Sunday, December 29, 2013

वाड्रा को बेईमान बता कर बने मुख्यमंत्री !

ज बिना लाग लपेट के एक सवाल  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना जाए कि केजरीवाल ने जितने भी आरोप आपके परिवार और पार्टी पर लगाएं है, वो सही हैं, इसलिए आपकी पार्टी उनके साथ खड़ी हैं, या फिर पार्टी में कहीं कई विचार पनप रहे हैं,  लेकिन सही फैसला लेने में मुश्किल आ रही है और आपका बीमार नेतृत्व पार्टी को अपाहिज  बना रहा है।  

खैर सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना अब कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। मेरी नजर में तो आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने एक ऐसी राजनीतिक भूल की है, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। सबको पता ही है किसी भी राजनीतिक दल को दिल्ली की जनता ने बहुमत नहीं दिया, लिहाजा लोग सरकार बनाने की पहल ना करते और ना ही किसी को समर्थन का ऐलान करते ! लेकिन कांग्रेस के मूर्ख सलाहकारों को लगा कि अगर वो आप को समर्थन का ऐलान करती है, तो ऐसा करके वो दिल्ली की जनता के दिल मे जगह बना लेगी और केजरीवाल जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पाएंगे, लिहाजा वो जनता का विश्वास खो देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। इधर पहले तो केजरीवाल समर्थन लेने से इनकार करते रहे और कहाकि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। इस पर कांग्रेसी दो कदम आगे आ गए और कहने लगे की उनका समर्थन बिना शर्त है, सरकार बनाकर दिखाएं। 

अब कांग्रेसियों की करतूतों से केजरीवाल क्या देश की जनता वाकिफ है, सब जानते हैं कि इन पर आसानी से भरोसा करना मूर्खता है। लिहाजा केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो जनता से पूछ कर इसका फैसला करेंगे। इस ऐलान के साथ केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच निकल गए, और जनता की सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया। हर सभा में ऐलान करते रहे कि सरकार बनाते ही सबसे पहला काम भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे और दोषी हुई तो शीला दीक्षित तक को जेल भेजेंगे। आप पार्टी ने कांग्रेस पर हमला जारी रखा, लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि वो केजरीवाल को बेनकाब कर देंगे, इसलिए समर्थन देने के फैसले पर अडिग रहे। मैने तो पहली दफा देखा कि जिसके समर्थन से कोई दल सरकार बनाने जा रहा है वो उसके नेताओं को गाली सरेआम गाली दे रहा है और पार्टी कह रही है कि नहीं सब ठीक है। वैसे अंदर की बात तो ये भी है कांग्रेस में एक तपका ऐसा है जो पूर्व  मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोधी है, उसे लग रहा है कि केजरीवाल जब जांच पड़ताल शुरू करेंगे तो शीला की असलियत सामने आ जाएगी।

केजरीवाल ने शपथ लेने से पहले कांग्रेस को इतना घेर दिया है कि अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। शपथ लेने के दौरान भी केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वो किसी से समर्थन की गुजारिश नहीं करेंगे। बहुमत मिला तो सरकार चला कर जनता की सेवा वरना जनता के बीच रहकर उसकी सेवा। अब कांग्रेस के गले मे ये हड्डी ऐसी फंसी है कि ना उगलते बन रहा है ना ही निगलते बन रहा है। अगर कांग्रेस समर्थन वापसी का ऐलान करती है तो उसकी दिल्ली में भारी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। बता रहे हैं कि इस सामान्य मसले को पेंचीदा बनाने के बाद अब कांग्रेसी 10 जनपथ की ओर देख रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि 10 जनपथ में तमाम जानकार बैठे हैं, जो मुद्दे का हल निकाल देंगे। बहरहाल शपथग्रहण के बाद से जो माहौल बना है, उससे दो बातें सामने हैं। एक तो दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा, दूसरा दिल्ली में आराजक राजनीति की शुरुआत  हो गई है। 

वैसे आप कहेंगे कि सोनिया गांधी से सवाल पूछना आसान है, लेकिन किसी मुद्दे का समाधान देना मुश्किल है। मैं समाधान दे रहा हूं। एक टीवी  न्यूज चैनल के स्टिंग आँपरेशन में पार्टी के पांच विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हट कर बयान दिया और केजरीवाल को  पागल तक बताया। कांग्रेस आलाकमान को इस मामले को तत्काल गंभीरता से लेते हुए अपने पांचो विधायकों को पार्टी से निलंबित कर उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इससे दिल्ली की जनता में ये संदेश जाएगा कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अरविंद की आलोचना करने पर इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उधर विधायक दल बदल कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। अब ये रिस्क तो रहेगा ही कि कहीं विधायक बीजेपी में शामिल  होकर उनकी सरकार ना बनवा दें ? अगर ऐसा होता भी है तो हर्षवर्धन के मुकाबले अरविंद कांग्रेस को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। कुछ मिलाकर दिल्ली में एक सभ्य तरीके से राजनीति होती तो हम देख सकेंगे। 


   

Thursday, November 28, 2013

180 करोड़ दान कर आ गए वृद्धाश्रम !

हले गुजरात का एक किस्सा सुना दूं, फिर पूरी कहानी बताता हूं। बात करीब सात आठ साल पुरानी है, मुझे शिलांग से दिल्ली आना था, मैं शिलांग एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चेक के बाद लांज में मैं बैठा हुआ था। इसी बीच एक साहब मेरे पास आए और पूछा कि क्या आप "गुजराती" हैं । मैंने कहा.. नहीं मैं गुजराती नहीं हूं, यूपी का रहने वाला हूं। वो थोड़ा गंदा सा मुंह बनाया और चला गया। खैर थोड़ी देर में ही वहां बैठे दूसरे लोगों में से एक गुजराती को उसने तलाश लिया और उसके पास अपना ब्रीफकेश रख कर टाँयलेट चला गया। मुझे रहा नहीं गया, उसके वापस आने पर मैने पूछा कि क्या आप गुजराती की तलाश इसलिए कर रहे थे कि आपको  टाँयलेट जाना था और आप अपना ब्रीफकेश किसी गुजराती के पास रखना चाहते थे ? उसे मेरी बात पर कोई संकोच नहीं और कहां हां सही बात है। मैं गुजराती के अलावा किसी के पास ब्रीफकेश नहीं छोड़ सकता हूं। 

आप सोच रहे होंगे की आठ साल पुरानी बात आखिर आज मुझे याद क्यों आई ? दरअसल अखबार की एक खबर पढ़कर मैं हैरान हूं। हालाकि अखबार में पूरी खबर नहीं है, लेकिन जितनी बातें है, वो कम से कम मुझे चौंकाने के लिए काफी है। खबर ये कि गुजरात के एक दालिया दंपत्ति ने अपनी 180 करोड़ की प्रापर्टी स्कूल, कालेज और धार्मिक संस्थानों को दान कर खुद पत्नी के साथ सूरत के वृद्धाश्रम में आ गए। अखबार में इस बात का जिक्र नहीं है कि उनके बेटा - बेटी हैं या नहीं ! लेकिन उन्होंने शमशान घाट पर भी 50 हजार रुपये जमा करा दिए हैं, जिससे उनकी मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार आसानी से हो सके। नरोत्तम भाई ( 97 ) और उनकी पत्नी लक्ष्मी बहन ( 84 )  सूरत के पास इलाके अडाजड़ से अब इस आश्रम में ही रह रहे हैं। वो मीडिया से भी दूरी बनाए हुए हैं। 



Wednesday, October 9, 2013

राजेन्द्र यादव बोले तो साहित्य का आसाराम !

जाने माने साहित्यकार राजेन्द्र यादव के बारे में जो खबरें आ रही हैं, वो बहुत घिनौनी है। मैं ज्योति को नही जानता, लेकिन कहा जा रहा है कि ज्योति राजेन्द्र जी की सहयोगी थी, जिसे राजेन्द्र यादव बेटी की तरह स्नेह करते थे, फिर भी ज्योति का एक वीडियो बन गया, इस वीडियो को लेकर राजेन्द्र का एक अन्य सहयोगी ज्योति को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर  रहा था। वैसे ये वीडियो कहां बना, किसने बनाया, वीडियो में क्या है, वीडियो में ज्योति भर है या राजेन्द्र यादव भी हैं, किसी को कुछ नहीं पता। 

मैं हैरान इस बात पर हूं कि राजेन्द्र यादव के घर पर उनकी मौजूदगी में वीडियो की बात हो रही थी, झगड़ा झंझट सब उनकी आंखो के सामने होता रहा, ज्योति के साथ गाली गलौज हो रही थी, लेकिन साहित्यकार राजेन्द्र जी शराब पीते रहे। राजेन्द्र जी जिसे अपनी बेटी कहते हैं, उसे बचाने के लिए एक शब्द नहीं बोले। बहरहाल इसके बाद जो हुआ वो तो शर्म से डूब मरने की बात थी। ज्योति ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को बुला लिया, पुलिस राजेन्द्र जी के घर से उनके दूसरे सहयोगी को साथ ले गई। अब मामला न्यायालय में है, वहां सभी  के अभियोग तय होंगे। सच क्या है और गलत क्या है, ये तो जब तय होगा तब देखा जाएगा, लेकिन राजेन्द्र यादव मेरी नजरों में बहुत नीचे गिर गए। जरूरत इस बात की है कि  साहित्य का ये आसाराम आत्मचिंतन करे और पूरे मामले में खुद ही अपनी सफाई दें। 

ऐसा नहीं है कि राजेन्द्र यादव के घर हुई इस घटना की जानकारी अखबारों और चैनलों को नहीं है। सब को हर बात पता है। वैसे भी अब इस मामले में बकायदा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है। इसके बाद भी साहित्य के आसाराम पर किसी चैनल ने चर्चा नहीं की। मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर भी चर्चा होनी चाहिए। युवा लेखक और लेखिकाएं राजेन्द्र जी की प्रशंसक है, महिलाएं एक भरोसे से राजेन्द्र जी के पास आती हैं, अगर साहित्य की आड़ में कुछ ऐसा वैसा हो रहा है, तो ये गंभीर मामला है और इस पर भी बहस होनी चाहिए। 



ज्यादा जानकारी के लिए देखें ये लिंक...




Tuesday, August 20, 2013

रिटायर होकर आराम करने आया है टुंडा !

मुझे देश में बढ़ रहे आतंकवाद के बारे में तो अच्छी जानकारी है, लेकिन आतंकवादियों इनके ठिकाने, इनके संगठन के बारे में बस सुनी सुनाई बातें ही पता हैं। देख रहा हूं तीन चार दिन से एक सेवानिवृत्त आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को लेकर दिल्ली पुलिस इधर उधर घूम रही है। हालाकि इसने अकेले ही पुलिस के पसीने छुड़ा दिए हैं। पुलिस उसे आतंकवाद की पांच घटनाओं में शामिल होने की बात करती है, टुंडा पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए दावा करता है कि वो पांच और यानि आतंकवाद की 10 घटनाओं में शामिल रहा है। खुद को अंडरवर्ल्ड डाँन दाउद इब्राहिम का सबसे करीबी भी बता रहा है। इतना ही नहीं खुद ही कह रहा है कि वो लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का बड़ा आतंकवादी है। पुलिस बहुत मेहनत से सवाल तैयार करती है, उसे लगता है कि टुंडा सही जवाब देने से हिचकेगा, लेकिन वो पुलिस को बिल्कुल निराश नहीं कर रहा है, आगे बढ़कर अपने अपराध कुबूलता जा रहा है। जानते हैं टुंडा खाने पीने का भी काफी शौकीन है, वो खाने में सिर्फ ये नहीं कहता है कि उसे बिरयानी चाहिए, बल्कि ये भी बताता है कि जामा मस्जिद की किस दुकान से बिरयानी मंगाई जाए। टुंडा के हाव भाव से साफ है कि वो यहां पुलिस से टांग तुडवाने नहीं बल्कि जेल में रहकर मुर्गे की टांग तोड़ने आया है।

सुना है कि भारत - नेपाल सीमा यानि उत्तराखंड के बनबसा से दिल्ली पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया है। देखिये ये तो पुलिस का दावा है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि टुंडा पुलिस के बिछाए जाल में फंसा है, मेरा तो मानना है कि पुलिस इसके जाल में फंसी है। अंदर की बात बताऊं ? टुंडा की जो तस्वीर पुलिस के रिकार्ड में है, उस तस्वीर से तो पुलिस सात जन्म में भी टुंडा को तलाश नहीं सकती थी। हो सकता है कि ये बात गलत हो, पर मेरा तो यही मानना है कि टुंडा ने खुद ही पुलिस को अपनी पहचान बताई है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं क्या कहता जा रहा हूं। भला टुंडा क्यों पुलिस के हत्थे चढ़ेगा ? उसे मरना है क्या कि वो दिल्ली पुलिस के पास आएगा ? हां मुझे तो यही लगता है कि वो बिल्कुल आएगा, क्योंकि इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल टुंडा अब बूढा हो गया है और इस उम्र में वो पुलिस के साथ आंखमिचौनी नहीं खेल सकता। ऐसे मे हो सकता है कि आतंकवादी गैंग से ये रिटायर हो गया हो। साथियों ने उसे सलाह दी हो कि अब तुम्हे आराम की जरूरत है।

