आइये मित्रों आज मीडिया के कोढ़ की भी बात कर ली जाए । वैसे आप सबने समाचार पत्रों में पढा ही होगा, पिछले दिनों अंग्रेजी के एक न्यूज चैनल पर एक जज ने 100 करोड़ रुपये की मानहानि का दावा किया था, और कोर्ट ने माना कि दावा सही है और न्यूज चैनल पर 100 करोड़ रुपये भुगतान करने का आदेश दिया गया। हाईकोर्ट से होता हुआ ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, यहां कोर्ट ने कहा कि पहले 20 करोड़ रुपये आप जमा करें और 80 करोड़ का बांड दें उसके बाद इस मामले की आगे सुनवाई होगी ।
अच्छा आप ये भी जान लें कि मामला क्या था । एक पीएफ घोटाले के मामले में कुछ जजों के ही खिलाफ न्यायालय में मामला चल रहा था । कोर्ट ने जजों को इस मामले में दोषी ठहराया। इस पर जिस जज को दोषी ठहराया गया था, उसी से मिलते जुलते नाम के एक जज की तस्वीर अंग्रेजी चैनल ने दिखा दिया। हालाकि गलती का अहसास होने पर इस चैनल ने प्राइम टाइम में माफी भी मांगी, पर कोर्ट में ये मामला अभी चल रहा है और 100 करोड़ रुपये चैनल को देने हैं।
ये तो हुई एक पुरानी घटना, जिसके जरिए ये बताने की कोशिश कर रहा हूं कि हम कितने दबाव मे काम करते है, लेकिन हमारी चमड़ी बहुत मोटी है । हम गल्तियों से सबक नहीं लेते । ये सच में चिंता का विषय है कि आखिर हम अपनी गल्तियों से सबक कब सीखेंगे। मैं मानता हूं कि हम जिस दबाव में काम करते हैं, उसमें गल्तियां स्वाभाविक हैं, पर गल्तियों की पुनरावृत्ति भला कैसे हो सकती है, और अगर होती है तो जिम्मेदारी तय क्यों नहीं होनी चाहिए।
हुआ क्या । अब आपको ये बताता हूं । पूर्व आईपीएस किरन बेदी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं । पिछले दिनों एक मामले का खुलासा हुआ कि उन्होंने हवाई जहाज के किराए में हेरा फेरी की । चलिए इस मामले में हम ये कह सकते हैं कि ये भ्रष्टाचार का मामला भले ना हो, लेकिन अनैतिक तो है ना । आप सामाजिक संस्था चलातीं हैं और सामाजिक संस्थाओं से किराए के नाम पर गलत वसूली कर रही हैं । खैर नया मामला अगर सही है तो किरन बेदी के मुंह से ईमानदारी की बात सुनना भी बेईमानी होगी । अच्छा अब नए मामले की चर्चा कर दूं.. जिसमें कहा गया कि किरन बेदी ने अपनी संस्था के नाम पर दान प्राप्त किया और कहा कि इससे वे पुलिसकर्मियों के साथ ही सैन्य कर्मियों के बच्चों को कम्प्यूटर की ट्रेनिंग और कम्प्यूटर उपलब्ध कराएंगी । लेकिन बाद में पता चला कि किरन बेदी ने बच्चों से फीस वसूल किया।
ये मामला कोर्ट के सामने आया तो कोर्ट ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पाया कि किरन बेदी के खिलाफ मामला बनता है। कोर्ट ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए। अब इसमें ऐसा क्या हो गया कि टीम अन्ना के पसीने छूट गए । अगर न्यायालय के सामने एक मामला आया है तो जांच तो होनी ही चाहिए ना । पुलिस रिपोर्ट दर्ज किए बगैर जांच नहीं कर सकती, तो टीम अन्ना ने इतना हाय तौबा क्यों मचाया।
खैर मामला किसी के खिलाफ भी दर्ज होता है तो आरोपी परेशान होता ही है, वो चाहता है कि खुद को साफ सुथरा बताए। टीम अन्ना भी मीडिया के सामने आई और अपनी बात कहने की कोशिश की । लेकिन मित्रों आज मैने टीवी पर देखा कि डुपट्टा ओढ़कर सांसदों की ऐसी तैसी करने वाली किरन की बोलती बंद थी । अरविंद केजरीवाल के पास किरन बेदी को साफ सुथरा बताने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं था, वो ये कहते रहे कि कामनवेल्थ गेम के मामले में इतने सुबूत दिए, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया, पर किरन बेदी के खिलाफ दर्ज हो गया । भाई अरविंद जी पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज किया है, मुझे वो आदेश दिखाएं जिसमें कोर्ट ने आदेश दिया हो और पुलिस ने मामला दर्ज नही किया ।
