देश के अलग-अलग हिस्सों में नक्सली हमला होता रहा है, इसमें सुरक्षा बलों के साथ ही बड़ी संख्या में आम आदमी भी अपनी जान गवां चुके हैं। देखा जा रहा था कि नक्सलियों ने आज तक कभी भी किसी राजनीतिक को अपना निशाना नहीं बनाया था। इसलिए जब रात में खबर आई कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने कांग्रेस की "परिवर्तन यात्रा" को निशाना बनाकर हमला किया और इसमें कुछ बड़े नेताओं के साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। ये खबर सभी के लिए चौंकाने वाली थी। इस खबर की जानकारी जैसे ही मुख्यमंत्री रमन सिंह को हुई, उन्होंने अपनी विकास यात्रा रद्द की और मुख्यालय रायपुर वापस आ गए। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री से बात की, उन्हें भरोसा दिलाया कि केंद्र से हर संभव मदद की जाएगी। सोनिया गांधी ने इस हमले को लोकतंत्र पर हमला बताया, बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने हमले की निंदा की और कहाकि इस पर दलगत राजनीति ऊपर उठकर ठोस पहल करने की जरूरत है। कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी रात डेढ़ बजे ही रायपुर पहुंच कर घायलों से मुलाकात की और उनकी परेशानी को बांटने की कोशिश की। इन सबके बीच कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी को यहां भी सियासत सूझ रही थी और वो हमले की खबर मिलते ही सबसे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा। इतना ही नहीं देर रात में ही वो कुछ लोगों के साथ राजभवन पहुंच गए और राज्यपाल से कहा कि दो मिनट में इस सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश केंद्र को भेजें।
वैसे तो नक्सलियों का ये हमला कल शाम लगभग साढ़े चार बजे के करीब हुआ, लेकिन न्यूज चैनलों पर ये खबर करीब साढ़े आठ बजे आई। इस दौरान लगभग सभी न्यूज चैनल बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन पर राशन पानी लेकर चढ़े हुए थे। खबरिया चैनलों का एजेंडा था कि श्रीनिवासन का इस्तीफा लेकर रहेंगे, जबकि श्रीनिवासन को बीसीसीआई में अपने चंपू सदस्यों पर पूरा भरोसा है कि वो किसी भी सूरत में उनका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं, तो भला वो इस्तीफा क्यों दें ? खैर नक्सली हमले के बाद अगर किसी ने सबसे ज्यादा राहत की सांस ली होगी तो वो हैं, एन श्रीनिवासन ! वजह और कुछ नहीं, बस कई दिन से खबरिया चैनल टीवी स्क्रिन पर उनकी तस्वीर लगाकर रोजाना नए-नए आरोप जड़ते जा रहे थे। लेकिन इस हमले के बाद सभी टीवी स्क्रिन से उनकी तस्वीर एक झटके में उतर गई। जाहिर है उन्होंने रात में अच्छी नींद ली होगी, क्योंकि उन्हें पता है कि अब उनकी तस्वीर एक बार उतर गई है तो दोबारा चढ़ने में टाइम लगेगा।
खैर मुद्दे पर वापस आते हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले की जितनी निंदा की जाए वो कम है। अच्छा इसे किसी एक राज्य का विषय बताना हकीकत से मुंह छिपाना है। सच्चाई ये है कि आज उग्रवादियों से कहीं ज्यादा खतरनाक हो गए हैं ये नक्सली। सही तो ये है कि अगर इन्हें आतंकवादी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में इस नक्सली हमले के बाद मेरे एक पत्रकार मित्र का फोन आया, उनके तमाम मित्र उसी राज्य के निवासी हैं। बताने लगे कि यहां लगभग 30 से 40 लोगों की मौत हुई है, ये बहुत बड़ी घटना है। मैं भी अपने संपर्कों को कुरेदने लगा। इस दौरान चैनलों की खबरें भी देखता रहा। सबसे ज्यादा हैरानी मुझे पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की करतूतों को देखकर हुई। मैं देख रहा हूं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो लगातार मुख्यमंत्री रमन सिंह से बात कर उन्हें पूरी मदद का भरोसा दिला रहे हैं। मुख्यमंत्री केबिनेट की बैठक कर पुलिस अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं कि घायलों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए। जो नेता नक्सलियों के कब्जे में हैं, उन्हें हर हाल में छुड़ाने की कोशिश की जाए। सोनिया गांधी समेत तमाम कांग्रेस के नेता संयम से बोल रहे थे, उन्हें पता है कि ये समय राजनीति करने का नहीं है। लेकिन इन सबके उलट अजित जोगी रात में सियासत की गोटी फिट करने में जुट गए।