किसी आतंकवादी को आराम की जरूरत हो तो उसके लिए भारत की जेल से बढिया जगह भला कहां मिल सकती है। मुझे तो लगता है कि वो यहां पूरी तरह आराम करने के मूड में ही आया है। यही वजह है कि वो किसी भी मामले में अपना बचाव नहीं कर रहा है। आतंकवाद से जुड़ी जिस घटना के बारे में भी पुलिस उससे पूछताछ करती है, वो सभी अपने को शामिल बताता है। इतना ही देश के दूसरे राज्यों में भी हुई आतंकी घटनाओं में भी वो अपने को शामिल बताने से पीछे नहीं हटता। हालत ये है कि दिल्ली पुलिस से उसकी पूछताछ पूरी होगी, फिर उसे एक एक कर दूसरे राज्य की पुलिस रिमांड पर लेकर अपने यहां ले जाएगी। ऐसे में टुंडे का पर्यटन भी होता रहेगा। घूमने फिरने का टुंडा वैसे भी शौकीन है, अब सरकारी खर्चे पर उसे ये सुविधा मिलेगी, तो भला उसे क्या दिक्कत है। 

और हां, देश की पुलिस की कमजोरी ये टुंडा जानता है। यहां पुलिस प्रमोशन और पदक के लिए पागल रहती है। जाहिर है इतने बड़े आतंकी को पकडने वाली पुलिस टीम को प्रमोशन भी मिलेगा और पदक भी। इसलिए टुंडा पुलिस की हर बात बिना दबाव के खुद ही मान ले रहा है। उसे ये भी पता है कि  कोर्ट में उसका जितने साल मुकदमा चलेगा, उतनी तो उसकी उम्र भी नहीं बची है। अब टुंडा इतना बड़ा आतंकी है तो उसे कड़ी सुरक्षा में रखा भी जाएगा। टुंडा सुन चुका है कि यहां कसाब के रखरखाव पर मुंबई सरकार ने कई सौ करोड रुपये खर्च किए हैं। यहां तक की उसकी मौत के बाद उसके शव को कई महीने तक सुरक्षित रखा गया था। कसाब को उसकी मन पसंद का खाना मिलता था, अब इस उम्र में टुंडा और क्या चाहिए ? लेकिन टुंडा ने कुछ जल्दबाजी कर दी, अभी पुलिस की पूछताछ चल ही रही है कि उसने पुलिस से लजीज खाने की मांग रखनी शुरू कर दी। एक सलाह दे रहा हूं टुंडा, थोड़ा तसल्ली रखो, जेल में अच्छी सुविधा मिलेगी। अभी अगर बिरयानी वगैरह मांगने लगे तो आगे मुश्किल हो जाएगी।


Saturday, August 10, 2013

हार गया INCOME TAX विभाग से !



मुझे लगता है कि कई मेरी तरह आप भी अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट, बीमा एजेंट पर भरोसा कर लेते होंगे और सादे फार्म पर हस्ताक्षर करके उसे थमा देते होंगे। लेकिन इससे कैसी मुश्किल आती है, ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता होगा। मतलब एक छोटी सी गलती को दुरुस्त कराना इस सरकारी सिस्टम में कितना मुश्किल है, ये सुनकर आपके भी कान खड़े हो जाएंगे। गलती ये कि आयकर के PAN कार्ड के लिए मैने सात साल पहले जब आवेदन किया तो फार्म पर हमने हस्ताक्षर पहले कर दिया और मेरे आफिस के ही एकाउंट्स से जुड़े सहकर्मी ने मेरा फार्म भरा। उस बंदे ने पहले तो मेरा mail ID बिना मुझसे पूछे गलत भर दिया, जो अब ठीक हो चुका है। इसके अलावा मेरे नाम Mahendra Kumar Srivastava की स्पेलिंग गलत कर दी। मतलब मैं श्रीवास्तव की स्पेलिंग SRIVASTAVA लिखता हूं, उसने फार्म में SHRIVASTAVA लिख दिया। अंतर ये कि उसने बेवजह " H " शामिल  कर दिया, जो मैं नहीं लिखता हूं। 

अब इस गलत नाम से PAN कार्ड बनकर मेरे पास आ गया। इस एक H ने मेरा बाजा बजा दिया है। मैं किसी लोन के लिए अप्लाई करता हूं तो रिजेक्ट हो जाता है। आँनलाइन रिटर्न दाखिल करने में असुविधा होती है। बैंक में मेरे नाम और आयकर के PAN में नाम अलग अलग होने से तमाम Financial Process में मुश्किल हो रही है। आपको लग रहा होगा कि ये कौन सा मुश्किल काम है, इसे ठीक कराया जा सकता है। बिल्कुल सही कहा आपने, ये ठीक हो सकता है, लेकिन इसके लिए मैं हर संभव कोशिश कर चुका हूं, और कई बार इसकी फीस दे चुका हूं, पर मामला ज्यों का त्यों है। मेरे चार्टर्ड एकाउंटेंट ने मुझसे कहाकि आप अपने बैंक के डाक्यूमेंट्स दे दीजिए, नाम ठीक हो जाएगा। मैने दे दिए, आयकर अधिकारी इसे नहीं माना। कहा कि बैंक के कागजात  मान्य नहीं हैं।

मुझसे हाईस्कूल का प्रमाण पत्र मांगा गया। मैने हाईस्कूल का प्रमाण पत्र दिया, लेकिन 1980 में मैने हाईस्कूल यूपी बोर्ड से किया है, उस वक्त प्रमाण पत्र पर नाम हिंदी में लिखे होते थे। इसलिए आयकर विभाग ने इस प्रमाण पत्र को खारिज कर दिया। मैने इंटर मीडिएट का सर्टिफिकेट दिया तो कहाकि इंटरमीडिएट का सर्टिफिकेट मान्य नहीं है। कहा गया कि आप आप चुनाव आयोग के पहचान पत्र की फोटो कापी दीजिए। बिल्कुल सही, मैने अगले ही दिन चुनाव आयोग की कार्ड की फोटो कापी दे दी, लेकिन इसमें आप जानते ही हैं कि मतदाता सूची और इस निर्वाचन आयोग के पहचान पत्र में पूरा नाम लिखने की जैसे परंपरा ही नहीं है। इसलिए इस पहचान पत्र में सिर्फ महेन्द्र कुमार ही लिखा है। यहां भी श्रीवास्तव नहीं है। बात ड्राईविंग लाइसेंस की हुई, मेरे पास ड्राईविंग लाइसेंस भी है। लेकिन ये लाइसेंस मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का बना हुआ है, इसमें भी नाम हिंदी में है।

केंद्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है आधार कार्ड। इस आधार कार्ड मे मेरा नाम हिंदी और अंग्रेजी में बिल्कुल स्पष्ट है। लेकिन आपको पता है, ये आधार कार्ड को आयकर विभाग की मान्यता ही नहीं है। सच बताऊं मैं अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट की कार्यप्रणाली और आयकर विभाग की इतनी जटिल प्रकिया से हार गया हूं। अब मुझे एक  नया रास्ता बताया गया है। कहा जा रहा है कोई राजपत्रित अधिकारी आयकर विभाग के एक निर्धारित प्रपत्र पर ये लिखकर दे कि हां मैं Mahendra Kumar Srivastava को जानता हूं। इनके नाम के आगे Srivastava ही होना चाहिए। इस पर वो अधिकारी हस्ताक्षर करने के साथ ही अपने आई कार्ड का फोटो स्टेट भी देगा। बताइये मित्रों ! अब भला कोई अधिकारी मेरे लिए ऐसा क्यों करेगा ? लेकिन आप इसमें मेरी मदद करें तो मैं कृतज्ञ रहूंगा। अगर हमारे बीच कोई आयकर अधिकारी है तो प्लीज वो मेरी दिक्कत पर गौर फरमाएं।


 


Tuesday, July 23, 2013

बुरे फस गए बेचारे राहुल !

च कहूं, जब आपके दिन बुरे चल रहे हों, तो भले ही आप हाथी पर क्यों ना बैठे हों, कुत्ता काट ही लेगा। राजनीति में भी हमेशा एक सा नहीं रहता, कुछ ऐसा वैसा चलता ही रहता है। दो दिन पहले कुछ बुद्धिजीवियों के साथ बैठा था। यहां सभी राजनीति के गिरते स्तर और भ्रष्टाचार पर बहुत दुखी थे। हमने कहा कि दुखी होने से तो कुछ होने वाला नहीं है, कुछ करना होगा ना। एक साहब ने कहाकि अगर उड़ते हुए जहाज से एक नेता को नदी में गिराया जाए तो इससे " पलूसन " होगा, लेकिन इसी जहाज पर देश के सभी नेताओं को बैठा कर अगर उन्हें ऊपर से नदी में गिरा दिया जाए तो भारतीय राजनीति का " सलूसन " निकल आएगा।

सामान्य माहौल में भी नेताओं के प्रति लोगों का गुस्सा देखकर मैं बहुत हैरान था। कई बार सोचता हूं क्या वाकई देश की लीडरशिप इसी काबिल है कि उन्हें उड़ते जहाज से नदी में गिरा देना चाहिए ? अच्छा ये बातें सुनते सुनते जब मैं थक गया तो बोले बिना रहा नहीं गया, मैने कहाकि इसका मतलब आप सब संसद पर हमले को सही मानते हैं ? क्योंकि अगर हमला कामयाब हो जाता तो देश की लीडरशिप ही तो मारी जाती ! मैं यहीं नहीं रुका, कहा कि अगर संसद पर हमले को आप जायज ठहराते हैं तो हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरू की फांसी को गलत मानते होंगे ? फिर तो अफजल का सम्मान होना चाहिए ? बहरहाल इसके बाद लोग चुप हो गए और बात बदल कर हिंदू मुस्लिम वोटों की शुरू हो गई।

बातचीत के दौरान एक साहब ने बढिया किस्सा सुनाया। कहने लगे छत्तीसगढ में चुनाव को देखते हुए राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी जनसंपर्क को निकले। घने जंगल में बसे गांव के एक-एक घर जाकर लोग वोट की अपील कर रहे थे। इसी संपर्क के दौरान दोनों नेता अपने समर्थकों से बिछड़ गए और जंगल में भटक गए। अंधेरा होने को था, अचानक जंगल में ही मोदी और राहुल की मुलाकात हो गई। दोनों मुश्किल में थे, लिहाजा दोनों गले मिले, एक दूसरे की खूब तारीफ की। लेकिन अब दोनों को भूख सता रही थी। पर खाने को कुछ नहीं था। जंगल में किसी तरह रात बीती, सुबह वो फिर रास्ता तलाशने निकले। भूख से दोनों का बुरा हाल था। कुछ दूर चले तो सामने एक मस्जिद दिखाई दी। राहुल गांधी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने मोदी को सलाह दी कि सामने मस्जिद है, आजकल रमजान का मौका है, वो हमें जरूर कुछ खाने पीने को देंगे, बस हम अपना नाम थोड़ा बदल लेते हैं।

मोदी चुपचाप राहुल की बात सुनते रहे, राहुल ने कहा कि मैं अहमद हो जाता हूं आप मोहम्मद बन जाइए। क्या करना है कुछ खाने को तो मिल जाएगा। मोदी उखड़ गए, उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं, मैं एक हिंदू राष्ट्रवादी हूं, मैं भूखा रह सकता हूं, सिर्फ खाने के लिए धर्म नहीं बदल सकता। खैर राहुल को भूख बर्दास्त नहीं हो रही थी, कुछ देर बाद दोनों ही मस्जिद पुहंच गए। वहां राहुल ने अपना नाम अहमद हसन बताया और खुश हो गए कि अब कुछ खाने को मिलेगा। मोदी ने अपना पूरा नाम बताया और कहाकि मेरा नाम नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी है। मौलाना ने कारिंदों को आवाज देकर बुलाया और कहा कि अरे भाई देखो मोदी साहब आए हैं, इन्हें खाना वाना खिलाइये। राहुल की ओर इशारा करते हुए मौलवी साहब ने कहाकि अहमद हसन साहब आपका तो रोजा होगा, शाम को रोजा इफ्तार कीजिएगा। तब तक आप आराम कीजिए। वैसे ये तो किस्सा है, लेकिन एक खास तबके के वोट के लिए जिस तरह कुछ राजनीतिक दल के नेता लार टपका रहे हैं, कल को उनकी ऐसी ही दुर्गति हो तो हैरानी नहीं होगी।

         

Wednesday, July 10, 2013

फेसबुक पर Like खरीदते हैं मुख्यमंत्री !

कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का भी बुरा हाल है। क्या करें, क्या ना करें, ये बात उनकी समझ में ही नहीं आ रही है। कामयाबी के लिए राज्य की जनता के दुखदर्द में शामिल हों या फिर सोशल साइट पर "लाइक" की संख्या बढ़ाकर लोकप्रियता के नए पैमाने पर सबसे आगे खड़े हो जाएं, वो ये तय नहीं कर पा रहे हैं। अब कांग्रेसियों ने देखा कि नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री तो गुजरात के हैं, लेकिन उनकी छवि एक राष्ट्रीय नेता की बन चुकी है, इसमें सोशल नेटवर्किंग साइट्स का अहम योगदान है। इसलिए मोदी की देखा देखी कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सोशल साइट्स पर ग्रुप बनवाया, अब  "लाइक्स" की संख्या बढ़ाने के लिए सौदेबाजी पर उतर आए, लेकिन क्या करें, बेचारे अपने ही जाल में फस गए। गहलौत साहब लोकप्रियता खरीदी नहीं जा सकती, समझ में आई बात !

