मैच फिक्सिंग की बात क्रिकेटर विनोद कांबली तब उठा रहे हैं जब ऐसे ही मामले में पाकिस्तान के दो बडे़ खिलाडी लंदन की जेल में सजा काट रहे हैं । उन पर स्पाट फिक्सिंग का आरोप साबित हो चुका है । बड़ा सवाल ये है कि आखिर कांबली ने इस वक्त ही ये सवाल क्यों उठाया । क्या वो ये साबित करना चाहते हैं कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को ही दागी कहना गलत है, सच ये है कि फिक्सिंग में भारत समेत कई और देश भी शामिल हैं।
चलिए पहले इस मैच के बारे में बात कर लेते हैं । दरअसल ये बात 1996 विश्वकप की है, जब कोलकता में सेमीफाइनल मैच हो रहा था और इस मैच मे भारत का मुकाबला श्रीलंका से था । कांबली का कहना है कि टास के पहले भारतीय टीम की मीटिंग मे फैसला हुआ था कि अगर हम टास जीतते हैं तो पहले बल्लेबाजी करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि अजहरुद्दीन ने टास जीतने के बाद भी पहले फिल्डिंग करने का फैसला किया । इसी आधार पर विनोद कांबली का आरोप है कि ये मैच कप्तान ने फिक्स किया था ।
हालाकि इस मामले में टीम में शामिल रहे दो बड़े खिलाड़ी वेंकटपति राजू और संजय मांजरेकर ने साफ कर दिया है कि टीम की मीटिंग में ही पहले फिल्डिंग का फैसला हुआ था। इतना ही नहीं उस दौरान टीम के मैनेजर रहे अजित वाडेकर ने भी अजहरुद्दीन को क्लीन चिट्ट देते हुए साफ किया है कि अजहरुद्ददीन के सभी फैसले में ना सिर्फ वो, बल्कि पूरी टीम शामिल थी।
खैर सारे विवादों को अलग कर दें. मेरा सीधा सवाल विनोद कांबली से है। दोस्त 1996 में विश्वकप के सेमीफाइनल जैसे महत्वपूर्ण मैच में आपको अपने ही कप्तान की भूमिका संदिग्ध लगी, पर आपने इस मामले में उस समय सवाल नहीं उठाया। हो सकता है कि आपको डर हो कि आप टीम से ड्राप कर दिए जाएंगे, लेकिन डियर कांबली देश से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता और आपने ये खुलासा अगर उसी समय किया होता तो आज आप देश की नजरों में बहुत ऊंचे रहते, लेकिन आज आप देश की नजरों से गिर गए हैं।
अगर ये कहा जाए कि आपने देश के साथ गद्दारी की तो कोई गलत नहीं होगा, क्योंकि क्रिकेट को देशवासी एक धर्म की तरह मानते हैं और क्रिकेटर को भगवान समझते हैं। लेकिन ये सब जानकर भी कांबली ने बिना ठोस सुबूत के पूरे देश को धोखे में रखा। ऐसे मे क्यों ने कांबली के खिलाफ ही सख्त कार्रवाई की जानी चाहिेए।
खैर ऐसी बात कह कर कांबली खुद ही बेनकाब हो गए हैं, क्योंकि देश को आज उन पर बिल्कुल भरोसा नहीं रहा। मुझे तो लगता है कि सुर्खियों मे आने के लिए कांबली ने ये शार्टकट रास्ता चुना है और इसके लिए अगर किसी मीडिया ग्रुप ने उनकी मदद की हो, तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता । खैर आज आपका चेहरा क्रिकेट के कलंक के रूप में देखा जा रहा है।
चलिए पहले इस मैच के बारे में बात कर लेते हैं । दरअसल ये बात 1996 विश्वकप की है, जब कोलकता में सेमीफाइनल मैच हो रहा था और इस मैच मे भारत का मुकाबला श्रीलंका से था । कांबली का कहना है कि टास के पहले भारतीय टीम की मीटिंग मे फैसला हुआ था कि अगर हम टास जीतते हैं तो पहले बल्लेबाजी करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि अजहरुद्दीन ने टास जीतने के बाद भी पहले फिल्डिंग करने का फैसला किया । इसी आधार पर विनोद कांबली का आरोप है कि ये मैच कप्तान ने फिक्स किया था ।
हालाकि इस मामले में टीम में शामिल रहे दो बड़े खिलाड़ी वेंकटपति राजू और संजय मांजरेकर ने साफ कर दिया है कि टीम की मीटिंग में ही पहले फिल्डिंग का फैसला हुआ था। इतना ही नहीं उस दौरान टीम के मैनेजर रहे अजित वाडेकर ने भी अजहरुद्दीन को क्लीन चिट्ट देते हुए साफ किया है कि अजहरुद्ददीन के सभी फैसले में ना सिर्फ वो, बल्कि पूरी टीम शामिल थी।
