवल भविष्य और सुखद पारिवारिक जीवन की मैं भी कामना करता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर द्रविण ये मानते है कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिलना चाहिए, तो ये बात सचिन की समझ में क्यों नहीं आ रही है।
सचिन अपने शतकों के शतक से महज एक कदम दूर हैं। मुझे भी लगता है कि उनका शतकों का शतक बनना ही चाहिए। लेकिन सवाल ये उठता है कि कि आखिर इस एक शतक के लिए देश को कितना इंतजार करना होगा। अभी तक इस शतक के लिए देश साल भर इंतजार कर चुका है और इस दौरान सचिन टेस्ट मैच और एकदिवसीय मिलाकर कुछ 45 से भी ज्यादा पारी खेल चुके हैं और नाकाम रहे हैं। सच तो ये है कि अब सचिन के शतकों के शतक का ना किसी को इंतजार है और ना ही इसमें अब किसी की रुचि रह गई है।
साल भर पहले की बात है कि न्यूज चैनल अभियान चलाए हुए थे कि सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए। सरकार पर भी इतना दबाव बढा कि भारत रत्न दिए जाने के प्रावधान में फेरबदल कर साफ कर दिया गया कि अब किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने पर भारत रत्न दिया जा सकता है। सचिन की लगातार नाकाम से हालत ये हो गई है कि अब कोई भारत रत्न दिए जाने की बात नहीं कर रहा, उल्टे ये पूछ रहा है कि आखिर टीम से सचिन कब बाहर होगे। द्रविण के सन्यास के बाद तो सचिन पर नैतिक दवाब और भी बढ गया है।  
  

Sunday, February 19, 2012

वाह ताज नहीं कहो, आह ! ताज ...

वैसे तो ताजनगरी आगरा में कई दफा आ चुका हूं और हर बार एक अच्छा माहौल और अनुभव के साथ वापस लौटा हूं, लेकिन इस बार ताजमहल पहुंचा तो सच में काफी तकलीफ हुई। पहले तो इस बार यहां वैसे ही कुछ खालीपन सा था, लग रहा था कि कुछ चीज भूल आया हूं, इससे ही मन दुखी था, फिर यहां विदेशियों और भारतीयों के बीच होने वाले भेदभाव से लगा कि अब यहां कभी नहीं आना चाहिए।

विदेशी पर्यटकों के मुकाबले भारतीयों को यहां का टिकट सस्ते में मिलता है। इसका मतलब ये तो नहीं कि भारतीयों को आप दोयम दर्जे का मानने लगेगें। लेकिन यहां ऐसा ही है। भारतीयों के लिए यहां टिकट 25 रुपये में मिलता है, जबकि विदेशियों को ये टिकट 750 रुपये में खरीदना होता है। बस यहीं से शुरु हो जाता है भेदभाव। देश के लोगों के साथ यहां तैनात कर्मचारियों का व्यवहार भी ठीक नहीं होता है। विदेशियों की सुरक्षा जांच जहां होती है, उसके लिए अलग रास्ता बनाया गया है, जहां लिखा है हाई वैल्यू टिकट । इनकी जांच महज खाना पूरी होती है, जबकि भारतीयों की जांच जहां होती है, उन्हें बहुत ही बारीकी से जांचा जाता है। विदेशियों की जांच महज खानापूरी है।