पूरा किस्सा सुन लीजिए , सोशल मीडिया पर जारी सियासत ने राजस्‍थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की खूब फजीहत हो रही है।  आरोप है कि वो अपनी शोहरत यानि लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए आधिकारिक फेसबुक पेज के लिए 'लाइक्स खरीदने' में जुट गए हैं। वैसे तो ये काम छोटे मोटे लोग भी करते हैं, इसका फेजबुक पर बकायदा प्राविजन है। अब गहलोत ने अपने फेसबुक पेज का जिम्मा एक अलग हाईटेक टीम के हवाले कर रखा है। बताते हैं कि इस उनके इस पेज पर 1 जून तक 1,69,077 लाइक्स मिले हुए थे। इसमें भी ज्यदातर लाइक्स 5 मई वाले हफ्ते में आए हुए हैं।

अब हैरानी इस बात को लेकर है कि महज एक महीने यानि 30 जून तक ये आंकड़ा उछलकर 2,14,639 पर कैसे पहुंच गया ? इतना ही नहीं पहले मसलन एक जून तक गहलौत की " मोस्ट पापुलर सिटी " यानि गहलौत साहब कहां सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं, कहां उनके ज्यादा फालोवर हैं,  ये सब जयपुर था। लेकिन अचानक "लाइक्स" की संख्या बढ़ने के बाद उनकी पापुलेरिटी जयपुर के बजाए " इंस्ताबुल " हो गया, जो तुर्की की राजधानी है। हाहाहहाहाहा। मतलब भाई गहलौत जी अब तुर्की में ज्यादा लोकप्रिय हो गए हैं। 

अब विरोधी भी तो मौके की तलाश में रहते है। बीजेपी नेता किरण ने मुख्यमंत्री पर सवाल खड़े कर दिए।  उनका कहना है कि गहलोत की आखिर इंस्ताबुल में इतनी चर्चा कैसे हो सकती है ? उन्होंने आरोप लगाया कि ये लाइक्स इंस्ताबुल की किसी आईटी कंपनी से खरीदे गए हैं। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सोशल मीडिया पर भी गलत छवि पेश कर रही है। कहते हैं ना कि हर जगह टांग नहीं फंसाना चाहिए, अब मुख्यमंत्री ठहरे ठेठ राजस्थानी, कंपूटर को उन्होंने कभी हाथ नहीं लगाया होगा, फून में भी बहुत सामान्य वाला इस्तेमाल करते हैं। अब टाई लगाकर उन्हें आधुनिक बनाने की कोशिश की जा रही है। भाई गहलौत जी आप जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं, कहीं टाई के चक्कर में पगड़ी में उतर जाए ?







Monday, July 1, 2013

जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को !

त्तराखंड त्रासदी पर बाकी बातें बाद में ! मुझे लगता है कि नाराज देवी देवताओं को मनाने के लिए सबसे पहले विधि-विधान से पूजा पाठ कर उत्तराखंड के लापरवाह, निकम्मे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को जल-समाधि दे दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं राहत कार्य में व्यवधान पहुंचाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी सख्त सजा जरूरी है। इन दोनों को अन्न-जल त्यागने पर विवश कर इन्हें इनके आलीशान बंगलों से बाहर किसी पहाड़ी पर भेजा जाना चाहिए, जो साल भर घनघोर पहाड़ी पर कठिन तपस्या के जरिए अपने किए पापकर्मों से मुक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करें। उत्तराखंड सरकार के बाकी मंत्रियों को क्षतिग्रस्त सड़को को दुरुस्त करने के काम में लगा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा जिस अफसर ने मौसम विभाग की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया, उस अफसर को जिंदा जमीन में गाड दिया जाए तो भी ये सजा कम है। मेरा तो ये भी मानना है कि उत्तराखंड में जिस तरह भीषण तबाही हुई है, उसे फिर पटरी पर लाने के लिए दो कौड़ी के नेताओं की कोई जरूरत नहीं है, वहां सेना को ही पुनर्वास का काम भी सौंप दिया जाए, वरना ये उचक्के नेता तो पीड़ितों के लिए मिलने वाली सहायता राशि में भी लूटमार करने से चूकने वाले नहीं है। 

देवभूमि में प्रकृति ने जो कहर ढाया, मैं समझता हूं कि उसे रोकना किसी के बस की बात नहीं थी। लेकिन उसके असर को कम करना, होने वाले नुकसान को कम करना, जान माल की क्षति को कम करना, प्रभावकारी ढंग से सहायता पहुंचा कर लोगों को तत्काल राहत पहुंचाना ये सब काम हो सकता था, जो नहीं हो सका। नतीजा क्या हुआ ? लगभग एक हजार लोग मारे जा चुके हैं, चार हजार के करीब लापता हैं। चूंकि इनके शव बरामद नहीं हुए हैं, इसलिए तकनीकि रूप से लापता कहा जा रहा है। मैं तो कहता हूं कि अब 15 दिन से ज्यादा समय हो चुके हैं, मान लिया जाना चाहिए कि इनकी भी मौत हो चुकी है। कई सौ गांव का अस्तित्व खत्म हो गया है, पांच सौ से ज्यादा सड़कें बह गई हैं, बिजली, पानी और संचार सेवा पूरे इलाके में लगभग ठप है। बताया जा रहा है कि तबाही वाले इलाके में जहां तहां लोगों के शव अभी भी पडे हुए हैं। हालाकि अब उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है। 

मैने स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा को बहुत करीब से देखा है, उन्हें खूब सुना है, उनकी कार्यशैली देखी है। लेकिन उनका बेटा इस कदर नालायक, अक्षम, झूठा, लालची, लापरवाह और निकम्मा होगा, कम से कम मैने तो सपने में भी नहीं सोचा था। पता चला है कि जिस वक्त उत्तराखंड पर ये कहर फूटा, उस दौरान मुख्यमंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र सितारगंज में एक रूसी कंपनी को सौ एकड जमीन दिए जाने के एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने वाले अपने खास अधिकारी की पीठ थपथपा रहे थे।  उन्हें कुदरत के कहर की भनक तक नहीं लगी थी। जब उन्हें इस घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने प्रभावित इलाके में जाना भी ठीक नहीं समझा, उन्होंने ये जानने की भी कोशिश नहीं की कि वहां कितना नुकसान हुआ है और कितने श्रद्धालु केदारनाथ के दुर्गम रास्तों में जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। मूर्ख मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अपने दो साथी मंत्रियों को साथ लेकर दिल्ली आ धमके। जानते हैं किस लिए, इसलिए कि उत्तराखंड में भारी तबाही हुई है, उन्हें पैकेज यानि आर्थिक मदद दी जाए। 

इस दौरान बेवकूफ मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से ये मांग नहीं की कि दुर्गम इलाके में कई हजार श्रद्धालु फंसे हुए हैं, उन्हें बाहर निकालने के लिए सौ हेलीकाप्टर तुरंत भेजे जाएं। ये पट्ठा यहां दिल्ली में पैसे के लिए गिड़गिड़ाता रहा, जबकि वहां श्रद्धालु दम तोड़ते जा रहे थे। ये पैसे के लिए इतने लालायित थे कि अपनी ही सरकार पर दबाव बनाने के लिए विभिन्न न्यूज चैनलों पर जाकर घंटों वहां के हालात के बारे में बक-बक करने लगे, जबकि इन्होंने प्रभावित इलाकों का दौरा तक नहीं किया था। मुख्यमंत्री दिल्ली में जब पैसे की मांग को लेकर समय बिता रहे थे, उसी दौरान उत्तराखंड के ही कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने पार्टी आलाकमान को हालात की गंभीरता के बारे में बताया और साफ किया कि इसमें तुरंत केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करने की जरूरत है, क्योंकि मुख्यमंत्री में ऐसे मामलों से निपटने की ना क्षमता है और ना ही मजबूत  इच्छाशक्ति। बताते हैं कि इसके बाद कांग्रेस आलाकमान सख्त हुआ तो बहुगुणा दिल्ली छोड़ कर देहरादून रवाना हुए। 

बहुगुणा की निर्लज्जता की खबरें वाकई इंसानियत को शर्मसार करने वाली हैं। जानते हैं 20 जून के आसपास मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को कुछ अधिकारियों के साथ स्विट्जरलैंड जाना था। 16 जून को ये हादसा हो गया, इसके बाद भी मुख्यमंत्री अपना विदेश दौरा रद्द नहीं करना चाहते थे, उन्होंने विदेश मंत्रालय और पार्टी आलाकमान को दौरा रद्द करने की कोई जानकारी नहीं दी। इधर दौरा रद्द होने की कोई जानकारी ना मिलने के कारण विदेश मंत्रालय मुख्यमंत्री की यात्रा की तैयारियों में लगा रहा। बताया जा रहा है कि इस मामले में भी उत्तराखंड के कांग्रेस नेताओं ने पार्टी हाईकमान से शिकायत की और कहाकि वैसे मुख्यमंत्री का देहरादून में रहना ना रहना कोई मायने नहीं रखता, फिर भी अगर वो स्विट्जरलैंड गए तो पार्टी की छवि खराब होगी। इसलिए उनका दौरान रद्द किया जाना चाहिए। बताते हैं ये जानकारी होने के बाद आलाकमान ने बहुगुणा से सख्त नाराजगी जाहिर की, तब जाकर दौरा रद्द किए जाने की जानकारी विदेश मंत्रालय को भेजी गई। ऐसे मुख्यमंत्री को अगर लोग कह रहे हैं कि नालायक है, कह रहे हैं कि अक्षम है, कह रहे हैं कि लापरवाह है, तो मुझे नहीं लगता कि कोई गलत कह रहा है। अब कोई अक्षम, लापरवाह, नालायक है तो इसकी कानून में तो कोई सजा है ही नहीं, लिहाजा इन्हें धार्मिक रीति-रिवाज ठिकाने लगाने के लिए जल समाधि ही सबसे बेहतर उपाय है। 

वैसे लापरवाह सिर्फ मुख्यमंत्री को कहा जाए तो ये भी बेमानी होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए सोनिया गांधी की वजह से भी वहां राहत कार्य बाधित हुआ। वहां से जो जानकारी मिली अगर वो सही है तो ये केंद्र सरकार के लिए भी कम शर्मनाक नही है। पता चला है कि उत्तराखंड में जहां-तहां फंसे श्रद्धालुओं की सहायता के लिए लगाए गए सेना और प्राईवेट हेलीकाप्टर काफी देर तक उड़ान नहीं भर पाए। कारण मौसम की खराबी नहीं थी, बताया गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी इलाके का हवाई सर्वेक्षण कर तबाही का मंजर देख रही थीं। इसलिए सुरक्षा कारणों से काफी समय तक दूसरे हेलीकाप्टर उडान नहीं भर सके। अरे भाई मनमोहन और सोनिया जी आप के हवाई सर्वेक्षण से क्या फर्क पड़ने वाला है। अफसरों की टीम भेज देते, वो नुकसान का सही आकलन भी कर पाते। अब इसके लिए तो मेरे ख्याल से ये दोनों भी बराबर की सजा के हकदार हैं।

अब प्रधानमंत्री के हवाई सर्वेक्षण करने के खिलाफ भी कोई कानून तो है नहीं, अरे भाई मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं वो कहीं का, कभी भी हवाई सर्वेक्षण कर सकते हैं। लेकिन उत्तराखंड में राहत कार्य में जो बाधा पहुंची, उस मामले में सजा तो दी ही जानी चाहिए। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि धार्मिक तौर पर इन दोनों को अन्न-जल त्याग का संकल्प दिलाकर पहाड़ी पर छोड़ दिया जाए। इन्होंने मानव जीवन का अनादर किया है, इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए कि साल भर तक ये किसी व्यक्ति की सूरत भी नहीं देख सकेंगे। सच में ये दोनों भी कुछ इसी तरह की सख्त कार्रवाई के हकदार हैं। 

सोशल साइट पर कुछ बेपढ़े लोगों ने मौसम विभाग के खिलाफ अभियान चला रखा है। मौसम विभाग के खिलाफ जोक्स बनाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब मौसम विभाग के अफसर बारिश की भविष्यवाणी करते हैं तो उनकी पत्नी भी सूखने के लिए बाहर डाले गए कपड़ों को नहीं हटाती है, फिर देश के दूसरे लोग भला उनकी भविष्यवाणी पर भरोसा कैसे कर सकते हैं ? मैं तो यही कहूंगा कि जो भरोसा नहीं करते हैं वो मूर्ख हैं। मौसम विभाग की भविष्यवाणी को सड़क छाप ज्योतिष की भविष्यवाणी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। जम्मू कश्मीर में अमरनाथ यात्रा अक्सर इसलिए रोक दी जाती है कि मौसम विभाग भविष्यवाणी करता है कि मौसम ठीक नहीं रहेगा। वहां राज्य सरकार और मौसम विभाग का तालमेल बहुत बेहतर है। यही वजह है कि अमरनाथ में ऐसे हादसे काफी कम होते हैं। इसलिए मौसम विभाग की चेतावनी की एकदम से अनदेखी करना वाकई गैरजिम्मेदारी का काम है। अब उत्तराखंड की बात करें। यहां मौसम विभाग ने बकायदा दो दिन पहले एक लिखित चेतावनी राज्य सरकार के वरिष्ठ अफसरों को भेजा। इसमें यहां तक साफ किया गया कि मौसम खराब होने वाला है, इसलिए यात्रा रोक दी जाए। लेकिन राज्य सरकार ने इस चेतावनी पर बिल्कुल गौर ही नहीं किया। मेरे लिए तो ऐसे अफसर के लिए धरती पर कोई जगह नहीं है, मै तो उसे जिंदा जमीन में गाड़ने का हुक्म दे दूं। फिर भी मैं उत्तराखंड सरकार से ये जानना चाहता हूं कि आखिर इस सबसे बड़ी लापरवाही के लिए जिम्मेदार अफसर के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? 

