Saturday, May 11, 2013

बस ! अब बक- बक ना करो मां ...

काफी दिनों से मां की तबियत ठीक नहीं है, वो पास के मेडिकल स्टोर से दवा मंगा-मंगा कर किसी तरह अपने को ठीक दिखाई देने की कोशिश करती रही। चूंकि बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर है, उसकी जिम्मेदारी इतनी ज्यादा है कि घर के लिए उसके पास वक्त ही नहीं है। बेटे की व्यस्तता को मां देखती है कि उसके पास ना खाने की फुर्सत और ना ही आराम का कोई वक्त। ऐसे में मां को लगा कि जब दवा से तबियत ठीक है तो काहे को वो बेटे को अपनी तबियत खराब बताकर उसे मुश्किल में डाले। लेकिन अब उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी। मां को भी लग रहा था कि ऐसे काफी दिन नहीं चल सकता, किसी अच्छे डाक्टर को दिखाकर ही दवा लेना होगा। रोज-रोज ऐसे ही दवा मंगाकर खाना ठीक भी तो नहीं है। मां ने सोचा कि 12 मई को रविवार है, बेटे के आफिस की छुट्टी होगी, वो घर पर ही रहेगा। उसी दिन उसे बताऊंगी और उसके साथ ही डा. मल्होत्रा के पास चली जाऊंगी। वैसे भी 12 को "मदर्स डे" है तो बेटे को मां की सेवा करके अच्छा लगेगा। मदर्स डे के दिन आखिर बेटे को मां की सेवा करने का अवसर मिल जाए तो भला इससे बड़ी क्या बात हो सकती है।


आज मां की नींद सुबह ही खुल गई, वो स्नान, ध्यान और पूजा पाठ करके बेटे के सोकर उठने का इंतजार करने लगी। सुबह 10 बजने तक मां तीन बार उसके कमरे में झांक आई कि वो उठा या नहीं। चूंकि बेटा गहरी नींद में था, लिहाजा मां ने उसे उठाया नहीं। 11 बजे वो सोकर उठा और बाथरूम चला गया, वहां से आने के बाद चाय पी और उसके बाद वो अपने कमरे में लैपटाप लेकर बैठ गया। मां को अटपटा लगा कि आज तो बेटे ने "मदर्स डे" भी विश नहीं किया, भला इतना जरूरी क्या काम कर रहा है। मां की आंख में आंसू आ गए, उसे लगा कि क्या अब बेटा इतना बिजी हो गया है कि उसके पास मेरे लिए इतना वक्त भी नहीं है।


खैर वो बेटे के कमरे गई और बोली बेटा दो मिनट बात करनी है। बेटे ने मां की ओर देखे बगैर कहा, हां बोलो मां ! बेटा मैं देखती हूं कि तुम इतने बिजी रहते हो कि अपनी तबियत तक तुझसे नहीं बता पाई। मेरी तबियत ठीक नहीं है, हो सके तो आज मुझे डाक्टर के पास ले चल। मां का इतना कहना था कि बेटा एक दम से बिफर गया, बोला मां तू मुझे एक दिन भी घर पर नहीं देख सकती। तुम्हें पता है ना कि आज "मदर्स डे" है, अब तक फेसबुक पर सभी फ्रैंड्स के स्टेट्स अपडेट हो चुके होंगे, मैं वैसे ही कितना लेट हो चुका हूं। क्या सोचेंगे लोग मेरे बारे में कि मैं मां को बिल्कुल प्यार ही नहीं करता हूं, तुम जाओ आराम करो, आज मेरे पास बिल्कुल टाइम नहीं है। अभी मैं अपना स्टेटस अपडेट करूंगा, फिर दूसरों के फेसबुक वाल पर मुझे कमेंट भी करना है। दोस्तों के फेसबुक वाल पर जाकर उनकी मां को विश नहीं किया तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे ?
ठीक है ना, कल आफिस जाकर मैं ड्राईवर को वापस भेज दूंगा वो तुम्हें डाक्टर के पास ले जाएगा। बस ! अब बक- बक मत करो ! 



( ये कहानी हिंदी में जरूर है, पर हिंदुस्तान की नहीं है, मुझे नहीं लगता है कि हिंदुस्तान के किसी कोने में ऐसा बेटा होगा !) 







  

39 comments:

  1. ऐसे बेटे सभी जगह होते हैं। या शायद नहीं भी होते।

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    1. जी ये तो है।

      सभी मां को मेरा प्रणाम

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  2. ऐसे बेटे आज हिन्दुस्तान में आपको लगभग हर घर में मिल जाएँगे ....खास कर मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले ...कुछ किस्से तो हमने खुद अपने सामने देखे हैं

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    1. सहमत हूं आपकी बात से.

