मुझे नहीं पता कि सच क्या है, लेकिन भगवाधारियों के बारे में समय समय पर जिस तरह की बाते सामने आती हैं, वो इस समाज की बहुत ही भयावह तस्वीर सामने रखती हैं। मेरा मानना है कि आज भी संत समाज पर दुनिया यकीन करती है। यही वजह है कि कथा कीर्तन में हजारों लोग जमा होते हैं। पर एक के बाद एक ऐसे ही भगवाधारियों के बारे में कथा कहानी सामने आएगी, तो निश्चित ही संत समाज को भी कटघरे में खड़ा होना पडेगा। जब भी संतो पर ऐसे गंभीर आरोप लगते हैं, मेरे सामने स्वामी नित्यानंद की वो सीडी घूमने लगती है, जिसमें वो दक्षिण भारत की एक अभिनेत्री के साथ अश्लील हरकत करते हुए कैद हुए थे।
आमतौर पर कोई महिला ऐसे संगीन आरोप नहीं लगाती है, फिर साध्वी तो यहां तक कह रही हैं कि वो गर्भवती हो गई थीं। उन्हें खाने के साथ कोई नशीला पदार्थ दिया गया, उसके बाद स्वामी ने उनके साथ कुकर्म किया। बहरहाल एक महिला और संत से जुड़ा ये गंभीर मामला है, इसलिए अच्छा होगा कि साध्वी ने जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उसे ही आप सभी के सामने रखा जाए। वैसे भी इस मामले में पुलिस की जांच चल रही है। देखिए साध्वी ने जो पुलिस में रिपोर्द दर्ज कराई है वो ही शिकायती पत्र...
प्रार्थना पत्र
सेवामें
श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय
शाहजहांपुर।
विषय:- शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक शोषण कर जीवन बर्बाद करने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कार्रवाई करबाने के संबंध में।
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महोदय, निवेदन है कि प्रार्थिनी साध्वी चिदर्पिता गौतम हाल निवासिनी एफ-14, फेस-2 श्रीराम नगर कालोनी बदायूं उत्तर प्रदेश, दिल्ली की मूल निवासिनी है। पारिवारिक पृष्ठ भूमि व व्यक्तिगत रुचि आध्यात्मिक और राजनैतिक होने के कारण परिवार में आते-जाते रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती निवासी मुमुक्षु आश्रम जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान लेने को प्रेरित करने लगे। उनके उत्कृष्ट विचारों का प्रार्थिनी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वर्ष 2००1 से उनके संपर्क में आने के बाद उनके दिल्ली स्थित सांसद निवास में रह कर राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने लगी। इस दौरान उनके साथ कई कमेटी दौरे और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर गई, जिससे प्रार्थिनी को वास्तव में एक अलग अनुभव व ज्ञान मिला। वर्ष 2००4 तक वह गुरु की ही तरह प्रार्थिनी को सिखाते रहे और प्रार्थिनी भी उन्हें संरक्षक मानते हुए शिष्या की ही तरह सीखती रही, उन पर प्रार्थिनी को भाई या पिता से भी अधिक विश्वास हो गया, तभी वर्ष 2००4 में वह प्रार्थिनी को जप-तप और धार्मिक अनुष्ठान कराने के लिए पे्ररित कर हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में ले आये। यहां उन्होंने ज्ञान बर्धक बातें सिखाई भीं, लेकिन अचानक प्रार्थिनी को उनकी नियत में परिवर्तन दिखने लगा, जिससे प्रार्थिनी किसी तरह से निकलकर भागने की मन ही मन युक्ति सोच ही रही थी कि तभी वह वर्ष 2००5 में अपने व्यक्तिगत अंगरक्षकों के बल पर अपनी गाड़ी में कैद कर शाहजहाँपुर स्थित मुमुक्षु आश्रम ले आये और आश्रम के अंदर बने दिव्य धाम के नाम से बुलाए जाने वाले अपने निवास में लाकर बंद कर दिया। यहाँ कई दिनों तक प्रार्थिनी पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने का दबाव बनाया गया, जिसका प्रार्थिनी ने विरोध किया, तो उन्होंने अज्ञात असलाहधारी लोगों की निगरानी में दिव्य धाम में ही कैद कर दिया, पर प्रार्थिनी शारीरिक सम्बन्ध बनाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थी, लेकिन अपने रसोईये के साथ साजिश कर खाने में किसी तरह का पदार्थ मिलबा कर उन्होंने प्रार्थिनी को ग्रहण करा दिया, जिससे प्रार्थिनी शक्तिहीन हो गयी। उसी रात शराब के