आप आगे बढ़ेगें ताज महल की ओर तो विदेशियों के लिए छोटा रास्ता है, वो सीधे ताजमहल तक चले जाते हैं, हमें आपको एक लंबी लाइन में दूसरे रास्ते से घूम कर जाना होता है। ताजमहल के बारामदे में जाने के लिए विदेशियों को तो जूते पहन कर जाने की इजाजत दे दी जाती है, वो जूते के ऊपर एक प्लास्टिक का कवर कर लेते हैं, लेकिन यह सुविधा भारतीयों के लिए नहीं है। सुरक्षा के नाम पर जगह जगह इतनी टोका टोकी भारतीयों के साथ की जाती है कि भूल जाते हैं कि हम यहां वो ताज महल देखने आए हैं जो दुनिया मे मोहब्बत की निशानी है। यहां मकबरे के भीतर की तस्वीरें खींचने के मनाही है, विदेशी तस्वीरें लेते रहते हैं, यहां तैनात सुरक्षाकर्मी मूकदर्शक बने रहते हैं, लेकिन किसी भारतीय ने ये कोशिश की तो उसके साथ अभद्रता की जाती है।

मित्रों यहां हमारे तमाम जर्नलिस्ट साथी हैं, मुझे तो कोई तकलीफ नहीं हुई, लेकिन भारतीयों के साथ भेदभाव देखकर मैं हैरान हूं, और मुझे तो अफसोस हो रहा है कि अपने ही देश में आखिर हम भारतीयों के साथ ऐसा व्यवहार कर दुनिया में क्या संदेश दे रहे हैं। अभी तो मैं चुनावी सफर में हूं, पर इस मामले में तो मैं जरूर आगरा प्रशासन की ऐसी तैसी करने का मन बना चुका हूं, बस जरा मैं खाली हो जाऊं। हम गोरे काले में भेद नहीं करते हैं, पर यहां तो साफ दिखाई देता है, और तो छोड़िए यहां भिखारी भी गोरों से भीख मांगते हैं, कालों की ओर वो भी नहीं ताकते। मित्रों जब यहां आता हूं तो मुझे वो गाना याद आता है कि  इक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, दुनिया वालों को मोहब्बत की निशानी दी है...। पर अब इस गाने के मायने बदल गए हैं, इस ताज महल से जितनी मुश्किलें हैं वो हमारे लिए हैं, जितना शुकून है वो विदेशियों के लिए है।   



Friday, January 20, 2012

आर्म्स दलालों के निशाने पर हैं जनरल ...

नरल वी के सिंह के जन्मतिथि के विवाद से जुड़ा मसला और उलझता जा रहा है। हालाकि सरकार के पास अभी भी वक्त है कि इस मामले को कोर्ट के बाहर निपटा ले।  क्योंकि कोर्ट में सरकार के जीतती है तो भी उसकी हार होगी और हार जाने पर तो हार है ही। आप सब जानते हैं कि देश में जन्मतिथि के लिए हाईस्कूल के प्रमाण पत्र को मान्यता मिली हुई है। यानि जो लोग भी पढे़ लिखे हैं, वो सभी जगहों पर हाईस्कूल के प्रमाण पत्र को ही जन्मतिथि के लिए इस्तेमाल करते हैं। बात चाहे नौकरी की हो, या फिर बैंक एकाउंट, पासपोर्ट, स्कूल कालेज कहीं भी जन्मतिथि की जरूरत हो, यही प्रमाण पत्र मान्य होता है। जनरल वी  के सिंह के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 है। इसी प्रमाण पत्र को मुख्य आधार बनाकर जनरल साहब कोर्ट पहुंचे हैं। अगर जनरल जीत गए फिर तो सरकार को मुंह की खानी ही पड़ेगी, अगर सरकार जीत गई, तब तो वो और बड़ी मुश्किल में फंस जाएगी। क्योंकि इसके बाद देश में हाईस्कूल के प्रमाण पत्र की मान्यता पर सवाल खड़े हो जाएंगे और कहा जाएगा कि अगर जनरल वी के सिंह का हाईस्कूल प्रमाण पत्र गलत हो सकता है तो और किसी का क्यों नहीं गलत हो सकता। सरकारी नौकरी में विवाद खड़ा करने के लिए लोग एक दूसरे की सर्विस बुक की जन्मतिथि में छेड़छाड़ करने लगेंगे, पदोन्नत के मामले में आईएएस और आईपीएस अफसरों की जन्मतिथि में छेड़छाड़ शुरू होने लगेगी। हाईस्कूल के प्रमाण पत्र को इसी आधार पर खारिज कर दिया जाएगा कि जनरल साहब का भी प्रमाण पत्र गलत था। जनरल वी के सिंह इस साल रिटायर हों या अगले साल ये ज्यादा मायने नहीं रखता, लेकिन कुछ भ्रष्ट अफसर किस तरह आर्म्स दलालों के साथ मिलकर सेनाध्यक्ष जैसे पद पर बैठे व्यक्ति को घेरे में ले लेते हैं, ये एक ऐसा उदाहरण बन जाएगा, जिसकी काली छाया से निकलना आसान नहीं होगा। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि एक लाबी जनरल को हटाने के लिए अब तक देश में कई सौ करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है और इस गोरखधंधे में सैन्य अफसर, नौकरशाह, सफेदपोश सभी के हाथ सने हुए हैं।     