      सभी मां को मेरा प्रणाम

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  3. mother's day ka adhunikikaran ...karaari baat kah di aapne ...

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    1. जी ये बात तो है..



      सभी मां को मेरा प्रणाम

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  4. आदरणीय सर जी आपने जिस तथ्य को इतनी सुन्दरता से उकेरा है उस हेतु आपको बारम्बार बधाई, अक्सर ऐसी धुत्कार माँ को बेटे करते हैं. आदरणीय माँ जब पास होती है तो बेटों को कदर नहीं होती, अरे उनसे पूंछो जिनकी माँ नहीं होती. माँ के न होने का एहसास क्या होता है माँ क्या होती है कितनी खास होती है उन्हें क्या मालुम.
    सभी माँ को कोटि कोटि नमन माँ को नतमस्तक प्रणाम.

    सभी माँ को सादर समर्पित एक दोहा.
    तू मेरा भगवान है, तू मेरा संसार ।
    तेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।।


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    1. मैं इस बात से बिल्कुल सहमत हूं कि मां की कीमत उनसे पूछो जिनकी मां आज नहीं है।

      ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
      मां ने आखे खोल दी घर में उजाला हो गया।

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  5. यह एक कड़वा सच है जो समाज मे दिख रहा है। माँ के प्रति जो प्रेम फेसबुक पर प्रदर्शित किया जा रहा है यदि वही प्रेम वास्तव मे दिखता तो वृद्धाश्रम नहीं होते।
    और आपका कहना गलत है की यह हिंदुस्तान मे नहीं होता। मैंने ऐसे सैकड़ो उदाहरण देखे है।

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    1. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।
      बहुत बहुत आभार

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  6. उम्दा लेख. कड़वा सच.

    और ये बस माँ के लिए ही नहीं है.

    आज कल तो जैसे चलन बन गया है की फेसबुक पर जा कर लिख लो सारा कम हो गया. असल दुनिया बिलकुल विपरीत कार्य करते हैं लोग (हम लोग)

    संतोष

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  7. आज के जीवन में ऊपरी दिखावा बहुत बढ़ता जा रहा है,अंदर का खोखलापन उसी से ढाँकने की कोशिश की जाती है-केवल माँ के लिये नहीं सभी क्षेत्रों में- बनावटी अभिव्यक्ति ने अंतरात्मा की आवाज़ दबा दी है.

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    1. जी बिल्कुल सही कहा आपने, सहमत हूं।
      आभार

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  8. मैं तो कहूँगी हमारी संस्कृति ऐसी नहीं है हिन्दुस्तान के बेटे माँ के सेवा में सबसे आगे है .थोड़े अपवाद हर जगह होते है... न.

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    1. हां ये कह सकती हैं। सहमत हूं
      आभार

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  9. नमस्कार !
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के चर्चा मंच पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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  10. nahi ab hamen aise bete kai gharon me mil jayenge mahendra jee ......wastvikta ka katu chitran .....par ye bat bhi utna hi sach hai ki bahut sari mayen bhi ma ki garima ka uchit nirwaah nahi kar pa rahi hain ....

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  11. एक सच यह भी है ...

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  12. सोचता हूं काश ये कहानी सच न हो ...

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    1. जी, सही कहा आपने
      ऐसा होना तो नहीं ही चाहिए..

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  13. एक कड़ुवे सच को कहती है ये कहानी ..... चाहते तो नहीं हैं कि ऐसा हो पर घर घर में इस कहानी के पात्र मिल जाएँगे ।

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    1. जी, बिल्कुल सहमत हूं आपसे..
      आभार

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  14. कडुआ सत्य.
    मदर्स डे,फेस बुक ही मनाएअ जाते हैं.
    काशः,मां के,पसीने से भीगे आंचल से कोई अपना मुंह पोंछ कर
    मदर्स डे मनाए----

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    1. बिल्कुल सही,
      सच्चाई के धरातल बात कडुवी जरूर लगती है, पर हकीकत यही है।
      बहुत बहुत आभार

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  15. मार्मिक और भावपूर्ण रचना
    माँ को समर्पित
    बधाई

    आग्रह है पढ़े "अम्मा"
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  16. शायद सब जगह सब तरह के लोग होते हैं ........बहुत अच्छी रचना है ....

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  17. महेंद्र जी ..कहानी छोटी ज़रूर है ..पर इतनी गहरी और मर्मस्पर्शी बात कह दी आपने जो अंतरात्मा को झिझोड़ गई ... बहुत सार्थक रचना!

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    1. जी, हां कहानी छोटी है।
      दरअसल मैं सिर्फ एक संदेश देना चाहता था, मुझे लगता है मैं अपनी बात आप तक पहुंचाने में कामयाब रहा हूं।

      आपको कहानी पसंद आई,
      आपका बहुत बहुत आभार।

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