हां.. आप सोच रहे होंगे कि हम तो बात मीडिया की कर रहे थे, ये कहां की बात होने लगी । मेरा मानना है कि मीडिया से लोगों की बहुत उम्मीदें जुड़ी हैं, हमें बराबरी का व्यवहार करना ही होगा । मेरा सवाल है सभी न्यूज चैनल से कि कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज होने पर क्या हम आरोपी और उसके गिरोह को ये छूट देते हैं कि वो प्रेस कान्फ्रेंस करें और जज के फैसले को गलत बताए और हम उसका लाइव टेलीकास्ट करें । अगर हमने सफाई देने का ये मौका किसी और को उपलब्ध नहीं कराया तो किरन बेदी को क्यों ? क्यों सभी न्यूज चैनल ने सफाई देने के लिए बुलाई गई प्रेस कान्फ्रेंस में ओवी लगाया । केजरीवाल ने जब जज के आदेश पर उंगली उठाई तो क्यों उसे लाइव दिखाया गया । एनबीए बार बार कहता है कि हम खुद ही अपने काम की समीक्षा करेंगे, क्या एनबीए ने इस मामले में कोई समीक्षा की, अगर नहीं तो क्यों नहीं इस मामले में जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
देखिए ये नियम है कि जब आप सामने वाले पर एक उंगली उठाते हैं तो तीन उंगली आपकी तरफ होती है । इसलिए ईमानदारी की बात उसे ही करनी चाहिए जिसने सामाजिक जीवन में कभी बेईमानी ना की हो । कभी अपने बच्चे के लिए दूसरे के बच्चों का हक ना छीना हो । जनलोकपाल बिल का मामला अब बहुत आगे बढ चुका है, लेकिन जो लोग इसके लिए आवाज उठा रहे हैं , अगर उनमें नैतिकता है तो उन्हें इस आंदोलन से खुद को अलग कर लेना चाहिए। क्योंकि जनता में एक संदेश जा रहा है कि टीम अन्ना से ईमानदारी छवि के लोग धीरे धीरे अलग हो रहे है । जस्टिस संतोष हेगडे और राजेन्द्र इसके उदाहरण हैं।
बहरहाल अब ये साफ होता जा रहा है कि कहीं ना कहीं मीडिया अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से नहीं निभा रही है, इस पर नियंत्रण की जरूरत है। अब ये नियंत्रण किस तरह से हो, इस पर जरूर विचार होना चाहिए । सरकारी नियंत्रण के खिलाफ तो मैं भी हूं, पर मुझे लगता है कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया को और ताकतवर बनाकर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को इसके दायरे में लाना ही होगा ।
मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी समझे, यह आवश्यक है. मीडिया को ही देखना होगा कि कब कोई स्टोरी आगे बढ़ कर किसी की बदनामी का कारण बनने लगती है. मीडिया को भूलना नहीं चाहिए कि लोग अब जानते हैं कि मीडिया उसी का गुणगान करता है जिसके यहाँ से उसे विज्ञापन या पैसा मिलता हैं. मीडिया की अपनी छवि पर कालिख पुत रही है. अन्ना के आंदोलन के मामले में उसकी बदली हुई भूमिका अपनी कहानी खुद कहती है. कहाँ गया मीडिया का सरोकार?
ReplyDeleteरीवास्तव जी आज - कल मिडिया अपनी विस्वसनीयता खोटी चली जा रही है , उसे बस पैसे और सरकार की चापलूसी से मतलब है ! सार्थक समाचार के आभाव है !
ReplyDeletebahut badiya...ab khud ki jimmedari samjhna itana aasan bhi to nahi...sundar vishleshan.
ReplyDeleteमीडिया का काम घटनाक्रम को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना है पर मौजूदा समय में मीडिया जज की भूमिका में आ गई है.... फैसले देने लगी है..... इस बदलते स्वरूप ने मीडिया की विश्वसनीयता को कम कर दिया है....
ReplyDeleteचिंतनीय विषय।
आप औरों से अलग हैं , बधाई !
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