Monday, January 16, 2012

बदबू आती है यूपी की राजनीति से ...

चुनाव जीतना है मकसद, तरीका कुछ भी और कैसा भी हो। सच कहूं तो इस समय नेताओं की बातों में इतनी गंदगी भरी हुई है कि इनका नाम भर सुनकर बदबू आने लगती है। अब देखिए अपने जन्मदिन पर भी मायावती शालीन नहीं रह पाईं। तर्क भी ऐसे बेपढों वाली देतीं हैं कि हैरानी होती है। सच कहूं तो चुनाव आयोग ने मायावती का बहुत पक्ष लिया, वरना उन्होंने जिस तरह से सरकारी पैसे का दुरुपयोग करके जगह जगह अपनी और पार्टी के चुनाव निशान हाथी की मूर्ति रखवा दी, उसकी सजा इन मूर्तियों को ढकना भर नहीं है। सजा तो ये होनी चाहिए कि मायावती को जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य कर दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं पार्टी का चुनाव निशान भी बदल देना चाहिए। ऐसा नहीं है कि ये बात मायावती नहीं जानती हैं कि उन्होंने कितना बड़ा अपराध किया है, लेकिन कुतर्क देखिए, कि अगर ऐसा है तो लोकदल का चुनाव निशान हैंडपंप भी सरकारी खजाने से लगा है, उसे भी ढक दिया जाए। मायावती ऐसी घटिया बातें जान बूझ कर करती हैं, क्योंकि जो उनके वोटर हैं, उन्हें ऐसी ही सतही बातें समझ में आती हैं।
एक ओर जब देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन छिड़ा हो और वो चुनाव का मुद्दा बन रहा हो, तब ऐसा काम बीजेपी ही कर सकती है कि एक बेईमान नेता बाबू सिंह कुशवाहा को अपनी पार्टी में शामिल करे। ऐसे में जब बीजेपी कहती है कि उसका चाल चरित्र और चेहरा दूसरी पार्टियों से अलग है, तो मुझे भी लगता है कि वाकई अलग है। ऐसा करने की हिम्मत और पार्टी तो बिल्कुल नहीं कर सकती। अच्छा भाजपाई अपने कुकृत्यों के बचाव में भी देवी देवाताओं को इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। बाबू सिंह कुशवाह को लेने के बाद भाजपा से जब पूछा गया कि इससे पार्टी की छवि पर खराब असर नहीं पड़ा, तो पार्टी के एक नेता ने कहा कि गंगा मइया में हजारों गंदे नाले आकर मिलते हैं तो क्या गंगा मइया मैली हो गई, उसकी पवित्रता खत्म हो गई ? शाबाश.. भाजपाइयों आपका कोई जवाब नहीं। इसीलिए अभी तीसरे नंबर की पार्टी है, इस चुनाव में क्या होगा, भगवान मालिक है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी बहुत मेहनत कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में। उन्हें लग रहा है कि उनकी पार्टी बहुत बेहतर प्रदर्शन करेगी इस चुनाव में। पर राहुल को कौन समझाए कि वो बेचारे जितना मेहनत करते हैं उनकी पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह उस पर पानी फेर देते हैं। राहुल अच्छा माहौल बना रहे थे कि श्री सिंह ने राहुल के किए कराए