अड़तालिस घंटे के बाद नेट और टीवी से रूबरू हो पाया हूं। एक खबर मुझे बहुत परेशान कर रही है। ये खबर है उत्तर प्रदेश की। आपको पता ही है कि वहां की मुख्यमंत्री मायावती ने इस प्रदेश को वैसे ही बदरंग कर इसका चेहरा बिगाड़ दिया है। अब निर्वाचन आयोग का एक फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा है।
दरअसल मुख्यमंत्री मायावती ने सूबे भर में अंबेडकर पार्क के नाम पर मनमानी की है। लखनऊ और नोएडा में तो कई एकड में पार्क बनाने में कई करोड रुपये खर्च किए गए हैं। मायावती ने इन पार्कों में दलित नेताओं की मूर्तियां तो लगवाई ही, पार्टी का चुनाव निशान हाथी की भी हजारों मूर्तियां पार्क में लगा दी गईं। अब चुनाव में इसे दूसरे दलों ने मुद्दा बना लिया है। उनका कहना है कि ये पार्क सरकारी पैसे से बने हैं और इसमें खुद मायावती, उनकी पार्टी के संस्थापक कांशीराम, भीमराव अंबेडकर, बाबा ज्योतिबाफुले समेत तमाम नेताओं की मूर्ति तो है ही, पार्टी का चुनाव निशान हाथी की मूर्ति भी एक दो नहीं हजारो की संख्या मे लगा दी गई है। जाहिर है इसका चुनाव पर असर पडे़गा।
निर्वाचन आयोग ने इस शिकायत की सुनवाई में बहुत ही गैरजिम्मेदाराना निर्णय दिया है। उनका कहना है कि पूरे प्रदेश में जहां कहीं भी पार्क या सरकारी परिसर में ऐसी मूर्तियां हैं उन्हें चुनाव तक ढक दिया जाए। अब देखिए ना इन पार्कों में हजारों करोड रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके हैं। सिर्फ अस्थाई रुप से इसे ढकने पर लगभग पांच करोड रुपये खर्च होने का अनुमान बताया जा रहा है। जनवरी में ढकने के बाद इसे मार्च में हटा भी दिया जाना है, ऐसे में सरकारी खजाने से पांच करोड रुपये खर्च करने को कत्तई जायज नहीं ठहराया जा सकता। इन पार्कों को देखने से ही साफ पता चलता है कि इसके पीछे मुख्यमंत्रीं मायावती की मंशा कत्तई साफ नहीं रही है। ऐसे में सजा तो मिलनी ही चाहिए, लेकिन सवाल ये है कि सजा किसे मिलनी चाहिए ? जाहिर है सजा मुख्यमंत्री को मिलनी चाहिए थी, लेकिन जो सजा निर्वाचन आयोग ने सुनाई है कि इसे चुनाव तक ढक दिया जाए, ये सजा तो आम जनता को दी गई है। क्योंकि सरकारी खजाने में हमारे और आपके ही टैक्स का पैसा है।
मुझे लगता है कि आयोग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। चूंकि आयोग ने इन मूर्तियों और हाथी को ढकने का आदेश दिया है, इससे इतना तो साफ है कि निर्वाचन आयोग मायावती को चुनाव आचार संहिता तोडने और चुनाव में गलत तरीका अपनाने का जिम्मेदार तो मानता है। ऐसे में आयोग को चाहिए कि वो बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का चुनाव निशान बदल दे। सही कारण होने पर चुनाव निशान बदले जाने का प्रावधान भी है। अगर आयोग चुनाव निशान नहीं बदलता है तो उसे बीएसपी को ये फरमान सुनाना चाहिए कि वो अपने पैसे से इन मूर्तियों को ढकने का काम करे। वैसे भी अगर कोई उम्मीदवार किसी दीवार पर नारे लिखवाता है तो उस उम्मीदवार को ही अपने खर्चे पर उसे साफ करने का आदेश दिया जाता है। अगर आचार संहिता में इसका प्रावधान भी है, फिर मायावती पर इसे क्यों नहीं लागू किया जा रहा है ?
yahi to asli rajniti hai...
ReplyDeleteसहमत आपसे।
ReplyDeleteवैसे सरकार मूलभूत जरूरतों के बजाय इन गैर जरूरी कामों पर करोडों रूपए बरबाद करती है, इस पर रोक लगाने की दिशा में पहले काम होना चाहिए.....