अब आखिरी बात ! उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पर अब भरोसा भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि इतनी बड़ी आपदा के बावजूद वो झूठ पर झूठ बोलते जा रहे हैं। एक दिन मुख्यमंत्री ने खुद ही कहाकि प्रभावित इलाके में संचार प्रणाली ठप हो गई है। अगले दिन बोले कि वो प्रभावित इलाके के जिलाधिकारियों के साथ लगातार वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए आदेश दे रहे हैं। संचार व्यवस्था ठप होने पर भी मुख्यमंत्री की वीडियो कान्फ्रेंस चालू है, वाह रे झूठे मुख्यमंत्री ! यही वजह है कि अब इन नेताओं पर हमें क्या किसी को भरोसा नहीं रह गया है। देश को लगता है कि बहुगुणा की नजर राहत कार्य के लिए मिलने वाली सहायता राशि पर है। मेरा सुझाव है कि जिस तरह कठिन हालात में देश की सेना ने लोगों की मदद की है, वहां पुनर्वास का काम भी सेना के हवाले कर दिया जाना चाहिए। एक तो पैसे का सदुपयोग होगा, दूसरे काम जल्दी हो जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इन नेताओं से खासतौर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली से तो मुझे घिन्न आ रही है।

चलते - चलते : इस घटना को अब 15 दिन बीत चुके हैं। अभी भी वहां फंसे हुए अंतिम व्यक्ति को निकाला नहीं जा सका है। मैं पूछना चाहता हूं कि हमारे पास ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए आखिर क्या तैयारी है। अब सरकार पर सवाल तो उठेगा ही, कांग्रेस ये कह कर नहीं बच सकती कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।  मैं पूरी जिम्मेदारी से कहता हूं कि इस पर खूब राजनीति होनी चाहिए, जिससे आने वाले समय में ऐसा कोई मैकेनिजम बन सके, जिससे आपदा के दौरान तुरंत जरूरतमंदों को राहत मिल सके। 




Thursday, June 13, 2013

नीतीश के दांत : खाने के और दिखाने के और !

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगें .............. अब क्या हुआ ?
नीतीश कुमार की ये तस्वीर गोधरा दंगे के बाद की है। एक सार्वजनिक मंच पर नीतीश ने सिर्फ नरेन्द्र मोदी के हाथ में हाथ ही नहीं डाला, बल्कि जनता के सामने हाथ ऊंचा कर अपनी दोस्ती का भी इजहार कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस तस्वीर के बाद नीतीश कुमार के बारे में कुछ कहना-लिखना ही बेमानी है, पर मेरी कोशिश है कि उन्हें जरा पुरानी बातें भी याद करा दूं। प्रसंगवश ये बताना जरूरी है कि गुजरात दंगे की शुरुआत गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 डिब्बे में आग लगाने से हुई, जिसमें सवार 59 कार सेवकों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात के हालात बेकाबू हो गए और जगह-जगह दंगे फसाद में बड़ी संख्या में एक खास वर्ग के लोग मारे गए। सभ्यसमाज में किसी से भी आप बात करें वो यही कहेगा कि दंगे नहीं होने चाहिए थे, मेरा भी यही मानना है कि वो दंगा गुजरात के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। अब नीतीश कुमार की बात कर ली जाए। गुजरात में जब दंगा हुआ उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसमें नीतीश कुमार रेलमंत्री थे। दंगे की शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने से हुई, जिसमें 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया। ट्रेन में ये हादसा हुआ था, ऐसे में अगर नीतीश कुमार में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो उन्हें तुरंत रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। खैर, ट्रेन में हुए हादसे की प्रतिक्रिया हुई और गुजरात में दंगा भड़क गया। बड़ी संख्या में एक ही वर्ग के लोग मारे गए। मोदी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठे, आरोप यहां तक लगा कि उन्होंने जानबूझ कर दंगा रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। मामला अदालत में है, फैसला होगा, तब  देखा जाएगा। 

गुजरात दंगे से सिर्फ गुजरात ही नहीं पूरा देश सिहर गया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात पहुंचे और उन्होंने मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया। सच तो ये है कि वाजपेयी मोदी को मुख्यमंत्री के पद से ही हटाना चाहते थे, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की वजह से उन्हें नहीं हटाया जा सका। आज वही आडवाणी नीतीश कुमार के लिए धर्मनिरपेक्ष हैं। जिस आडवाणी की रथयात्रा से देश भर में माहौल खराब हुआ और अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई, देश के अलग अलग हिस्सों में दंगे हुए, जिसमें हजारों लोग मारे गए। आज वो आडवाणी बिहार के मुख्यमंत्री के आदर्श है। खैर ये उनका व्यक्तिगत मामला है। मैं सीधा सवाल नीतीश से करना चाहता हूं। बताइये नीतीश जी, मेरे ख्याल से जब आप रेलमंत्री थे तो बालिग रहे ही होंगे, इतनी समझ जरूर होगी कि अल्पसंख्यकों के साथ बुरा हुआ है। उस वक्त आप खामोश क्यों थे ? आपने उस दौरान केंद्र की सरकार पर ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया कि मुख्यमंत्री को तुरंत बर्खास्त किया जाए ? आपने उस वक्त गुजरात जाकर क्या अल्पसंख्यकों के घाव पर मरहम लगाने की कोई कोशिश की ? मुझे पता है आप कोई जवाब नहीं देंगें। जवाब भी मैं ही दे देता हूं, आपको कुर्सी बहुत प्यारी थी, इसीलिए आप रेलमंत्री भी बने रहे और दंगे को लेकर आंख पर पट्टी भी बांधे रहे। 

मैं समझता हूं कि ये तस्वीर आपको नीतीश कुमार का असली चेहरा दिखाने के लिेए काफी है। क्योंकि गुजरात दंगे के बाद नीतीश हमेशा मोदी के साथ बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे हैं। दोनों की खूब बातें होती रही हैं, खूब हालचाल होते रहे हैं। लेकिन सिर्फ मुझे ही नहीं लगता, बल्कि बिहार के लोगों का भी मानना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश में " अहम् " आ गया है। वो अब खुद को मोदी से बड़ा आईकान समझने लगे। लेकिन नीतीश कुमार भूल गए कि आज राजनीतिक स्थिति यह है कि जिस बिहार के वो मुख्यमंत्री हैं, उसी बिहार में नरेन्द्र मोदी के पक्ष में एक मजबूत ग्रुप तैयार हो चुका है, जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार जब मोदी के खिलाफ जहर उगलते हैं तो इससे इन्हें काफी तकलीफ भी होती है। यही वजह है कि बिहार का एक बड़ा तबका आज नीतीश से चिढ़ने लगा है। नीतीश को ये बात पता है कि अब बिहार की राजनीति में दो ध्रुव है। एक पिछड़ों की जमात है और दूसरा अगड़ों की जमात है। यादव को छोड़ कर पिछड़ों और अगड़ों का बड़ा तबका आज नरेन्द्र मोदी के नाम की जय-जयकार कर रहा है। सच बताऊं मुझे लगता है कि नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य में काफी मुश्किल होने वाली है, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सेना के मिग-21 के उस लड़ाकू उड़ान जैसी है, जो अकसर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, जिसमे बेचारे तीरंदाज पायलटों को भी जान गवानी पड़ जाती है।

कुछ दिन पहले हुए महराजगंज लोकसभा उप चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को लगभग डेढ लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा। नीतीश की समझ में क्यों नहीं आया कि अब उनका असली चेहरा बिहार की जनता के सामने आ चुका है। दरअसल विधानसभा चुनाव में जो कामयाबी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को मिली, उसे ये अपनी जीत समझने लगे। जबकि सच्चाई ये थी कि लोग लालू और राबड़ी की सरकार से लोग इतने तंग थे कि वो बदलाव चाहते थे। बस उन्होंने इस गंठबंधन को मौका दे दिया। आज तो नीतीश पर भी तरह-तरह के गंभीर आरोप हैं। उन पर भी उंगली उठने लगी है। नीतीश सिर्फ अपनी ही पार्टी के नहीं बल्कि दूसरे दलों के भी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भ्रष्ट मानते हैं। लेकिन अब बिहार की जनता उनसे पूछ रही है कि भ्रष्ट नौकरशाह एन के सिंह और भ्रष्ट उद्योगपति किंग महेन्द्रा को राज्यसभा में उन्होंने क्यों भेजा? इतना ही नहीं उन्होंने अपने स्वजातीय नौकरशाह जो प्राइवेट सेक्रटरी था, उसे किस नैतिकता के साथ राज्यसभा में भेजा? इन सबके बाद भी जब नीतीश कुमार ईमानदारी की बात करते हैं तो बिहार में लोग हैरान रह जाते हैं। लोकसभा के उप चुनाव में हार इन तमाम गंदगी का ही नतीजा है।

अच्छा गली-मोहल्ले से गुजरने के दौरान कई बार आपको कंचा खेलते बच्चे दिखाई पड़ते हैं, जो साथ में खेलते भी है, फिर भी एक दूसरे को मां-बहन की गाली देते रहते हैं। आज जब जेडीयू की ओर से बयान आया कि वो दंगाई के साथ नहीं रह सकते, तो सच मे गली मोहल्ले में कंचा खेलते हुए और आपस में गाली गलौच करने वाले उन्हीं बच्चों की याद आ गई। मैं चाहता हूं कि नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता की अपनी परिभाषा सार्वजनिक करें, जिससे देश की जनता ये समझ सके कि आडवाणी किस तरह धर्मनिरपेक्ष हैं और नीतीश कुमार कैसे साम्प्रदायिक हैं। सच कहूं तो नीतीश कुमार का बनावटी चेहरा यह है कि एक तरफ वो नरेन्द्र मोदी को दंगाई कहते हैं और दूसरी तरफ भाजपा के साथ सत्ता सुख भी लूट रहे हैं। अगर नरेन्द्र मोदी दंगाई हैं और भाजपा उन्हें लगातार प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की राह आसान कर रही है, तो फिर भाजपा से अलग क्यों नहीं हो जाते ? इसमे इतना सोच विचार क्यों ? नीतीश कुमार एक साथ धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का जो खेल-खेल रहे हैं, उस पर जनता की नजर अब कैसे नहीं होगी?

मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के विरोध में उतरने की जरूरत क्या थी? लगता तो ये है कि नीतीश कुमार पर अहंकार और खुशफहमी भारी पड़ गई है। बिहार को संभालने के बजाए वो देश संभालने का ख्वाब देखने लगे हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नीतीश कुमार मुसलमानों की टोपी और गमछा पहन कर मोदी को दंगाई कहने से भी नहीं रूके। मैं जानना चाहता हूं कि क्या धर्मनिरेपक्ष होने और दिखने के लिए टोपी और गमछा ओड़ना जरूरी है? भाई अगर मुसलमान इतने से भी प्रभावित नहीं हुए तो क्या आने वाले समय में जेडीयू अपने चुनावी घोषणा पत्र में "खतना" को तो अनिवार्य नहीं कर देंगी ?  सच ये है कि जेडीयू की ताकत बिहार में भाजपा के साथ मिलने के कारण बढ़ी है। भाजपा ने लालू से मुक्ति के लिए अपने हित जेडीयू के लिए कुर्बान कर दिया। सबको पता है कि जेडीयू के पास कार्यकर्ता कम नेता ज्यादा हैं। जमीनी स्तर पर लालू से मुकाबले के लिए जेडीयू या नीतीश कुमार का कोई नेटवर्क नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता ही जमीनी स्तर पर लालू को चुनौती देने के लिए खडे रहते हैं। भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक मोदी के तीखे विरोध और नीतीश कुमार द्वारा मुस्लिम टोपी और गमछा पहनने की वजह से उनसे नाराज हैं और उनका कड़ा विरोध भी कर रहे हैं, उपचुनाव में हार इसकी एक बड़ी वजह है।

बहरहाल अब बीजेपी में नरेन्द्र मोदी का नाम बहुत आगे बढ़ चुका है, इतना आगे कि वहां से पीछे हटना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। जेडीयू को समझ लेना चाहिए कि जब मोदी का विरोध करने वाले आडवाणी को पार्टी और संघ ने दरकिनार कर दिया तो जेडीयू की भला क्या हैसियत है। ये देखते हुए भी नीतीश कुमार नूरा कुश्ती का खेल खेल रहे हैं, ये भी बिहार की जनता बखूबी समझ रही है। मैं पहले भी कहता रहा हूं आज भी कह रहा हूं कि अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति मे आगे बढ़ने से रोकना किसी के लिए आसान नहीं है। अगर जेडीयू इस मुद्दे पर बीजेपी से अलग रास्ते पर चलती है तो ये उसके लिए भी आसान नहीं होगा, मुझे तो लगता है कि इसका फायदा भी बीजेपी को होगा। बहरहाल अभी 48 घंटे का इंतजार बाकी है, बीजेपी की अंतिम कोशिश है कि गठबंधन बना रहे, लेकिन ये आसान नहीं है। जो हालात हैं उसे देखकर तो मैं यही कहूंगा कि जो लोग जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव और नीतीश कुमार से गठबंधन ना तोड़ने की भीख मांग रहे हैं वो बीजेपी, संघ और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। वैसे भविष्य तय करेगा, लेकिन इस मुद्दे पर कही जेडीयू ही टूट जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 




नोट: -   मित्रों ! मेरा दूसरा ब्लाग TV स्टेशन है। यहां मैं न्यूज चैनलों और मनोरंजक चैनलों की बात करता हूं। मेरी कोशिश होती है कि आपको पर्दे के पीछे की भी हकीकत पता चलती रहे। मुझे " TV स्टेशन " ब्लाग पर भी आपका स्नेह और आशीर्वाद चाहिए। 
लिंक   http://tvstationlive.blogspot.in  





Tuesday, June 4, 2013

याद करो "बाबा" की कारस्तानी !