पर पानी फेर दिया। अरे क्या जरूरत थी इस समय बाटला हाउस मामले की चर्चा करने की। बाटला हाउस की चर्चा से श्री सिंह सुर्खियों में जरूर आ गए, लेकिन वोट में इजाफा बिल्कुल नहीं  हुआ है। वैसे दिग्विजय मुझे तो किसी गंभीर बीमारी के शिकार लगते हैं, उनसे जनता जितनी दूर रहे वही अच्छा है। उनके पास मीडिया वाले बस इसीलिए जाते हैं कि कुछ आंय बांय शांय बोल देगें तो पूरे दिन का काम हो जाएगा।
अब बची समाजवादी पार्टी। मुझे लगता है कि अमर सिंह से छुटकारा पाने के बाद पार्टी थोड़ा विवादों से दूर है। वैसे युवा नेता अखिलेश की मेहनत कितना रंग लाएगी, ये तो  चुनाव के नतीजों से पता चलेगा, पर डी पी यादव को पार्टी में लेने से इनकार कर अखिलेश ने ये तो साबित कर दिया है कि वो सही मायने में पार्टी के अध्यक्ष हैं और वो जो ठीक समझते हैं वहीं करेंगे। इन सबके बाद भी तमाम अपराधी छवि वाले लोग पार्टी का टिकट पाने में कामयाब हो गए हैं, इसलिए सपा को भी पाक साफ कहना गलत ही है।
बहरहाल यूपी के लोगों से एक सवाल पूछता हूं। यूपी के साथ चार और राज्यों में भी चुनाव हो रहे हैं , क्या आपको वहां की कोई खबर है ? मुझे लगता  है कि कोई खबर नहीं होगी, क्योंकि वहां ऐसा कुछ है ही नहीं जो खबर बने। लेकिन आपको पता है यूपी के चुनाव की खबरें देश भर के अखबारों की सुर्खियों में है। इसलिए सबको पता है कि यूपी में क्या हो रहा है। नेताओं का बायोडाटा, कितने अपराधिक मामले, सबसे पैसे वाली दलित मुख्यमंत्री, रोजाना यूपी में करोडों रुपयों का पकड़ा जाना, असलहों की बरामदगी, नेताओं की दंबंगई, गांव गांव शराब की बरामदगी सब कुछ तो है सुर्खियों में। सही बताऊं बदबू आ रही है यूपी के चुनाव से, लेकिन क्या करुं मुझे भी पूरे एक महीने इन्हीं बदबूदार नेताओं के साथ बिताना है। भगवान भला करें।

नहीं चाहिए सचिन का महाशतक ...

मुझे इसी बात का डर था, कि कहीं सचिन अपने  खराब प्रदर्शन से लोगों के निशाने पर ना जाएं और वही हुआ। देश भर में ना सिर्फ सचिन बल्कि राहुल द्रविण, बी बी एस लक्ष्मण और वीरेंद्र सहवाग को लेकर गुस्सा देखने को मिल रहा है। हालत ये हो गई है कि जो क्रिकेट प्रेमी कल तक सचिन को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे, वो इतने खफा  हैं कि अगर सचिन को भारत रत्न मिल गया होता तो वे भारत रत्न वापस लेने की मांग करते हुए सड़कों पर उतर जाते। अरे भाई देश में क्रिकेट सिर्फ एक खेल भर नहीं है। क्रिकेट प्रेमी इसे अपना धर्म मानते हैं और धर्म की रक्षा के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। मैने देखा कि कल तक सचिन को क्रिकेट का भगवान कहने वाली मीडिया पहली दफा सचिन पर उंगली उठाने की हिम्मत जुटा पाई।