खैर सारे विवादों को अलग कर दें. मेरा सीधा सवाल विनोद कांबली से है। दोस्त 1996 में विश्वकप के सेमीफाइनल जैसे महत्वपूर्ण मैच में आपको अपने ही कप्तान की भूमिका संदिग्ध लगी, पर आपने इस मामले में उस समय सवाल नहीं उठाया। हो सकता है कि आपको डर हो कि आप टीम से ड्राप कर दिए जाएंगे, लेकिन डियर कांबली देश से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता और आपने ये खुलासा अगर उसी समय किया होता तो आज आप देश की नजरों में बहुत ऊंचे रहते, लेकिन आज आप देश की नजरों से गिर गए हैं।
अगर ये कहा जाए कि आपने देश के साथ गद्दारी की तो कोई गलत नहीं होगा, क्योंकि क्रिकेट को देशवासी एक धर्म की तरह मानते हैं और क्रिकेटर को भगवान समझते हैं। लेकिन ये सब जानकर भी कांबली ने बिना ठोस सुबूत के पूरे देश को धोखे में रखा। ऐसे मे क्यों ने कांबली के खिलाफ ही सख्त कार्रवाई की जानी चाहिेए।
खैर ऐसी बात कह कर कांबली खुद ही बेनकाब हो गए हैं, क्योंकि देश को आज उन पर बिल्कुल भरोसा नहीं रहा। मुझे तो लगता है कि सुर्खियों मे आने के लिए कांबली ने ये शार्टकट रास्ता चुना है और इसके लिए अगर किसी मीडिया ग्रुप ने उनकी मदद की हो, तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता । खैर आज आपका चेहरा क्रिकेट के कलंक के रूप में देखा जा रहा है।
मित्रों सिर्फ 24 घंटे मे मुझे यहां 130 हिट तो मिले, पर आप लोगों ने यहां अपना विचार नहीं रखा। मैं कोशिश करुंगा कि इस ब्लाग को और बेहतर करुं, पर इसके लिए आपका सुझाव जरूरी है..
ReplyDeleteहमें शुरू से ही यह विचार दिया गया था कि अंतर्राष्ट्रीय खेलों में देश की प्रतिष्ठा दाँव पर होती है और कि खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं. अब यह जग ज़ाहिर है कि जिन खेलों में खूब पैसा है वहाँ खिलाड़ी देश-वेश के लिए नहीं खेलते हैं. देश के लिए खेलने वाले आईपीएल में थक कर टेस्ट मैच खेलने आ जाते हैं.
ReplyDeleteअज़हर की कप्तानी पहले भी सवालों के घेरे में रही है. दूसरे, अगर 15 साल बाद भी कुछ तथ्य सामने आते हैं तो उन्हें देखना चाहिए क्योंकि क्रिकेट कोई साफ-सुथरा खेल नहीं है. यह जग ज़ाहिर हो चुका है जिसका आपने भी ऊपर उल्लेख किया है.
कांबली द्वारा इस तरह का बयान इतने सालों बाद देना अटपटा तो लग
ReplyDeleteही रहा है , साथ ही कई सवाल भी एक साथ उठ खड़े होते हैं ..
फिक्सिंग और सट्टा बाजार की गिर
ReplyDeleteफ्त में तो हैं क्रिकेट.... पर कांबली का इस तरह 15 साल बाद इस वि
षय पर बोलना उनका मीडिया अटेंशन हासिल करने की कोशिश से ज्यादा नहीं लगता.....
कांबली और सचिन दोनों ने स्कूल में एक साथ क्रिकेट खेला था... शायद उस वक्त कांबली सचिन से अच्छा क्रिकेट खेलते थे पर सचिन अब तक मैदान में हैं और कांबली किसी टीवी चैनल में बैठकर मैच के बारे में बात करने तक ही सीमित हैं.... ऐसा क्यों.... यह बताने की जरूरत नहीं.... यही अंतर है दोनों में.....
आपने सही लिखा कांबली गिर चुके हैं लोगों की नजरों से।
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे.
ReplyDeleteओह! तो यह बात है.
ReplyDeleteखिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे.
क्या हर बिल्ली ऐसी ही होती है,महेंद्र जी.
आपका लेख महत्वपूर्ण जानकारियों से अवगत कराता है.
सुर्ख़ियों में रहना अधिकाँश लोग पसंद करते हैं.
बिरला ही कोई होता है जो सच सोचे,सच कहे
और सच पर ही चले.
आपसे उम्मीद और आशाएँ है जी.
मैं तो अभी नाकामयाब हूँ अभी तक.