मैं बाबा रामदेव को "बाबा" नहीं मानता हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि "बाबा" में जो गुण होने चाहिए, वैसा कुछ भी इनमें नहीं है, लिहाजा इन्हें रामदेव यानि रामू का संबोधन ही करूंगा। मुझे याद है दो साल पहले दिल्ली में योग शिविर के नाम पर देशभर से तमाम लोगों को यहां जमा किया गया और बाद में रामू कालाधन के मामले में सरकार से सौदेबाजी करने लग गया। सबको पता है रामू ने देश को धोखा दिया। बात पुरानी है, पर याद कीजिए उन्होंने एक दिन पहले ही यानि तीन जून 11 को सरकार के साथ अंदरखाने समझौता कर लिया था। फिर भी रामू का ड्रामा जारी रहा। खुद कह रहे थे कि उनकी  90 फीसदी बात मान ली गई है, बस  कुछ ही रह गई है। लेकिन सच्चाई ये है कि कपिल सिब्बल के साथ मीटिंग में एक दिन पहले ही वो सभी मुद्दों पर समझौता कर चुके थे। इतना ही नहीं उन्होंने ये समझौता लिखित में किया था। अगले दिन के लिए उन्होंने सरकार से सिर्फ छह घंटे वो  भी तप के लिए अनुमति मांगी और कहाकि चार जून को दोपहर ढाई बजे तक सब खत्म कर दूंगा। ये समझौता करने के बाद भी रामदेव के चेले सुबह मंच से चंदा वसूल रहे थे। क्या सब ड्रामा चंदे के पैसे के लिए था। पढिए उस वक्त की सनसनीखेज रिपोर्ट।

हालांकि मेरा मानना है कि रामदेव (रामू) पर ज्यादा बातें करना समय की बर्बादी भर है। अब वो पूरी तरह कारोबार कर रहे हैं और उन्हें उसी नजर से देखा जाना चाहिए। अगर दो साल पहले की बात याद की जाए तो मैं रामदेव की असलियत जानकर हैरान हूं। वो सरकार से क्या बात कर रहे थे और अपने चेलों को क्या बता रहे थे। बहरहाल मुझे सरकार से सिर्फ एक बात की शिकायत है, उन्हें रात में सोये हुए लोगों को पर लाठी बिल्कुल नहीं चलानी चाहिए थी, वरना बेवजह दिल्ली में डेरा डाले लोगो को यहां से खदेड़े जाने को तो मैं पूरी तरह जायज मानता हूं। अब हर मुद्दे पर छोटी छोटी बात रखता हूं, जिससे आपको पूरे घटनाक्रम को समझने में आसानी होगी ।

दिल्ली में सरकार है ना
रामदेव के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में मित्रों से बात हो रही थी। सबके अलग अलग विचार थे। मेरी भी राय पूछी गई। मैने साफ कहा कि दिल्ली में मुझे पहली बार लगा कि यहां कोई सरकार काम करती है। सत्याग्रह के नाम यहां जमें नौटंकीबाजों को देर रात में हटाना सही है, या गलत ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन मैं सरकार के इस साहस की तारीफ करुंगा कि उन्होंने इतनी बड़ी भीड़ को बलपूर्वक हटाने का फैसला किया। इससे उन लोगों को सबक मिलेगा जो भीड़ को आगे कर सरकार को बंधक बनाने की कोशिश करते हैं। इस फैसले के बाद अब विरोधी कमजोर सरकार और कमजोर पीएम का राग अलापना तो बंद कर ही देगी।

संतों ने रामदेव से किया किनारा
अनशन के पहले सिर्फ एक धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर जी रामदेव का समर्थन कर रहे थे, लेकिन इनकी हरकत देख बाद में उन्होंने भी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके अलावा देश में तमाम धर्मगुरु हैं, पर कोई भी धर्मगुरु रामदेव के साथ खड़ा क्यों नहीं हो रहा है। क्या रामदेव के साधु धर्म की असलियत की जानकारी सभी धर्मगुरुओं को हो गई है। एक डाक्टर पिट जाता है, देश भर के डाक्टर एकजुट हो जाते हैं, एक इंजीनियर की पिटाई होती है, सभी इंजीनियर हड़ताल पर चले जाते हैं, पत्रकार की पिटाई के खिलाफ पत्रकार एकजुट हो जाते हैं। लेकिन ये बात रामदेव को सोचनी चाहिए क्यों आज उनके साथ धर्मगुरू नहीं हैं।

रामदेव की कारस्तानी

 बाबा रामदेव सरकार से कुछ बातें करते रहे और लोगों को दूसरी बात बता रहे थे। हुआ ये कि एयरपोर्ट पर जब मंत्रियों के ग्रुप से रामदेव की बातचीत हुई, तभी ज्यादातर मामलों में सहमति बन गई थी। लेकिन रामदेव सभी मामलों में लिखित आश्वासन चाहते थे, लिहाजा तय हुआ कि अगले दिन यानि तीन जून को फिर मिलते हैं और सभी बिंदुओं पर लिखित आश्वासन दे दिया जाएगा। अगले दिन सरकार की ओर से रामदेव को फोन कर बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया तो, रामदेव कुछ बेअंदाज लहजे में बात कर रहे थे। जैसे मैं नार्थ ब्लाक में बात नहीं करुंगा। जबकि नार्थ ब्लाक और साउथ ब्लाक में केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण आफिस हैं। यहां बातचीत की एक अलग गरिमा होती है। बहरहाल बाद में रामदेव बात के लिए होटल में मिलने को तैयार हो गए। यहां बातचीत से रामदेव पूरी तरह समहत हो गए और सहमति का पत्र भी कपिल सिब्बल को तीन जून को ही थमा दिया और सरकार से उन्होंने आग्रह किया कि अब वो अनशन नहीं करेंगे, लेकिन उन्हें एक दिन तप करने की अनुमति दी जाए। चार जून को दोपहर ढाई बजे तक मैं सब समाप्त कर दूंगा।

वादे से पलटे रामदेव
वादे के मुताबिक रामदेव को दोपहर ढाई बजे तप खत्म करना था। इस दौरान भी उनकी लगातार सरकार से फोन पर बातचीत होती रही। और वो अब तब करते रहे। आखिर में रामदेव को चेतावनी दी गई कि अगर वो तप खत्म नहीं करते हैं तो सरकार के साथ जो समझौता उन्होंने तीन जून को किया है, उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा। इस पर रामदेव हिल गए और उन्होंने शाम को लगभग सात बजे खुद ही ऐलान किया कि उनकी सभी मांगे मान ली गई हैं, बस कुछ चीजें लिखित में आनी है और उसके बाद हम अपनी जीत मनाएंगे। यहां तक की रामदेव समेत सभी लोग मंच पर जयकारा भी करने लगे थे।

सरकार का रुख सख्त
एयरपोर्ट पर बाबा से मंत्रियों के मिलने से सरकार की काफी छीछालेदर हो चुकी थी। दरअसल मीडिया और बीजेपी ने इस मुलाकात को ऐसे पेश किया था जैसे सरकार रामदेव के आगे नतमस्तक हो गई है। रामदेव को सम्मान देने को जब सरकार की कमजोरी समझी जाने लगी तो सरकार सख्त हो गई और तय किया गया कि अब कोई मुरव्वत नहीं बरती जाएगी। जो बात रामदेव से लगातार हो रही है, अगर वो उसे मानते हुए तप खत्म नहीं करते हैं, तो सख्ती बरती जाएगी। रामदेव को ये बात पहले बताई भी गई थी। लेकिन वो भीड़ देख बेअंदाज थे, उन्हें लग रहा था कि इतनी बडी संख्या में लोग यहां है, पुलिस उनका कुछ नहीं कर पाएगी।

रामदेव और सलवार सूट
रामदेव शाम को काफी देर तक आक्रामक तेवर में बात कर रहे थे। वो शिवाजी और भगत सिंह की बात कर रहे थे। लेकिन पुलिस को देख 15 फीट ऊंचे मंच से वो महिलाओं के बीच में कूद गए। उन्हें लगा कि महिलाओं की आड़ लेकर वो यहां से चंपत हो सकते हैं। लेकिन लगातार कैमरे उन्हें कवर किए हुए थे, इसलिए भाग नहीं पाए। लेकिन जैसे ही अंधेरे का आड मिला, रामदेव अपना भगवा त्याग कर एक महिला के पहने हुए सलवार सूट को पहन कर भागने की कोशिश की। मेरा सवाल है, रामदेव जी आप तो मरने से नहीं डरते, लेकिन पुलिस को देखते ही आपने अपना भगवा धर्म तो भंग किया ही, सत्याग्रहियों को उनके हालत पर छोड़ भागने की कोशिश की।

रामू ने पिटवाया सत्याग्रहियों को
रामदेव के पास जव पुलिस पहुंची और उन्हें बताया कि रामलीला मैदान में योग कार्यक्रम की अनुमति रद्द कर दी गई है तो रामू अगर पुलिस को सहयोग करते तो यहां कोई उपद्रव नहीं होता। पुलिस अधिकारी चाहते थे कि रामू लोगों को खुद संदेश दें की वो यहां शांति बनाए रखें और पुलिस जैसा कहती है वैसा ही करें, क्योंकि पुलिस ने तमाम बसों का इंतजाम किया था जिससे लोगों को रेलवे स्टेशन या बस अड्डे तक पहुंचाया जा सके। लेकिन रामू जब महिलाओं के बीच में कूदे, तब पुलिस को हरकत में आना मजबूरी हो गई। इस तरह से रामू के सहयोग ना करने के कारण ही वहां लाठी चली, और हां जिस तरह से रामू ने उतनी ऊंचाई से छलांग लगाई वो कोई साधु संत तो नहीं लग सकता।

अनशन की हकीकत
हालाकि ये बात बहुत ही भरोसे से नहीं कही जा सकती, लेकिन रामदेव के करीबियों में ही कुछ लोग उनकी बचकानी हरकतों से खफा हैं। उनका कहना है कि रामू खुद मंच से कहते रहे कि 99 फीसदी मांगे मान ली गई हैं, तो फिर इन्हें तप नहीं करना चाहिए था। वैसे तप करने के पीछे एक वजह करोडों के चेक थे। बताते हैं कि दानदाताओं ने चेक अनशन के लिए दिया था। जब अनशन होता ही नहीं तो रामदेव को डर था कि लोग चेक को बैंक से स्टाप पेमेंट ना करा दें।

झूठ दर झूठ बोलते रहे रामदेव
मुझे लगता है कि कम से कम साधु संतो से इतनी अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि वो झूठ नहीं बोलेगें, लेकिन ये तो झूठ का पुलिंदा है। अनशन शुरु करने से पहले ही सरकार से सभी बातें कर चुके थे, लेकिन अपने ही भक्तों को इस बात की जानकारी नहीं दी। लोगों को उकसाने के लिए सत्याग्रहियों से कहते रहे, मुझे दबाने की कोशिश की जा रही है। मेरी हत्या की साजिश की जा रही थी। मेरा एनकाउंटर होने वाला था। डुपट्टे से मेरा गला घोंटने की तैयारी थी। वाह रे रामदेव जी.।





Friday, May 31, 2013

नक्सल : निशाने पर अब नेता !