आमतौर पर सचिन की खामियों को ढकने वाली मीडिया पहली दफा बैकफुट पर नजर आई, वो भी इसलिए तमाम दिग्गज खिलाड़ियों ने टीम के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। वैसे महान क्रिकेटर सुनिल गावस्कर बहुत पहले ही कह चुके हैं कि खिलाड़ियों को अच्छे फार्म में रहने के दौरान सन्यास ले लेना चाहिए, जिससे लोग ये कहते फिरें कि अभी  क्यों सन्यास ले लिया,  अभी तो बहुत क्रिकेट बाकी है। ऐसा मौका नहीं देना चाहिए कि लोग पूछने लगें कि " अरे भइया सन्यास कब ले रहे हो " ? आज सचिन ही नहीं राहुल द्रविण और लक्ष्मण की यही हालत हो गई है कि लोग पूछने लगे हैं कि आखिर कब मैदान से बाहर होगे।

अब एक  बात तो पूरी तरह साफ हो गई है कि सचिन समेत तमाम खिलाड़ी 2015 में होने वाले वर्ल्ड कप में नहीं खेल पाएंगे, ऐसे में हम वर्ल्ड कप की टीम अभी से क्यों नहीं तैयार कर रहे हैं। आज क्रिकेटप्रेमी सवाल कर रहे हैं कि सचिन तेंदुलकर टीम में क्यों हैं? जवाब सिर्फ एक है कि उन्होंने देश के लिए बहुत खेला है, अब उन्हें महाशतक बना लेने देना चाहिए। मैं कहता हूं कि महाशतक की कीमत क्या है, हम कितने दिनों तक और कितने मैच गंवाने को तैयार बैठे हैं। क्या सचिन की नाक देश की नाक से ज्यादा अहमियत रखती है। मुझे लगता है कि इसका जवाब है नहीं। टीम के चयन की जिम्मेदारी जिनके पास है, उनका कद ही उतना बडा नहीं है कि वो सचिन के बारे में फैसला करें, लिहाजा ये फैसला अब सचिन को ही करना होगा। आस्ट्रेलिया से लौटकर उन्हें क्रिकेट के सभी फार्मेट को अलविदा कहकर मुंबई इंडियंस के लिए टी 20 तक ही खुद को समेट लेना चाहिए। 

सचिन की  आड़ लेकर और खिलाडी बच जाते हैं। अब राहुल द्रविण को मजबूत दीवार कहना बेईमानी है। इसी तरह जिस बी बी एस लक्ष्मण से कंगारू डरते थे, उस लक्ष्मण ने कंगारुओं के सामने घुटने टेक दिए हैं। अब लक्ष्मण से कंगारु नहीं बल्कि कंगारुओं से अपना लक्ष्मण डर रहा है। भाई ये ठीक  बात है कि वीरेंद्र सहवाग अच्छे खिलाड़ी हैं, लेकिन मुझे लगता है कि वो भरोसेमंद खिलाड़ी बिल्कुल नहीं हैं। 10 पारियों में खराब प्रदर्शन कर अगर एक पारी में रन बना देते हैं तो मुझे नहीं लगता कि सहवाग को भी टीम में रहना चाहिए। बहुत नाक कट चुकी है, दुनिया भर के खिलाड़ी हमारी टीम पर छींटाकसी कर रहे हैं, सारी सचिन अब हमें आपके महाशतक में कोई रुचि नहीं रह गई है। 

Tuesday, January 10, 2012

मायावती का चुनाव निशान बदले आयोग ...

