Tuesday, June 12, 2012

प्रणव दा के राष्ट्रपति बनने की कीमत ....

रीब करीब अब तय हो गया है कि केंद्र सरकार में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ही यूपीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे। छोटी मोटी बातों की अनदेखी कर दी जाए तो श्री मुखर्जी की छवि आमतौर पर साफ सुथरी ही है। अगर मुखर्जी उम्मीदवार होते हैं, तो मुझे लगता नहीं रायसीना हिल यानि राष्ट्रपति भवन पहुंचने में उन्हें किसी तरह की दिक्कत होगी। यूपीए के साथ ही मुझे नहीं लगता कि एनडीए को भी श्री मुखर्जी से कोई दिक्कत है। जानकार तो कह रहे हैं कि दादा के राष्ट्रपति बनाने की जो भी कीमत चुकानी होगी, वो चुकाने के लिए सरकार तैयार है, बस जनता में ऐसा मैसेज ना जाए, इसी पर बातचीत चल रही है। 
चुनाव की अधिसूचना भले ही आज जारी हुई हो पर इस चुनाव की बिसात कई दिन से बिछाई जा रही हैं। चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद अब राजनीतिक दलों ने अपने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। रंग क्या, चलिए साफ साफ बताते हैं चुनाव में यूपीए उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए स्पेशल पैकेज के नाम पर पैसे की मांग हो रही है। जब राष्ट्रपति जैसे अहम चुनाव के लिए भी राजनीतिक दल सौदेबाजी कर रहे हैं तो दूसरे काम के लिए भला क्यों नहीं करते होंगे?
सच्चाई क्या है ये तो यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री जानें। पर जनता में जो संदेश जा रहा है उससे तो साफ है कि ममता और मुलायम ने सरकार को बंधक बना रखा है। वैसे तो बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही ममता लगातार स्पेशल पैकेज की मांग कर रही हैं। उनकी ये मांग इसलिए भी पूरी नहीं हो पा रही है कि उनसे काफी पहले से बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार स्पेशल पैकेज की मांग कर रहे हैं, पर ये पैकेज उन्हें नहीं दिया गया। ऐसे में अगर ममता की बात मानी जाती है तो देश में गलत संदेश जाता। फिर ममता ने नया राग अलापना शुरू कर दिया, वो कह रही हैं कि उन्हें स्पेशल पैकेज के साथ ही केंद्र से लिए कर्ज 20 हजार करोड रुपये की ब्याज वसूली तीन साल के लिए बंद कर दी जाए। चुनाव तक ममता कितनी चीजें मांग लेंगी, कुछ भी कहना मुश्किल है। अच्छा मुलायम भी ममता से पीछे नहीं, भारी भरकम पैकेज तो उन्हें भी चाहिए। अब वित्तमंत्री को देखना है कि वो रायसीना हिल पहुंचने के लिए सरकारी खजाने में सेंध लगाते हैं या नहीं।
खैर बड़ा सवाल ये है कि क्या मुखर्जी से जो उम्मीदें सोनिया गांधी को हैं, वो पूरी होंगी ? जबकि सबको पता है कि प्रणव दा कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता रहे हैं, सच कहूं तो मनमोहन सिंह के बजाए प्रवण दा को ही प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था। पर कहते हैं ना कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व नरसिम्हा राव ने जिस तरह गांधी परिवार को उन्हीं के घर में ही समेट कर रख दिया था, उसके बाद सोनिया कभी भी प्रणव को प्रधानमंत्री नहीं बना सकतीं थीं। उन्हें तलाश थी ऐसे आदमी की जिसके शरीर में शरीर की सबसे जरूरी हड्डी यानि रीढ़ की हड्डी ना हो। इसके लिए उन्होंने मनमोहन सिंह का चयन किया, और मैं दाद देता हूं सोनिया गांधी का कि उनका चयन बिल्कुल गलत नहीं था, मनमोहन से वफादार कोई और हो ही नहीं सकता था। बहरहाल कुछ भी हो, पर एक टीस दादा के मन में तो है ही, कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने से एक साजिश के तहत रोका गया। इसीलिए शायद उन्होंने रायसीना हिल के लिए हामी भर दी होगी, क्योंकि 7 आरसीआर तो उन्हें कांग्रेस भेजने वाली नहीं। अब राहुल गांधी इसके लिए लगभग तैयार हैं, दादा ने सोचा कि कल के छोकरे के अधीन काम करने से तो अच्छा है कि राष्ट्रपति ही बन जाएं। 
            
चलते-चलते

राष्ट्रपति चुनाव को ममता और मुलायम ने जितना गंदा नहीं किया, उससे ज्यादा गंदा कर दिया पूर्व स्पीकर पीए संगमा ने। वैसे तो सब जानते हैं कि चुनाव कोई भी हो, वहां जाति पाति की बात होती ही है। ए पी जे अबुल कलाम भी राष्ट्रपति इसलिए नहीं बने थे कि वो बहुत ज्यादा काबिल थे, बल्कि वो मुसलमान थे, ये उनके पक्ष में गया था। लेकिन ये बात खुलकर किसी ने कही नहीं थी। लेकिन संगमा को क्या हो गया है, ये पढे लिखे हैं, काफी समय तक सक्रिय राजनीति में रहे हैं और यहां दिल्ली में खुलकर कह रहे हैं कि एक बार आदिवासी को भी राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। चलो भाई आदिवासी को ही बनाते हैं, तो ऐसा नहीं है ना का आप ही 24 कैरेट के आदिवासी हैं। बहुत सारे आदिवासी नेता हैं, जो इस पद के काबिल है। लेकिन इन्होंने जिस तरह से छुटभैये नेता की तरह उम्मीदवार बनने के लिए नेताओं को चौखटें चाटी उसके बाद तो इन्हें राष्टपति तो दूर राष्टपति भवन में क्लर्क बनाना भी गलत होगा। इनके चक्कर में इनकी बेटी आगाथा जो एनसीपी के कोटे से केंद्र में राज्यमंत्री है, उसे भी पार्टी की खरी खोटी सुननी पड़ गई।  

5 comments:

  1. रोजनामचा में आपका पूरा सच.......आधा नही !
    सही विश्लेषण !
    मुबारक !

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  2. परदे कि ओट में छुपी कड़वी बदसूरत सच्चाई को आपने सटीक तरीके से उजागर किया है .ये शर्मनाक है कि देश के सबसे उच्च पद के लिए इस तरह सौदेबाजी हो रही है . नेताओं कि पद पैसे कि लालसा जिस तरह उजागर हो रही है ये स्पष्ट संकेत है कि वो खुद भी जानते हैं कि उनके दिन अब पूरे हो रहे है और जाते जाते जितना लूट सके उससे अपना घर भरना कहते हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए ये सौदेबाजी निस्संदेह शर्मनाक है.

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  3. राजनीति की नई चाल ,नई बाते ...आपके ब्लॉग पर ही पढ़ने को मिलती हैं ...
    बहुत सही लिखा हैं आपने ..

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  4. नहीं सर मुझे नहीं लगता कि दादा को प्रधान मंत्री बनने से रोका गया है। कहीं ऐसा न हो कि अचानक हमारे वर्तमान प्रध्नामंत्री जी को राष्ट्रपति पद पर प्रोन्नति दे दी जाए। हो सकता है मैं गलत होऊं उन पर यह बात मैंने पापा से भी कही है।

    सादर

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    1. जल्दी टाइप करने से वर्तनी की त्रुटियाँ हो गयी हैं कृपया उन्हें नज़रअंदाज़ कर दें।

      सादर

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