ज बात नक्सली आंदोलन पर करूंगा। बात की शुरुआत करूं, इसके पहले ये साफ कर देना बेहतर होगा कि व्यक्तिगत तौर पर मैं हिंसा के सख्त खिलाफ हूं, मेरा मानना है कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा नहीं हो सकती। जितनी जिम्मेदारी से मैं ये बात कह रहा हूं, उतनी ही जिम्मेदारी से मैं ये भी कहना चाहता हूं कि इस बिगड़ते हालात के लिए राजनेता और उनकी दो कौड़ी की राजनीति जिम्मेदार है। आप देख रहे हैं कि इस बार नक्सली हमले में कांग्रेस नेता मारे गए हैं तो देश में इतनी हाय तौबा मची हुई है। यही गंभीरता सरकार ने लगभग साल भर पहले उस समय दिखाई होती, जब नक्सली हमले में 76 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे, तो शायद कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को हमले से बचाया जा सकता था। मैं देख रहा हूं कि सरकार नक्सलियों को देश के लिए गंभीर खतरा तो बता रही है, लेकिन इस खतरे से निपटने के लिए कर क्या रही है, इसका कोई जवाब उसके पास नहीं है। खैर अब कुछ ना कुछ सरकार जरूर करेगी, क्योंकि नक्सल आंदोलन तीसरे चरण में पहुंच चुका है, जिसमें राजनेताओं पर ही हमला होना है। 


नक्सल आंदोलन के जनक दार्जलिंग निवासी कानू सान्याल ने कर्सियांग के एमई स्कूल से 1946 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की,. बाद में इंटर की पढाई के लिए उन्होंने जलपाईगुड़ी कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद ही उन्हें दार्जीलिंग के ही कलिंगपोंग कोर्ट में राजस्व क्लर्क की नौकरी मिली, लेकिन कुछ ही दिनों बाद बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कानू सान्याल जेल से बाहर आए तो उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ले ली। 1964 में पार्टी टूटने के बाद उन्होंने माकपा के साथ रहना पसंद किया। बताते हैं कि 1967 में कानू सान्याल ने दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की। सान्याल ने जीवन के लगभग 14 साल जेल में ही गुजार दिए। वैसे सान्याल को देश में माओवादी संघर्ष को दिशा देने का श्रेय जाता है। 81 साल की उम्र में सान्याल की मृत्यु हो गई, कहा गया कि उन्होंने घर में ही फांसी लगा ली। सच तो यही है कि जीवन के आखिर समय में सान्याल को भी यह आभास हो गया था कि समस्याओं का समाधान बातचीत से ही संभव है। आतंकवाद और हिंसा से किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता।


बहरहाल आंदोलन के जनक सान्याल ने भी ये नहीं सोचा होगा कि जिस आंदोलन का बीज वह बो रहे हैं, ये आगे चलकर देश की कानून व्यवस्था के लिए इतना बड़ा खतरा बन जाएगा।
हम सब देख रहे हैं कि हाल के कुछ सालों में नक्सली हिंसा की समस्या काफी गंभीर हो चुकी है। यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी मुश्किल बनती जा रही है। मध्य भारत में नक्सल आंदोलन का काफी अंदर तक विस्ता़र हो चुका है, जिसे हम लाल गलियारे के नाम से जानते हैं। वैसे तो इस आंदोलन की शुरुआत एक विचारधारा के स्तर पर हुई थी। नक्सल हिंसा की घटनाएं पहले भी होती रही हैं, पर उस समय इसका स्वरूप इतना भयानक नहीं था जितना आज है। आए दिन नक्सल प्रभावित राज्यों में कभी सुरक्षा बलों के जवानों तो कभी निर्दोष नागरिकों की हत्या की जा रही है। हैरानी इस बात की है कि इसके बाद भी इस गंभीर समस्या का हल निकालने की ठोस पहल आज तक शुरू ही नहीं की गई। नक्सली अपने हितों को साधने के लिए आदिवासियों के क्षेत्र और उनकी समस्याओं का सहारा ले रहे हैं।  झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र समेत राज्यों में माओवादी कैडरों ने इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि इसे सिर्फ सुरक्षा बलों के सहारे तो बिल्कुल खत्म नहीं किया जा सकता।


खैर नक्सल आंदोलन के बारे में आप वैसे भी बहुत कुछ जानते होंगे। इसके बारे में आए दिन पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही ब्लाग पर भी तमाम लेख प्रकाशित होते रहते हैं। मैं आपको कुछ पुरानी बातें याद दिलाना चाहता हूं। आंदोलन की शुरुआत में एक टारगेट फिक्स करने के साथ ही आंदोलन की रुपरेखा तैयार की गई थी। जिसमें तय किया गया था कि पहले चरण में सेठ, साहूकारों को लूटने और लूटा माल आदिवासियों में बांटा जाएगा। हमने देखा भी एक समय था जब नक्सलियों ने सेठ, साहूकारों का जीना मुहाल कर दिया, आए दिन लूट की घटनाएं सामने आती रहीं। दूसरे चरण में रेलवे, सुरक्षाबलों और जेलों पर हमला करना था। इसका मकसद था कि ऐसा करने से देश भर में उनकी मौजूदगी साबित हो जाएगी। नक्सलियों ने हालत ये कर दी कि बिहार में जेलों पर हमला किया, बंगाल में कई बार विस्फोट कर रेल की पटरी उड़ा दी, राजधानी जैसी ट्रेन को घंटो अपने कब्जे में रखा। वैसे तो सुरक्षा बलों पर हमला कर वो इनकी हत्या करते ही रहे हैं, लेकिन साल भर पहले छत्तीसगढ में एक भारी हमले में 76 सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। नक्सलियों ने आंदोलन के अपने दो चरणों से ही देश को हिला दिया था। लेकिन उनका तीसरी और अंतिण चरण यानि चौथा काफी खतरनाक और गंभीर भी है।


आंदोलन के तीसरे चरण में नक्सलियों के निशाने पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता हैं। कहा तो ये जा रहा है कि छत्तीसगढ में सुकुना में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर उन्होंने अपने तीसरे चरण की शुरूआत कर दी है। गृहमंत्रालय ने भी माना है कि नक्सलियों के निशाने पर देश के कई बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। इसमें नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन ग्रीन हंट की शुरूआत करने वाले पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम का नाम भी शामिल है। इसके अलावा कई और नेताओं के नाम इस हिट लिस्ट में शामिल बताए जा रहे है। सुकुना में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले के पहले नक्सलियों ने कभी राजनीतिक दलों के नेताओं, उनकी सभाओं या अन्य किसी भी कार्यक्रमों में बाधा नहीं डालते थे। पहली बार कांग्रेस की परिवर्तना यात्रा पर इतना बड़ा हमला कर कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा गया। बहरहाल अगर ये मान लिया जाए कि इस हमले से उन्होंने अपने आंदोलन की तीसरे चरण की शुरुआत की है तो सरकार को और सतर्क होने की जरूरत है। सतर्क इसलिए भी नक्सलियों का चौथा यानि अंतिम चरण काफी खतरनाक है। इसमें दिल्ली मार्च पास्ट और राष्ट्रपति भवन पर लाल झंडा फहरा कर देश पर कब्जा करना है। हालांकि अभी हम ये कह सकते हैं कि अभी दिल्ली बहुत दूर है, लेकिन सच कहूं तो उनकी ताकत जिस तरह से बढ़ती जा रही है, उससे लगता है कि वो अपनी मंजिल के काफी करीब आ गए हैं।


नक्सल आंदोलन को लेकर केंद्र की सरकार वोटों की राजनीति कर रही है। उसे लग रहा है कि अगर नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन चलाया गया तो चुनाव में इसका नतीजा भुगतना होगा। नक्सलियों से बातचीत भी शुरू हो नहीं पा रही है। सरकार का कहना है कि पहले हथियार डालो, फिर बात करेंगे। इसके लिए नक्सली तैयार नहीं है। वो कहते हैं पहले बातचीत करो, समस्याओं का समाधान करो, फिर हथियार डालेंगे। खैर इस मामले में मैं सरकार के साथ हूं, हिंसा के बीच बातचीत शुरू करने का कोई मतलब ही नहीं है। ऐसे में मुझे तो लगता नहीं कि आने वाले समय में भी अब ये मामला बात चीत से हल होने वाला है। मेरा तो मानना है कि ये आंदोलन अब नक्सलियों के कब्जे में भी नहीं रह गया है। नक्सल आंदोलन के नाम पर इन्हें गुमराह किया जा रहा है। इस आंदोलन के लिए इन्हें बाहर से ना सिर्फ आर्थिक मदद मिल रही है, बल्कि अत्याधुनिक हथियार और गोले बारूद की भी सप्लाई की जा रही है। मुझे लगता है कि इनके खिलाफ सख्त आपरेशन चलाने में सरकार की ये मुश्किल हो सकती है कि इसमें तमाम बेगुनाह भी मारे जा सकते हैं। लेकिन सबको पता है कि जो आर्थिक मदद और हथियार इन्हें नेपाल के रास्ते मिलते हैं। इस पर आखिर रोक लगाने के लिए अब तक सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? वैसे भी नक्सली अब जिस हद तक बढ़ चुके हैं, उसमें बातचीत का रास्ता लगभग बंद है और सरकार को सख्ती से ही निपटना होगा। इसमें अगर कुछ बेगुनाह मारे जाते हैं तो इसकी चिंता भी छोड़नी होगी। क्योंकि उनकी तरफ से हो रहे हमले में भी तो बेगुनाह ही मारे जा रहे हैं।




Sunday, May 26, 2013

अजित जोगी : मुख्यमंत्री बनने की ऐसी जल्दबाजी !

देश के अलग-अलग हिस्सों में नक्सली हमला होता रहा है, इसमें सुरक्षा बलों के साथ ही बड़ी संख्या में आम आदमी भी अपनी जान गवां चुके हैं। देखा जा रहा था कि नक्सलियों ने आज तक कभी भी किसी राजनीतिक को अपना निशाना नहीं बनाया था। इसलिए जब रात में खबर आई कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने कांग्रेस की "परिवर्तन यात्रा" को निशाना बनाकर हमला किया और इसमें कुछ बड़े नेताओं के साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। ये खबर सभी के लिए चौंकाने वाली थी। इस खबर की जानकारी जैसे ही मुख्यमंत्री रमन सिंह को हुई, उन्होंने अपनी विकास यात्रा रद्द की और मुख्यालय रायपुर वापस आ गए। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री से बात की, उन्हें भरोसा दिलाया कि केंद्र से हर संभव मदद की जाएगी। सोनिया गांधी ने इस हमले को लोकतंत्र पर हमला बताया, बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने हमले की निंदा की और कहाकि इस पर दलगत राजनीति ऊपर उठकर ठोस पहल करने की जरूरत है। कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी रात डेढ़ बजे ही रायपुर पहुंच कर घायलों से मुलाकात की और उनकी परेशानी को बांटने की कोशिश की। इन सबके बीच कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी को यहां भी सियासत सूझ रही थी और वो हमले की खबर मिलते ही सबसे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा। इतना ही नहीं देर रात में ही वो कुछ लोगों के साथ राजभवन पहुंच गए और राज्यपाल से कहा कि दो मिनट में इस सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश केंद्र को भेजें।

वैसे तो नक्सलियों का ये हमला कल शाम लगभग साढ़े चार बजे के करीब हुआ, लेकिन न्यूज चैनलों पर ये खबर करीब साढ़े आठ बजे आई। इस दौरान लगभग सभी न्यूज चैनल बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन पर राशन पानी लेकर चढ़े हुए थे। खबरिया चैनलों का एजेंडा था कि श्रीनिवासन का इस्तीफा लेकर रहेंगे, जबकि श्रीनिवासन को बीसीसीआई में अपने चंपू सदस्यों पर पूरा भरोसा है कि वो किसी भी सूरत में उनका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं, तो भला वो इस्तीफा क्यों दें ? खैर नक्सली हमले के बाद अगर किसी ने सबसे ज्यादा राहत की सांस ली होगी तो वो हैं, एन श्रीनिवासन ! वजह और कुछ नहीं, बस कई दिन से खबरिया चैनल टीवी स्क्रिन पर उनकी तस्वीर लगाकर रोजाना नए-नए आरोप जड़ते जा रहे थे। लेकिन इस हमले के बाद सभी टीवी स्क्रिन से उनकी तस्वीर एक झटके में उतर गई। जाहिर है उन्होंने रात में अच्छी नींद ली होगी, क्योंकि उन्हें पता है कि अब उनकी तस्वीर एक बार उतर गई है तो दोबारा चढ़ने में टाइम लगेगा। 

खैर मुद्दे पर वापस आते हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले की जितनी निंदा की जाए वो कम है। अच्छा इसे किसी एक राज्य का विषय बताना हकीकत से मुंह छिपाना है। सच्चाई ये है कि आज उग्रवादियों से कहीं ज्यादा खतरनाक हो गए हैं ये नक्सली। सही तो ये है कि अगर इन्हें आतंकवादी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में इस नक्सली हमले के बाद मेरे एक पत्रकार मित्र का फोन आया, उनके तमाम मित्र उसी राज्य के निवासी हैं। बताने लगे कि यहां लगभग 30 से 40 लोगों की मौत हुई है, ये बहुत बड़ी घटना है। मैं भी अपने संपर्कों को कुरेदने लगा। इस दौरान चैनलों की खबरें भी देखता रहा। सबसे ज्यादा हैरानी मुझे पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की करतूतों को देखकर हुई। मैं देख रहा हूं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो लगातार मुख्यमंत्री रमन सिंह से बात कर उन्हें पूरी मदद का भरोसा दिला रहे हैं। मुख्यमंत्री केबिनेट की बैठक कर पुलिस अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं कि घायलों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए। जो नेता नक्सलियों के कब्जे में हैं, उन्हें हर हाल में छुड़ाने की कोशिश की जाए। सोनिया गांधी समेत तमाम कांग्रेस के नेता संयम से बोल रहे थे, उन्हें पता है कि ये समय राजनीति करने का नहीं है। लेकिन इन सबके उलट अजित जोगी रात में सियासत की गोटी फिट करने में जुट गए।