चैनलों पर जोगी की जो हालत रात में देगी गई, उससे लगा कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कितने बेचैन और भूखे हैं। उन्हें ये फिक्र बिल्कुल नहीं थी कि इस नक्सली हमले में उनकी पार्टी के घायल साथियों की तबियत कैसी है, उनका इलाज कैसा चल रहा है। जंगल में फंसे लोगों को कैसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया जाए ? उन्होंने तो मीडिया को देखते ही सबसे पहले मुख्यमंत्री रमन सिंह का इस्तीफा मांग लिया। कहाकि अब रमन सिंह सूबे का मुख्यमंत्री बने रहने का कोई हक नहीं है। इल्जाम लगाया कि उन्होंने अपनी विकास यात्रा में पूरी सुरक्षा झोंक दी, जबकि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में कोई सुरक्षा नहीं दी गई। जोगी कि इस बात में दम हो सकता है कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था ना रही हो, लेकिन मैं जोगी कि जल्दबाजी से आहत था। उन्होंने रात में ही तीन बातें कहीं ।
1. रमन सिंह तत्काल इस्तीफा दें, ना दें तो बर्खास्त किया जाए।
2. परिवर्तन यात्रा जारी रहेगी, हम डरने वाले नहीं है।
3. रविवार को छत्तीसगढ़ बंद रहेगा।
भाई जोगी जी आपसे सवाल है, आप रमन सरकार को बर्खास्त करने की मांग को लेकर रात में ही राजभवन पहुंच गए। कैमरे पर भावुक होने का "ड्रामा" भी करते रहे। लेकिन आप पार्टी की यात्रा को लेकर इतने ही गंभीर थे, तो आज आपको सुबह ही वहां पहुंच कर यात्रा की कमान संभाल लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा आपने नहीं किया। क्या सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें भर करते हैं या उस पर अमल करने का प्रयास भी। वैसे मैं भी देखना चाहता था कि आज आप परिवर्तन यात्रा लेकर आगे बढ़ते हैं तो आपके साथ आपकी पार्टी खड़ी होती भी है या नहीं। लेकिन आप खुद ही गायब हो गए। छत्तीसगढ़ को बंद करने आह्वान किया है, उसके लिए भी आप ने बस चैनलों पर बोलकर चुप हो गए। अच्छा कल रात तक तो आप बहुत बक-बक कर रहे थे, लेकिन रविवार को आपकी चुप्पी सूबे की जनता को समझ में नहीं आ रही है। वैसे जोगी जी आप काफी समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, कहा तो यहां तक जा रहा है, नक्सलियों के आप से भी बहुत अच्छे संबंध हैं। फिर आप तो हमले के घंटे भर पहले इस काफिले में खुद भी मौजूद थे, अचानक आप वहां से वापस आ गए। बहरहाल जोगी की जल्दबाजी देखकर जरूरी तो ये भी है उनकी भूमिका की भी अच्छी तरह से जांच होनी चाहिए।
वैसे हमले की वजह जो पहली नजर में सामने आ रही है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता महेन्द्र कर्मा जो छत्तीसगढ में नेता विपक्ष भी थे। उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की, इसके बाद भी वो नक्सलियों के निशाने पर थे। माना जा रहा है कि ये हमला भी महेन्द्र कर्मा की ही हत्या के लिए था, लेकिन हमले में और लोग भी मारे गए। नक्सलियों ने जिस तरह से उनके शरीर पर पूरी मैग्जीन खाली कर दी है, इससे उनके गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल जोगी की जल्दबादी ने राजनीतिक बेशर्मी को उजागर कर दिया।
आपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई अरुण जी
ReplyDeleteये नक्सली हमला ,उनका गुस्सा उनका रोष क्या ये भी एक राजनीति चाल के तहत है ?????? क्या ये राजनीति हमेशा ही ऐसी ही गन्दी रहेगी ?
ReplyDeleteप्रश्न बहुत है ...पर उत्तर अभी तक कोई नहीं
सही बात है...
ReplyDeleteलाशों पर राजनितिक दांवपेंच खेलना तो हमारी राजनितिक पार्टियों के लिए सबसे पसंदीदा काम रह गया है !!
ReplyDeleteसटीक आलेख !!
बिल्कुल सही कहा आपने..
Deleteदलगत राजनीति से हटकर गर प्रयास करें तो नक्सलियों से निजात पाई जा सकती है
ReplyDeleteसियासत करें को...
भगवान ही मालिक है
जी ये बात तो सही है, लेकिन सच तो ये है कि नक्सल की समस्या अब बेकाबू होती जा रही है। इन्हें विदेशों से फंडिग और हथियार मिल रहे हैं। भारत सरकार भी जानती है, लेकिन इनसे निपटने की इच्छाशक्ति ही नहीं दिखा रही है केंद्र की सरकार ।
Deleteआपका आभार
आपकी बात बिलकुल सही है...
ReplyDeleteशुक्रिया प्रशांत
Deleteसही कहा आपने सामयिक अच्चा लेख
ReplyDeleteआभार,
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