ड़तालिस घंटे के बाद नेट और टीवी से रूबरू हो पाया हूं। एक खबर मुझे बहुत परेशान कर रही है। ये खबर है उत्तर प्रदेश की। आपको पता ही है कि वहां की मुख्यमंत्री मायावती ने इस प्रदेश को वैसे ही बदरंग कर इसका चेहरा बिगाड़ दिया है। अब निर्वाचन आयोग का एक फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा है।
दरअसल मुख्यमंत्री मायावती ने सूबे भर में अंबेडकर पार्क के नाम पर मनमानी की है। लखनऊ और नोएडा में तो कई एकड में पार्क बनाने में कई करोड रुपये खर्च किए गए हैं। मायावती ने इन पार्कों में दलित नेताओं की मूर्तियां तो लगवाई ही, पार्टी का चुनाव निशान हाथी की भी हजारों मूर्तियां पार्क में लगा दी गईं। अब चुनाव में इसे दूसरे दलों ने मुद्दा बना लिया है। उनका कहना है कि ये पार्क सरकारी पैसे से बने हैं और इसमें खुद मायावती, उनकी पार्टी के संस्थापक कांशीराम, भीमराव अंबेडकर,  बाबा ज्योतिबाफुले समेत तमाम नेताओं की मूर्ति तो है ही, पार्टी का चुनाव निशान हाथी की मूर्ति भी एक दो नहीं हजारो की संख्या मे लगा दी गई है। जाहिर है इसका चुनाव पर असर पडे़गा। 

निर्वाचन आयोग ने इस शिकायत की सुनवाई में बहुत ही गैरजिम्मेदाराना निर्णय दिया है। उनका कहना है कि पूरे प्रदेश में जहां कहीं भी पार्क या सरकारी परिसर में ऐसी मूर्तियां हैं उन्हें चुनाव तक ढक दिया जाए। अब देखिए ना इन पार्कों में हजारों करोड रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके हैं। सिर्फ अस्थाई रुप से इसे ढकने पर लगभग पांच करोड रुपये खर्च होने का अनुमान बताया जा रहा है। जनवरी में ढकने के बाद इसे मार्च में हटा भी दिया जाना है, ऐसे में सरकारी खजाने से पांच करोड रुपये खर्च करने को कत्तई जायज नहीं ठहराया जा सकता। इन पार्कों को देखने से ही साफ पता चलता है कि इसके पीछे मुख्यमंत्रीं मायावती की मंशा कत्तई साफ नहीं रही है। ऐसे में सजा तो मिलनी ही चाहिए, लेकिन सवाल ये है कि सजा किसे मिलनी चाहिए ? जाहिर है सजा  मुख्यमंत्री को मिलनी चाहिए थी, लेकिन जो सजा निर्वाचन आयोग ने सुनाई है कि इसे चुनाव तक ढक दिया जाए, ये सजा तो आम जनता को दी गई है। क्योंकि सरकारी खजाने में हमारे और आपके ही टैक्स का पैसा है।

मुझे लगता है कि आयोग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। चूंकि आयोग ने इन मूर्तियों और हाथी को ढकने का आदेश दिया है, इससे इतना तो साफ है कि निर्वाचन आयोग मायावती को चुनाव आचार संहिता तोडने और चुनाव में गलत तरीका अपनाने का जिम्मेदार तो मानता  है। ऐसे में आयोग को चाहिए कि वो बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का चुनाव निशान बदल दे। सही कारण होने पर चुनाव निशान बदले जाने का प्रावधान भी है। अगर आयोग चुनाव निशान नहीं बदलता है तो उसे बीएसपी को ये फरमान सुनाना चाहिए कि वो अपने पैसे से इन मूर्तियों को ढकने का काम करे। वैसे भी अगर कोई उम्मीदवार किसी दीवार पर नारे लिखवाता है तो उस उम्मीदवार को ही अपने खर्चे पर उसे साफ करने का आदेश दिया जाता है। अगर आचार संहिता में इसका प्रावधान भी है, फिर मायावती पर इसे क्यों नहीं लागू किया जा रहा है ?