चैनलों पर जोगी की जो हालत रात में देगी गई, उससे लगा कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कितने बेचैन और भूखे हैं। उन्हें ये फिक्र बिल्कुल नहीं थी कि इस नक्सली हमले में उनकी पार्टी के घायल साथियों की तबियत कैसी है, उनका इलाज कैसा चल रहा है। जंगल में फंसे लोगों को कैसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया जाए ? उन्होंने तो मीडिया को देखते ही सबसे पहले मुख्यमंत्री रमन सिंह का इस्तीफा मांग लिया। कहाकि अब रमन सिंह सूबे का मुख्यमंत्री बने रहने का कोई हक नहीं है। इल्जाम लगाया कि उन्होंने अपनी विकास यात्रा में पूरी सुरक्षा झोंक दी, जबकि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में कोई सुरक्षा नहीं दी गई। जोगी कि इस बात में दम हो सकता है कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था ना रही हो, लेकिन मैं जोगी कि जल्दबाजी से आहत था। उन्होंने रात में ही तीन बातें कहीं ।

1. रमन सिंह तत्काल इस्तीफा दें, ना दें तो बर्खास्त किया जाए। 
2. परिवर्तन यात्रा जारी रहेगी, हम डरने वाले नहीं है। 
3. रविवार को छत्तीसगढ़ बंद रहेगा। 

भाई जोगी जी आपसे सवाल है, आप रमन सरकार को बर्खास्त करने की मांग को लेकर रात में ही राजभवन पहुंच गए। कैमरे पर भावुक होने का "ड्रामा" भी करते रहे। लेकिन आप पार्टी की यात्रा को लेकर इतने ही गंभीर थे, तो आज आपको सुबह ही वहां पहुंच कर यात्रा की कमान संभाल लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा आपने नहीं किया। क्या सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें भर करते हैं या उस पर अमल करने का प्रयास भी। वैसे मैं भी देखना चाहता था कि आज आप परिवर्तन यात्रा लेकर आगे बढ़ते हैं तो आपके साथ आपकी पार्टी खड़ी होती भी है या नहीं। लेकिन आप खुद ही गायब  हो गए। छत्तीसगढ़ को बंद करने आह्वान किया है, उसके लिए भी आप ने बस चैनलों पर बोलकर चुप हो गए। अच्छा कल रात तक तो आप बहुत बक-बक कर रहे थे, लेकिन रविवार को आपकी चुप्पी सूबे की जनता को समझ में नहीं आ रही है। वैसे जोगी जी आप काफी समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, कहा तो यहां तक जा रहा है, नक्सलियों के आप से भी बहुत अच्छे संबंध हैं। फिर आप तो हमले के घंटे भर पहले इस काफिले में खुद भी मौजूद थे, अचानक आप वहां से वापस आ गए। बहरहाल जोगी की जल्दबाजी देखकर जरूरी तो ये भी है उनकी भूमिका की भी अच्छी तरह से जांच होनी चाहिए। 

वैसे हमले की वजह जो पहली नजर में सामने आ रही है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता महेन्द्र कर्मा जो छत्तीसगढ में नेता विपक्ष भी थे। उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की, इसके बाद भी वो नक्सलियों के निशाने पर थे। माना जा रहा है कि ये हमला भी महेन्द्र कर्मा की ही हत्या के लिए था, लेकिन हमले में और लोग भी मारे गए। नक्सलियों ने जिस तरह से उनके शरीर पर पूरी मैग्जीन खाली कर दी  है, इससे उनके गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल जोगी की जल्दबादी ने राजनीतिक बेशर्मी को उजागर कर दिया।  







  

Thursday, May 23, 2013

... तो समझ लें दाल में कुछ काला है !

आईपीएल पर बहुत बात हो रही है। कहा जा रहा है कि देखने में तो ऐसा लग रहा है कि ये  खेल मैदान में हो रहा है और मैंच का फैसला मैदान में अंपायर करता है। लेकिन दिल्ली और मुंबई पुलिस के अब तक जो सबूत हाथ लगे हैं, उससे इतना तय हो गया है कि मैदान पर जो खेल हो रहा था, वो दर्शकों की आंख में धूल झोंकने वाला था, दरअसल खेले जा रहे मैंच का ब्लूप्रिंट पहले ही किसी पांच सितारा होटल में तय चुका होता था। अंपायर की उंगली महज एक खानापूरी भर थी, क्योंकि असली अंपायर तो सात समुंदर पार बैठकर आईपीएल के कर्ताधर्ताओं, बीसीसीआई, टीमों की फ्रैंचाइजी और खिलाड़ियों को अपनी उंगली पर नचा रहा था। वैसे तो अभी पुलिस के हत्थे छोटे मोटे खिलाड़ी ही लगे हैं। लेकिन जिस तरह से एक एक कर तार जुड़ रहे हैं, उससे तो लगता है कि आईपीएल के पीछे एक बहुत संगठित गिरोह काम कर रहा है। बिंदुदारा सिंह के साथ भारतीय टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी ने एक साथ बैठ कर मैच क्या देख लिया, लोग उसकी भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं। चूंकि उंगली उठी है तो साक्षी को खुद पुलिस के सामने आकर अपनी जांच करने को कहना चाहिए, जिससे धोनी पर उंगली ना उठे। 

हालांकि देश की पुलिस छवि बहुत ज्यादा खराब है, इसलिए हम आसानी से उनकी बातों पर भरोसा नहीं होता है। अब एक ओर ये भी कहा जा रहा है कि आईपीएल के इस पूरे गोरखधंधे में पुलिस भी कहीं ना कहीं हिस्सेदार रही है। ऐसा नहीं हो सकता कि इतने बड़े पैमाने पर सट्टेबाजी हो और पुलिस को इसकी भनक ना लगे। चर्चा हो रही है कि इधर दिल्ली पुलिस पर तमाम उंगली उठ रही थी, दिल्ली में बलात्कार की घटना के बाद तो लोगों का गुस्सा उबाल पर था। यहां आम आदमी से लेकर नेता तक पुलिस कमिश्नर का इस्तीफा मांग रहे थे। कहा जा रहा है कि पुलिस ने जनता का ध्यान हटाने के लिए इसी वक्त इस मामले का खुलासा कर दिया। दिल्ली ने अपने इलाके के बजाए मुंबई जाकर वहां से खिलाड़ियों को गिरफ्तार किया। अब हालत ये है कि रोजाना नए नए खुलासे हो रहे हैं।

सट्टेबाजी में अब तक आईपीएल के खिलाड़ी, फ्रैंचाइजी, अभिनेता, अभिनेत्री, पूर्व क्रिकेटर, अंपायर, कमेंट्रेटर  के साथ ही अब बीसीसीआई चेयरमैन के करीबी रिश्तेदारों तक पुलिस के हाथ पहुंच गए हैं। सट्टेबाजी के मामले में किसी तरह की कार्रवाई करने से जिस तरह से बीसीसीआई खुद को अलग कर रही है, उससे उसकी भूमिका पर उंगली उठना स्वाभाविक है। हम सब जानते हैं कि " बाँडी लंग्वेज " से बहुत कुछ जवाब मिल जाता है। अब आज की बात ले लीजिए, आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला से  बीसीसीआई चेयरमैन श्रीनिवासन के दामाद मयप्पन से होने वाली पूछताछ के मामले में पत्रकार मित्र सवाल तो हिंदी में कर  रहे थे, लेकिन शुक्ला जी जवाब अंग्रेजी में दे रहे हैं। " बाँडी लंग्वेज " पढ़ने वाले बताते हैं कि हिंदी भाषी इलाके का कोई व्यक्ति तो अंग्रेजी से ज्यादा बेहतर हिंदी बोलता है, अगर वो जब हिंदी के सवाल का अंग्रेजी में जवाब दे तो समझा जाना चाहिए कि दाल मे कुछ काला जरूर है। पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी कहते रहे हैं कि राजीव शुक्ला कुछ नहीं बस  श्रीनिवासन के तोता हैं, ये मामला अब दिखने भी लगा है। आगे आगे देखिए क्या होता है।  



Saturday, May 11, 2013

बस ! अब बक- बक ना करो मां ...

काफी दिनों से मां की तबियत ठीक नहीं है, वो पास के मेडिकल स्टोर से दवा मंगा-मंगा कर किसी तरह अपने को ठीक दिखाई देने की कोशिश करती रही। चूंकि बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर है, उसकी जिम्मेदारी इतनी ज्यादा है कि घर के लिए उसके पास वक्त ही नहीं है। बेटे की व्यस्तता को मां देखती है कि उसके पास ना खाने की फुर्सत और ना ही आराम का कोई वक्त। ऐसे में मां को लगा कि जब दवा से तबियत ठीक है तो काहे को वो बेटे को अपनी तबियत खराब बताकर उसे मुश्किल में डाले। लेकिन अब उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी। मां को भी लग रहा था कि ऐसे काफी दिन नहीं चल सकता, किसी अच्छे डाक्टर को दिखाकर ही दवा लेना होगा। रोज-रोज ऐसे ही दवा मंगाकर खाना ठीक भी तो नहीं है। मां ने सोचा कि 12 मई को रविवार है, बेटे के आफिस की छुट्टी होगी, वो घर पर ही रहेगा। उसी दिन उसे बताऊंगी और उसके साथ ही डा. मल्होत्रा के पास चली जाऊंगी। वैसे भी 12 को "मदर्स डे" है तो बेटे को मां की सेवा करके अच्छा लगेगा। मदर्स डे के दिन आखिर बेटे को मां की सेवा करने का अवसर मिल जाए तो भला इससे बड़ी क्या बात हो सकती है।


आज मां की नींद सुबह ही खुल गई, वो स्नान, ध्यान और पूजा पाठ करके बेटे के सोकर उठने का इंतजार करने लगी। सुबह 10 बजने तक मां तीन बार उसके कमरे में झांक आई कि वो उठा या नहीं। चूंकि बेटा गहरी नींद में था, लिहाजा मां ने उसे उठाया नहीं। 11 बजे वो सोकर उठा और बाथरूम चला गया, वहां से आने के बाद चाय पी और उसके बाद वो अपने कमरे में लैपटाप लेकर बैठ गया। मां को अटपटा लगा कि आज तो बेटे ने "मदर्स डे" भी विश नहीं किया, भला इतना जरूरी क्या काम कर रहा है। मां की आंख में आंसू आ गए, उसे लगा कि क्या अब बेटा इतना बिजी हो गया है कि उसके पास मेरे लिए इतना वक्त भी नहीं है।


खैर वो बेटे के कमरे गई और बोली बेटा दो मिनट बात करनी है। बेटे ने मां की ओर देखे बगैर कहा, हां बोलो मां ! बेटा मैं देखती हूं कि तुम इतने बिजी रहते हो कि अपनी तबियत तक तुझसे नहीं बता पाई। मेरी तबियत ठीक नहीं है, हो सके तो आज मुझे डाक्टर के पास ले चल। मां का इतना कहना था कि बेटा एक दम से बिफर गया, बोला मां तू मुझे एक दिन भी घर पर नहीं देख सकती। तुम्हें पता है ना कि आज "मदर्स डे" है, अब तक फेसबुक पर सभी फ्रैंड्स के स्टेट्स अपडेट हो चुके होंगे, मैं वैसे ही कितना लेट हो चुका हूं। क्या सोचेंगे लोग मेरे बारे में कि मैं मां को बिल्कुल प्यार ही नहीं करता हूं, तुम जाओ आराम करो, आज मेरे पास बिल्कुल टाइम नहीं है। अभी मैं अपना स्टेटस अपडेट करूंगा, फिर दूसरों के फेसबुक वाल पर मुझे कमेंट भी करना है। दोस्तों के फेसबुक वाल पर जाकर उनकी मां को विश नहीं किया तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे ?
ठीक है ना, कल आफिस जाकर मैं ड्राईवर को वापस भेज दूंगा वो तुम्हें डाक्टर के पास ले जाएगा। बस ! अब बक- बक मत करो ! 



( ये कहानी हिंदी में जरूर है, पर हिंदुस्तान की नहीं है, मुझे नहीं लगता है कि हिंदुस्तान के किसी कोने में ऐसा बेटा होगा !) 







  

Monday, April 29, 2013

नहीं नहीं ! बड़ी बेटी को कैसे मार दूं ?

एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के
पास के गई और बोली,
" डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ आपकी मदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ,
आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है
कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से
एक बेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे
दो बेटियाँ नहीं चाहती ।"

डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?"
तो वो स्त्री बोली," मैँ यह चाहती हू कि इस
गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।"

डाक्टर अनुभवी और समझदार था।
थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल को हल कर देगा।"

वो स्त्री बहुत खुश हुई..
डाक्टर आगे बोला, " हम एक काम करते है
आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ?
तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस अजन्मी बच्ची को जन्म दे सके और
आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले वाली को ही मार देते है ना.?"

तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!!
हत्या करना गुनाह है पाप है और वैसे भी मैं अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है

डाक्टर तुरंत बोला, "पहले
कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही उसकी हत्या करो दोनो गुनाह
है पाप हैं ।"

यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । वह स्वयं की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए घर चली गई।  



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Saturday, April 27, 2013

गांव गया था, गांव से भागा !

