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ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगें .............. अब क्या हुआ ? |
नीतीश कुमार की ये तस्वीर गोधरा दंगे के बाद की है। एक सार्वजनिक मंच पर नीतीश ने सिर्फ नरेन्द्र मोदी के हाथ में हाथ ही नहीं डाला, बल्कि जनता के सामने हाथ ऊंचा कर अपनी दोस्ती का भी इजहार कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस तस्वीर के बाद नीतीश कुमार के बारे में कुछ कहना-लिखना ही बेमानी है, पर मेरी कोशिश है कि उन्हें जरा पुरानी बातें भी याद करा दूं। प्रसंगवश ये बताना जरूरी है कि गुजरात दंगे की शुरुआत गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 डिब्बे में आग लगाने से हुई, जिसमें सवार 59 कार सेवकों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात के हालात बेकाबू हो गए और जगह-जगह दंगे फसाद में बड़ी संख्या में एक खास वर्ग के लोग मारे गए। सभ्यसमाज में किसी से भी आप बात करें वो यही कहेगा कि दंगे नहीं होने चाहिए थे, मेरा भी यही मानना है कि वो दंगा गुजरात के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। अब नीतीश कुमार की बात कर ली जाए। गुजरात में जब दंगा हुआ उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसमें नीतीश कुमार रेलमंत्री थे। दंगे की शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने से हुई, जिसमें 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया। ट्रेन में ये हादसा हुआ था, ऐसे में अगर नीतीश कुमार में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो उन्हें तुरंत रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। खैर, ट्रेन में हुए हादसे की प्रतिक्रिया हुई और गुजरात में दंगा भड़क गया। बड़ी संख्या में एक ही वर्ग के लोग मारे गए। मोदी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठे, आरोप यहां तक लगा कि उन्होंने जानबूझ कर दंगा रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। मामला अदालत में है, फैसला होगा, तब देखा जाएगा।
गुजरात दंगे से सिर्फ गुजरात ही नहीं पूरा देश सिहर गया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात पहुंचे और उन्होंने मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया। सच तो ये है कि वाजपेयी मोदी को मुख्यमंत्री के पद से ही हटाना चाहते थे, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की वजह से उन्हें नहीं हटाया जा सका। आज वही आडवाणी नीतीश कुमार के लिए धर्मनिरपेक्ष हैं। जिस आडवाणी की रथयात्रा से देश भर में माहौल खराब हुआ और अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई, देश के अलग अलग हिस्सों में दंगे हुए, जिसमें हजारों लोग मारे गए। आज वो आडवाणी बिहार के मुख्यमंत्री के आदर्श है। खैर ये उनका व्यक्तिगत मामला है। मैं सीधा सवाल नीतीश से करना चाहता हूं। बताइये नीतीश जी, मेरे ख्याल से जब आप रेलमंत्री थे तो बालिग रहे ही होंगे, इतनी समझ जरूर होगी कि अल्पसंख्यकों के साथ बुरा हुआ है। उस वक्त आप खामोश क्यों थे ? आपने उस दौरान केंद्र की सरकार पर ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया कि मुख्यमंत्री को तुरंत बर्खास्त किया जाए ? आपने उस वक्त गुजरात जाकर क्या अल्पसंख्यकों के घाव पर मरहम लगाने की कोई कोशिश की ? मुझे पता है आप कोई जवाब नहीं देंगें। जवाब भी मैं ही दे देता हूं, आपको कुर्सी बहुत प्यारी थी, इसीलिए आप रेलमंत्री भी बने रहे और दंगे को लेकर आंख पर पट्टी भी बांधे रहे।
