Monday, December 5, 2011

क्यों बदल गए अन्ना ...

सी साल लगभग सात महीने पहले जनलोकपाल बिल के लिए इस आंदोलन की शुरुआत हुई । जंतर मंतर पर अन्ना आमरण अनशन पर बैठे । इस आंदोलन को देश की आम जनता के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी समर्थन दिया । दो  दिन में जंतर मंतर उमडी भीड़ को देखकर टीम अन्ना बेलगाम हो गई और उन्होंने मंच से ही नेताओं की खबर लेनी शुरू कर दी । नेताओं को भ्रष्ट  बताया गया और देश के बिगड़े हालात के लिए जिम्मेदार भी । हालाकि मैं भी ये मानता हूं देश की बर्बादी के लिए राजनीतिक  दल  ही जिम्मेदार हैं, वो चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी । कोई किसी से कम नहीं है, जिसे जब मौका मिला वो हाथ साफ करने से पीछे नहीं रहा। 

चलिए कोई बात नहीं गाली सुनने के बाद भी नेताओं को ये लग रहा था कि अन्ना का आंदोलन देश को सही रास्ते पर ले जाने के लिए है, इसलिए वो इस आंदोलन को पार्टी लाइन से हटकर समर्थन देने के लिए जंतर मंतर आना चाहते थे, लेकिन अन्ना ने साफ इनकार कर दिया कि उन्हें नेताओं का समर्थन नहीं चाहिए । फिर भी उत्साह में कुछ नेताओं ने जंतर मंतर की ओर का रुख किया तो अन्ना के समर्थकों ने नेताओं को वहां  से खदेड़ दिया । बहरहाल सरकार  के आश्वासन के बाद अन्ना ने अनशन तोड़ दिया । इसके कुछ ही महीने  बाद रामलीला मैदान में अनशन के दौरान भी नेताओं पर सीधा हमला किया गया ।

लेकिन अचानक  अन्ना की समझदारी में इजाफा कैसे हो गया ?  जिन नेताओं को मंचो से खुलेआम अन्ना चोर और भ्रष्ट बता रहे थे, अचानक  उनके आगे नतमस्तक क्यों हो गए ?  सभी राजनीतिक दलों के नेताओं  के घर जाकर उन्होंने मत्था टेका ।  यहां तक लालू यादव जैसे नेता से मिले, जबकि लालू पर  कितने गंभीर  भ्रष्ट्राचार के आरोप हैं । अगर  अन्ना को लोगों के घर ही जाना था, तो  नेताओं को जंतर मंतर आने से क्यों मना किया ?
खैर ये तो रही पुरानी बातें, अब 11 दिसंबर को  एक दिन का  सांकेतिक धरना जंतर मंतर पर प्रस्तावित है ।

 अन्ना सभी नेताओं को वहां आने का न्यौता दे रहे हैं । एक तरफ वो आर पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं नेताओं से जंतर मंतर   पर बहस की चुनौती भी दे रहे हैं । मुझे नहीं समझ में आ रहा है क्या अन्ना और उनकी  टीम को नहीं पता था कि ये नेता ही कानून बनाएंगे । मित्रों सब पता था । सच ये है कि  जनता का समर्थन देख  टीम अन्ना हत्थे से बाहर हो गई। सबने खुद को राष्ट्रीय नेता मान लिया और बड़ी बड़ी छोड़ने लगे। 

अन्ना लोगों की शराब छुडाने लगे । कहा कि शराब पीने वालों  को बांधकर डंडे  से पीटो । अन्ना जी आप तो दिल्ली में  27 दिसंबर से बैठ रहे हो ना अनशन पर । रामलीला मैदान में शराब पीने वालों पर पाबंदी लगी तो आप  और टेट वाले ही आमने सामने बैठे  दिखेंगे । गांव  और देश  में अंतर है अन्ना । 

दूसरे  सदस्य प्रशांत भूषण कश्मीर जैसे गंभीर मसले को सुलझाने लग गए । खैर जिस जनता ने उन्हें समर्थन दिया था, उसी जनता ने उन पर हमला कर ये बताने की कोशिश की कि ज्यादा उड़ना ठीक नहीं  है।
अरविंद केजरीवाल अपनी टीम के साथ चुनाव मैदान में कांग्रेस का विरोध करने सड़क पर आ गए । हास्यास्पद ये कि अपने गृहनगर हिसार में प्रचार किया । यहां उन्हें  पहले ही पता था कि कांग्रेस  उम्मीदवार तीसरे नंबर पर है, हारना तय है तो   हराने का श्रेय लेने पहुंच गए । 

टीम के ईमानदार लोग धीरे धीरे कटने लगे हैं इस आंदोलन से, चाहे वो  मैग्सेस अवार्ड विजेता राजेन्द्र जी हों या फिर पूर्व जस्टिस संतोष हेगड़े । बहरहाल अब नेताओं की  जरूरत अन्ना  को महसूस होने लगी है,  उन्हें  समझ में आ गया है कि नेताओं के बगैर उनका मकसद पूरा नहीं  हो सकता, इसलिए अब रुख में नरमी आई है । पर अब नेताओं को टीम अन्ना पर भरोसा नहीं है, क्योंकि टीम अन्ना भी तो दूध की धुली नहीं है ।  





2 comments:

  1. पत्रकारिता से आप जुड़े है ...और इसका लाभ हम सबको मिलता है ......चाहे वो आपका ब्लॉग आधा सच से हो या रोजनाम .......यहाँ पूर्ण जानकारी समते सब कुछ पढने को मिलता हैं ......

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  2. अन्‍ना एक नेक मकसद के लिए काम कर रहे हैं, पर समय समय पर अन्‍ना ने देश के संविधान से भी खुद को बडा बताने का काम किया है....
    देखें, के अन्‍ना और बाबा.... बोलने से पहले सोचो तो.....

    अन्‍ना देश से, इसके संविधान से, इसकी अखंडता से, इसकी पवित्रता से बडा कोई नहीं...... आप भी नहीं.........

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