अच्छा एक बात बताइये, आप वाकई कुछ अच्छा पढ़ने के मूड मे हैं। अगर हैं तो तीन मिनट का समय देना होगा आपको। आपको आज अपने दोस्तों की गैरजरूरी रचना पर वाह वाह करके उन्हें ओबलाइज करने के बजाए इस रचना की खुलकर सराहना करनी होगी। माफ कीजिएगा, ये मेरी रचना नहीं है, मैं तो सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन आपके सामने परोसने की कोशिश कर रहा हूं। आइये स्व. कैलाश गौतम को पूरे मन से पढिए, फिर पूरे दिन आप उनकी इसी रचना को गुनगुनाते रहेंगे। 

गाँव गया था,
गाँव से भागा ।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
सरकारी स्कीम देखकर
बालू में से क्रीम देखकर
देह बनाती टीम देखकर
हवा में उड़ता भीम देखकर
सौ-सौ नीम हक़ीम देखकर
गिरवी राम-रहीम देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए धनी का रंग देखकर
रंग हुआ बदरंग देखकर
बातचीत का ढंग देखकर
कुएँ-कुएँ में भंग देखकर
झूठी शान उमंग देखकर
पुलिस चोर के संग देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
बिना टिकट बारात देखकर
टाट देखकर भात देखकर
वही ढाक के पात देखकर
पोखर में नवजात देखकर
पड़ी पेट पर लात देखकर
मैं अपनी औकात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए नए हथियार देखकर
लहू-लहू त्योहार देखकर
झूठ की जै-जैकार देखकर
सच पर पड़ती मार देखकर
भगतिन का शृंगार देखकर
गिरी व्यास की लार देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
मुठ्ठी में कानून देखकर
किचकिच दोनों जून देखकर
सिर पर चढ़ा ज़ुनून देखकर
गंजे को नाख़ून देखकर
उज़बक अफ़लातून देखकर
पंडित का सैलून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

स्व. कैलाश गौतम

Thursday, April 4, 2013

राहुल ये क्या, मां बहुत रोएगी !

मुझे लगता है कि अभी राहुल गांधी को CII जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से बचना चाहिए। अब देखिए उनके पहले ही सार्वजनिक आयोजन को लोगों ने खारिज कर दिया। फेसबुक पर तो आज राहुल के बारे में पढ़कर लोग मनोरंजन कर रहे हैं, कह रहे हैं आज का दिन तो राहुल ने निकाल दिया, शाम को आईपीएल में मुंबई इंडियन का मैच देखकर बिता लिया जाएगा। सबसे अच्छी प्रतिक्रिया मैडम अजित गुप्ता जी की .. " पर्चा अर्थशास्त्र का उत्तर समाज शास्त्र का " वैसे मैं भी ये जानना चाहता हूं कि किसकी राय थी कि राहुल को सीआईआई के आयोजन मे जाना चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि ये राय देने वाला कम से कम राहुल और कांग्रेस का भला नहीं चाहता।

एक उद्यमी की प्रतिक्रिया थी कि " राहुल के आने के बाद दरवाजे बंद हुए तो मुझे लगा कि ये सुरक्षा कारणों से है, पर बाद में असली वजह समझ में आई, वो ये कि कहीं उद्यमी राहुल का भाषण बीच में छोड़ कर निकल ना जाएं " खैर भगवान बचाए ! बहरहाल राहुल गांधी ने जिस तरह नाक कटाई है, उसके बाद तो सच में किसी भी मां की नींद उड़ जाएगी। अब बड़ा सवाल ये है कि...

आज रात मां कमरे में आएगी या नहीं ?
आई तो रोती ही रहेगी या कुछ बोलेगी भी ?
क्या अभी मां को बेटे से कोई उम्मीद है ?
ऐसा तो नहीं कि मां दिन में ही रो रही हो ?
आखिरी दो सवाल !
CII क्या फिर राहुल को बुलाएगी कभी ?
क्या कांग्रेस को अभी भी उम्मीद है राहुल से ?

आपके जवाब का इंतजार .....

Tuesday, March 26, 2013

होली पर जोगीरा सररर सरर.. गाया तो खैर नहीं !

ज की सबसे बड़ी खबर यही है कि गृह मंत्रालय के अलर्ट के बाद देश के पांच बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई,  कोलकता, चेन्नई और बंगलोर में होली से ठीक 24 घंटे पहले यानि मंगलवार (26 मार्च) की रात से जोगीरा... सररर...सररर, जोगीरा... सररर...सररर....सररर...सररर गाने पर रोक लगा दी गई है। इस रोक की कोई वजह नहीं बताई गई है, लेकिन माना जा रहा है कि कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ये सख्त कदम उठाया गया है। वैसे तो पुलिस की रोक के बाद इस गाने की सीडी मार्केट से गायब हो जानी चाहिए थी, लेकिन देखा जा रहा है कि सीडी की ना सिर्फ बिक्री बढ़ी है, बल्कि इस सीडी की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। मैं तो बचपन से देखता आ रहा हूं कि जब होली के हुड़दंगियों की टोली निकलती है तो उनके बीच में यही गाना जोगीरा... सररर...सररर, जोगीरा... सररर...सररर....सररर...सररर  सबसे ज्यादा तेज आवाज मे सुनाई देता है, जबकि सच्चाई ये है कि मुझे आज तक इस गाने की पंक्ति का अर्थ समझ में नहीं आया, लेकिन गाया तो मैने भी है। चलिए अगर आपको पता चले कि आखिर ये क्या बला है, जोगीरा... सररर...सररर तो प्लीज मुझे जरूर बताइयेगा।

इस मामले में मैने जब पुलिस से जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है, हम इस पर कुछ भी नहीं कह सकते। इस मामले में कोई भी जानकारी गृह मंत्रालय से ही लेनी होगी। चूंकि जोगीरा... सररर...सररर....सररर... महज एक गाना नहीं है , ये लोगों के दिलों में बसा हुआ है और लोग इसे बहुत मन से गुनगुनाते हैं। ये सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी जहां भारतीय बसे हैं, वो इसे बहुत ही मन से सुनते हैं। ऐसे में इस पर रोक लगा देना और इसकी कोई वजह ना बताना वाकई हिंदुस्तानियों के मूल अधिकारों का हनन है। इस बात को ध्यान में रखते हुए हम पहुंच गए गृह मंत्रालय। मैने देखा कि गृह मंत्रालय के बाहर बड़ी संख्या में लोग सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। उनकी मांग है कि अगर उन्हें जोगीरा... सररर...सररर....सररर... गाने से रोका गया तो वो घर में बने पकवान को राजपथ पर लाकर इसकी होली जलाएंगे। इस चेतावनी से मंत्रालय में हड़कंप मचा हुआ है।

बहरहाल देश में भारी नाराजगी को देखते हुए गृहमंत्रालय ने तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, मणिपुर राज्यों से इस प्रतिबंध को हटा लिया है। अब इन प्रदेशों में लोग पहले की तरह ही इस गाने को गा सकेंगे। सरकार ने साफ कर दिया है कि उत्तर भारत खासतौर पर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और मुंबई में तो इसे गाने की इजाजत  किसी कीमत पर नहीं दी जा सकती। पता चला है कि पिछले  साल कुछ लोगों ने 10 जनपथ के बाहर
ये गाना गा दिया था, इसके बाद से ही ये गाना और गायक दोनों सरकार की निगाह मे आ गए। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि दस जनपथ के बाहर गाए गए इस गाने से सोनिया जी काफी ज्यादा नाराज थीं। बाद में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में कुछ महत्वपूर्ण फैसला लिया गया और उसकी जानकारी मैडम को दी गई। कहा गया कि अब होली के एक दिन पहले इस गाने पर ही रोक लगा दिया जाएगा। बहरहाल मैडम का गुस्सा देख दस जनपथ के बाहर स्कूली बच्चों से आधे घंटे तक..

ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार
हाऊ आर वंडर व्हाट यू आर ।

गाया गया। तब कहीं जाकर सोनिया जी सामान्य हुईं। हालाकि इसकी राजनीतिक हल्कों में काफी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। गाने पर रोक लगाने का आदेश देकर अपने प्रधानमंत्री तो डरबन चले गए। कहा तो ये जा रहा है कि उन्हें भी डर था कि कहीं इस बार उनके घर के बाह लोग ये गाना ना गाने लगें। इसीलिए वो होली के पहले निकल गए। वैसे पता चला है कि उनके साथ गए एक अफसर के बैग में इस गाने की सीडी बरामद हुई है। सीडी प्रकरण को प्रधानमंत्री ने बहुत गंभीरता से लिया है। उन्होंने सुरक्षा अधिकारियों से कहा कि अगर वो हमारे हवाई जहाज की सुरक्षा में इतनी लापरवाही कर रहे हैं तो देश की सुरक्षा में कितनी करते होंगे? बहरहाल इस अधिकारी को प्रधानमंत्री के साथ गई टीम से निकाल दिया गया है और उसे स्वदेश वापस भेजा जा रहा है, जबकि सीडी को नष्ट कर दिया गया है।

इस बीच राजेडी सुप्रीमों लालू यादव, समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं, उनकी मांग है कि जब तक जोगीरा... सररर...सररर....सररर... गाने पर लगी  रोक नहीं हटती है वो अपने प्रदेश वापस नहीं जाएंगे। लालू ने सरकार पर आरोप लगाया है कि एक साजिश तहत उत्तर भारत के इस लोकप्रिय गाने को दूसरे प्रदेशों को सौंपा जा रहा है। बहरहाल ये मामला आसानी से सुलझता नजर नहीं आ रहा है। इस बीच रेलमंत्री ने साफ किया है कि अगर लोगो को ये गाना इतना ही प्रिय है तो वो कुछ स्पेशल ट्रेन दक्षिण भारत के लिए चला देते हैं, लोग वहां जाकर इस गाने के साथ होली मनाएं। अभी ये मामला सुलझा भी नहीं था कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के एक और नोटिफिकेशन से बवाल खड़ा हो गया है। बताया गया है कि कुछ नामचीन ब्लागों को लेकर मंत्रालय ने आपत्तिजनक  टिप्पणी की है। ब्लागर्स इससे काफी खफा हैं। इसकी एक कापी मेरे हाथ लग गई है, देखिए आप भी। 

उच्चारण क्या दिक्कत है ठीक कर सकते हैं ।

मेरी भावनाएं हो सके तो डायरी में लिखें।

जख्म जो फूलों ने दिए ठीक हुआ या नहीं।

दुनिया रंग रगीली  ओह ! तो  ?

चला बिहारी ब्लागर बनने पहुंचा या नही ?

यादें अब तो भूल जाइये।

उडन तस्वरी जमीन पर कब आएगी ?

कासे कहूं है भगवान खत्म नहीं हुई तलाश ?

पहली बार तो ठीक है, पर कितनी बार !

बुरांस के फूल से भला क्या, गले लगाएं।

अहसास बेमानी है।

न दैन्यं न पलायनम् बोले तो बेमानी है !

कुछ दिल से और बाकी ?

गाफिल की अमानत बोले तो अमानती सामान गृह।

अपनों का साथ यानि यादों की बारात ।

झरोखा कहां रहा, अब तक खिड़की बन गई।

कौशल दिखेगा कब ?

मैं और मेरी कविताएं और दूसरे ब्लाग पर दूसरों की।

ठाले बैठे हैं तो कुछ काम करो भाई...

जाले साफ करना जरूरी है।

हथकड़ से बचकर।

एक ब्लाग सबका सच में !

भारतीय नारी जरा  बच के !

पढ़ते-पढ़ते भी कहां पहुंचे ?

अपनी उनकी सबकी बातें यानि ग्राम पंचायत

सरोकार नहीं- नहीं सरकार !

परवाज.. शब्दों के पंख संभालना भी जरूरी

उल्टा तीर चूक गए निशाना !

मन के मन के मन चंगा तो कठौती में गंगा !

बातें कुछ दिल की कुछ जग की बेमानी है !

सुनहरी कलम से कभी ब्लाग ना लिखें

स्वप्न मेरे हकीकत क्यों नहीं हो जाते !

ताऊजी डॉट कॉम से परेशान ताईजी डॉट इन !

मग्गा बाबा का चिट्ठाश्रम से मग्गा गायब !

ताऊ डाट इन नजरबंद ।

ब्लॉग जगत के लोकप्रिय ब्लोगर्स कहां गए वो लोग !

Paradise बोले तो अब कच्चा लोहा !

मेरे गीत ! तेरे बिन सूने

My Expression बेमानी  है !

HINDI KAVITAYEN, AAPKE VICHAAR कंधे पर हल लिए किसान !

बूँद..बूँद...लम्हे.... जाया होने से बचाएं ।

अभिव्यंजना बूझो तो जानें !


बहरहाल पहली बार देख रहा हूं कि होली के ठीक पहले देश में इतना तनाव है। खासतौर पर ब्लागर्स तो सरकार के फैसले और उसकी टिप्पणी को लेकर बहुत खफा है। पता चला है कि ब्लागर्स की नाराजगी की जानकारी गृह मंत्रालय और सूचना प्रसारण मंत्रालय हो गई है। इसके बाद मंत्रालय ने  अपने नए नोटिफिकेशन में कहा है कि कोई भी "बुरा ना माने होली है" । लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप इस नोटिफिकेशन को पढ़कर उछल जाएं और गाने लगें जोगीरा सररर सररर सरर..... ।



नोट : हां हमारे दूसरे ब्लाग यानि आधा सच पर भी आपको जाना होगा। यहां  चर्चा मंच, वटवृक्ष, ब्लाग4वार्ता पर चली कैंची पढ़ना बिल्कुल ना भूंले। चलिए जी कोई बात नहीं मैं आपको उसका लिंक भी दे देता हूं।  http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/03/4.html