मैं समझता हूं कि ये तस्वीर आपको नीतीश कुमार का असली चेहरा दिखाने के लिेए काफी है। क्योंकि गुजरात दंगे के बाद नीतीश हमेशा मोदी के साथ बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे हैं। दोनों की खूब बातें होती रही हैं, खूब हालचाल होते रहे हैं। लेकिन सिर्फ मुझे ही नहीं लगता, बल्कि बिहार के लोगों का भी मानना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश में " अहम् " आ गया है। वो अब खुद को मोदी से बड़ा आईकान समझने लगे। लेकिन नीतीश कुमार भूल गए कि आज राजनीतिक स्थिति यह है कि जिस बिहार के वो मुख्यमंत्री हैं, उसी बिहार में नरेन्द्र मोदी के पक्ष में एक मजबूत ग्रुप तैयार हो चुका है, जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार जब मोदी के खिलाफ जहर उगलते हैं तो इससे इन्हें काफी तकलीफ भी होती है। यही वजह है कि बिहार का एक बड़ा तबका आज नीतीश से चिढ़ने लगा है। नीतीश को ये बात पता है कि अब बिहार की राजनीति में दो ध्रुव है। एक पिछड़ों की जमात है और दूसरा अगड़ों की जमात है। यादव को छोड़ कर पिछड़ों और अगड़ों का बड़ा तबका आज नरेन्द्र मोदी के नाम की जय-जयकार कर रहा है। सच बताऊं मुझे लगता है कि नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य में काफी मुश्किल होने वाली है, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सेना के मिग-21 के उस लड़ाकू उड़ान जैसी है, जो अकसर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, जिसमे बेचारे तीरंदाज पायलटों को भी जान गवानी पड़ जाती है।
कुछ दिन पहले हुए महराजगंज लोकसभा उप चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को लगभग डेढ लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा। नीतीश की समझ में क्यों नहीं आया कि अब उनका असली चेहरा बिहार की जनता के सामने आ चुका है। दरअसल विधानसभा चुनाव में जो कामयाबी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को मिली, उसे ये अपनी जीत समझने लगे। जबकि सच्चाई ये थी कि लोग लालू और राबड़ी की सरकार से लोग इतने तंग थे कि वो बदलाव चाहते थे। बस उन्होंने इस गंठबंधन को मौका दे दिया। आज तो नीतीश पर भी तरह-तरह के गंभीर आरोप हैं। उन पर भी उंगली उठने लगी है। नीतीश सिर्फ अपनी ही पार्टी के नहीं बल्कि दूसरे दलों के भी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भ्रष्ट मानते हैं। लेकिन अब बिहार की जनता उनसे पूछ रही है कि भ्रष्ट नौकरशाह एन के सिंह और भ्रष्ट उद्योगपति किंग महेन्द्रा को राज्यसभा में उन्होंने क्यों भेजा? इतना ही नहीं उन्होंने अपने स्वजातीय नौकरशाह जो प्राइवेट सेक्रटरी था, उसे किस नैतिकता के साथ राज्यसभा में भेजा? इन सबके बाद भी जब नीतीश कुमार ईमानदारी की बात करते हैं तो बिहार में लोग हैरान रह जाते हैं। लोकसभा के उप चुनाव में हार इन तमाम गंदगी का ही नतीजा है।
अच्छा गली-मोहल्ले से गुजरने के दौरान कई बार आपको कंचा खेलते बच्चे दिखाई पड़ते हैं, जो साथ में खेलते भी है, फिर भी एक दूसरे को मां-बहन की गाली देते रहते हैं। आज जब जेडीयू की ओर से बयान आया कि वो दंगाई के साथ नहीं रह सकते, तो सच मे गली मोहल्ले में कंचा खेलते हुए और आपस में गाली गलौच करने वाले उन्हीं बच्चों की याद आ गई। मैं चाहता हूं कि नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता की अपनी परिभाषा सार्वजनिक करें, जिससे देश की जनता ये समझ सके कि आडवाणी किस तरह धर्मनिरपेक्ष हैं और नीतीश कुमार कैसे साम्प्रदायिक हैं। सच कहूं तो नीतीश कुमार का बनावटी चेहरा यह है कि एक तरफ वो नरेन्द्र मोदी को दंगाई कहते हैं और दूसरी तरफ भाजपा के साथ सत्ता सुख भी लूट रहे हैं। अगर नरेन्द्र मोदी दंगाई हैं और भाजपा उन्हें लगातार प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की राह आसान कर रही है, तो फिर भाजपा से अलग क्यों नहीं हो जाते ? इसमे इतना सोच विचार क्यों ? नीतीश कुमार एक साथ धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का जो खेल-खेल रहे हैं, उस पर जनता की नजर अब कैसे नहीं होगी?
मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के विरोध में उतरने की जरूरत क्या थी? लगता तो ये है कि नीतीश कुमार पर अहंकार और खुशफहमी भारी पड़ गई है। बिहार को संभालने के बजाए वो देश संभालने का ख्वाब देखने लगे हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नीतीश कुमार मुसलमानों की टोपी और गमछा पहन कर मोदी को दंगाई कहने से भी नहीं रूके। मैं जानना चाहता हूं कि क्या धर्मनिरेपक्ष होने और दिखने के लिए टोपी और गमछा ओड़ना जरूरी है? भाई अगर मुसलमान इतने से भी प्रभावित नहीं हुए तो क्या आने वाले समय में जेडीयू अपने चुनावी घोषणा पत्र में "खतना" को तो अनिवार्य नहीं कर देंगी ? सच ये है कि जेडीयू की ताकत बिहार में भाजपा के साथ मिलने के कारण बढ़ी है। भाजपा ने लालू से मुक्ति के लिए अपने हित जेडीयू के लिए कुर्बान कर दिया। सबको पता है कि जेडीयू के पास कार्यकर्ता कम नेता ज्यादा हैं। जमीनी स्तर पर लालू से मुकाबले के लिए जेडीयू या नीतीश कुमार का कोई नेटवर्क नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता ही जमीनी स्तर पर लालू को चुनौती देने के लिए खडे रहते हैं। भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक मोदी के तीखे विरोध और नीतीश कुमार द्वारा मुस्लिम टोपी और गमछा पहनने की वजह से उनसे नाराज हैं और उनका कड़ा विरोध भी कर रहे हैं, उपचुनाव में हार इसकी एक बड़ी वजह है।
बहरहाल अब बीजेपी में नरेन्द्र मोदी का नाम बहुत आगे बढ़ चुका है, इतना आगे कि वहां से पीछे हटना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। जेडीयू को समझ लेना चाहिए कि जब मोदी का विरोध करने वाले आडवाणी को पार्टी और संघ ने दरकिनार कर दिया तो जेडीयू की भला क्या हैसियत है। ये देखते हुए भी नीतीश कुमार नूरा कुश्ती का खेल खेल रहे हैं, ये भी बिहार की जनता बखूबी समझ रही है। मैं पहले भी कहता रहा हूं आज भी कह रहा हूं कि अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति मे आगे बढ़ने से रोकना किसी के लिए आसान नहीं है। अगर जेडीयू इस मुद्दे पर बीजेपी से अलग रास्ते पर चलती है तो ये उसके लिए भी आसान नहीं होगा, मुझे तो लगता है कि इसका फायदा भी बीजेपी को होगा। बहरहाल अभी 48 घंटे का इंतजार बाकी है, बीजेपी की अंतिम कोशिश है कि गठबंधन बना रहे, लेकिन ये आसान नहीं है। जो हालात हैं उसे देखकर तो मैं यही कहूंगा कि जो लोग जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव और नीतीश कुमार से गठबंधन ना तोड़ने की भीख मांग रहे हैं वो बीजेपी, संघ और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। वैसे भविष्य तय करेगा, लेकिन इस मुद्दे पर कही जेडीयू ही टूट जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
नोट: - मित्रों ! मेरा दूसरा ब्लाग TV स्टेशन है। यहां मैं न्यूज चैनलों और मनोरंजक चैनलों की बात करता हूं। मेरी कोशिश होती है कि आपको पर्दे के पीछे की भी हकीकत पता चलती रहे। मुझे " TV स्टेशन " ब्लाग पर भी आपका स्नेह और आशीर्वाद चाहिए।
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