Saturday, April 27, 2013

गांव गया था, गांव से भागा !

अच्छा एक बात बताइये, आप वाकई कुछ अच्छा पढ़ने के मूड मे हैं। अगर हैं तो तीन मिनट का समय देना होगा आपको। आपको आज अपने दोस्तों की गैरजरूरी रचना पर वाह वाह करके उन्हें ओबलाइज करने के बजाए इस रचना की खुलकर सराहना करनी होगी। माफ कीजिएगा, ये मेरी रचना नहीं है, मैं तो सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन आपके सामने परोसने की कोशिश कर रहा हूं। आइये स्व. कैलाश गौतम को पूरे मन से पढिए, फिर पूरे दिन आप उनकी इसी रचना को गुनगुनाते रहेंगे। 

गाँव गया था,
गाँव से भागा ।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
सरकारी स्कीम देखकर
बालू में से क्रीम देखकर
देह बनाती टीम देखकर
हवा में उड़ता भीम देखकर
सौ-सौ नीम हक़ीम देखकर
गिरवी राम-रहीम देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए धनी का रंग देखकर
रंग हुआ बदरंग देखकर
बातचीत का ढंग देखकर
कुएँ-कुएँ में भंग देखकर
झूठी शान उमंग देखकर
पुलिस चोर के संग देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
बिना टिकट बारात देखकर
टाट देखकर भात देखकर
वही ढाक के पात देखकर
पोखर में नवजात देखकर
पड़ी पेट पर लात देखकर
मैं अपनी औकात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए नए हथियार देखकर
लहू-लहू त्योहार देखकर
झूठ की जै-जैकार देखकर
सच पर पड़ती मार देखकर
भगतिन का शृंगार देखकर
गिरी व्यास की लार देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
मुठ्ठी में कानून देखकर
किचकिच दोनों जून देखकर
सिर पर चढ़ा ज़ुनून देखकर
गंजे को नाख़ून देखकर
उज़बक अफ़लातून देखकर
पंडित का सैलून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

स्व. कैलाश गौतम

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. आपकी कविता गांव की सही दर्शन कराती है..... आभार.

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  3. आज गाँव की स्थिति यही है,,,उम्दा प्रस्तुति !!!

    Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

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  4. गाँव की वर्त्तमान स्थिति का सुन्दर चित्रण!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
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  5. बहुत सुन्दर चित्रण महेंद्र जी
    शहर और गाँव के हालात आज एक जैसे लगते हैं .........लेकिन गाँव से भाग आने का रास्ता खुला है ..........बहुत सुन्दर रचना आपकी ..............

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