नशे में धुत्त स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी पर टूट पड़े। विरोध करने के बावजूद वह प्रार्थिनी के साथ बलात्कार करने में कामयाब हो गये, लेकिन उनके दिव्य धाम स्थित निवास में कैद होने के कारण प्रार्थिनी कुछ नहीं कर पायी। बलात्कार करते समय उन्होंने वीडियो फिल्म बना ली थी, जिसे दिखा कर बदनाम करने व जान से मारने की धमकी भी दी, तभी दहशत के चलते उनके कुकृत्य की किसी से चर्चा तक नहीं कर पाई। उस एक दिन के बाद वह जब मन में आता, तब प्रार्थिनी का शारीरिक व मानसिक शोषण करते। यह सिलसिला अनवरत सालों-साल चलता रहा और प्रार्थिनी नरक से भी बदतर वह जिंदगी मजबूरी में इसलिए जीती रही क्योंकि चौबीस घंटे उनके द्वारा छोड़े गये असलाहधारी लोगों की निगरानी में रहती थी। इस बीच दिव्य धाम से बाहर भी गयी तो उनके लोग साथ ही जाते थे, जिन्हें उनका स्पष्ट निर्देश रहता था कि किसी से बात तक नहीं करने देनी है और न ही कहीं प्रार्थिनी की इच्छानुसार ले जाना है। शहर में रहते हुए लंबे समय बाद प्रार्थिनी को लगने लगा कि अब उसकी जिंदगी यही है तो स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को मन से पति रूप में स्वीकार करते हुए प्रार्थिनी भी उसी जिंदगी में खुश रहने का प्रयास करने लगी। महोदय इसी बीच प्रार्थिनी दो बार गर्भवती भी हुई। प्रार्थिनी बच्चे को जन्म देना चाहती थी, लेकिन स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी की इच्छा यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि उन्हें संत समाज बहिष्कृत कर देगा, जिससे सार्वजनिक तौर पर मृत्यु ही हो जायेगी। ऐसा होने से पहले या तो वह आत्म हत्या कर लेंगे या फिर प्रार्थिनी को मार देंगे। इतने पर भी प्रार्थिनी गर्भपात कराने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने अपने ऊँचे राजनैतिक कद का दुरुपयोग करते हुए पहले बरेली स्थित अज्ञात अस्पताल में और दूसरी बार लखनऊ स्थित अज्ञात अस्पताल में जबरन गर्भपात करा दिया, जिससे दोनों बार प्रार्थिनी को बेहद शारीरिक और मानसिक कष्ट हुआ और महीनों बिस्तर पर पड़ी रही। उस समय प्रार्थिनी की देखभाल करने वाला तक कोई नहीं था। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी को अपने लोगों की निगरानी में छोडक़र हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में जाकर रहने लगे। प्रार्थिनी कुछ समय बाद स्वत: ही स्वस्थ हो गयी और स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के वापस आने पर दोनों बार प्रार्थिनी ने जबरन कराये गये गर्भपात का जवाब माँगा तो उन्होंने प्रार्थिनी को दोनों बार बुरी तरह लात-घूंसों से मारा-पीटा ही नहीं, बल्कि एक दिन गले में रस्सी का फंदा डाल कर जान से मारने का भी प्रयास किया और यह चेतावनी देकर जान बख्शी कि जीवन में पुन: किसी बात को लेकर सवाल-जवाब किया तो लाश का भी पता नहीं चलने देंगे, तो दहशत में प्रार्थिनी मौन हो गयी और डर के कारण उसी गुलामी की जिंदगी को पुन: जीने का प्रयास करने लगी। इसी तरह उनके अन्य दर्जनों बालिग, नाबालिग व विवाहित महिलाओं से नाजायज संबंध हैं।
प्रार्थिनी को सामान्य देखकर स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी को कुछ समय पश्चात मुमुक्षु आश्रम के साथ दैवी सम्पद संस्कृत महाविद्यालय का प्रबंधक व एसएस विधि महाविद्यालय में उपाध्यक्ष बनवा दिया और पुन: प्रार्थिनी का भरपूर दुरुपयोग करने लगे, क्योंकि वह प्रार्थिनी से एक बार में लगभग सौ-डेढ़ सौ कोरे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाते और उनका अपनी इच्छानुसार प्रयोग करते, जिस पर प्रार्थिनी को आशंका है कि उन्होंने हस्ताक्षरों का भी दुरुपयोग किया होगा, लेकिन प्रार्थिनी ने सभी दायित्वों का निष्ठा से निर्वहन किया। इसके साथ ही स्वयं को व्यस्त रखने व मानसिक संतुलन बनाये रखने के लिये प्रार्थिनी ने आगे की शिक्षा भी ग्रहण की। प्रार्थिनी को हालात से समझौता करते देख वर्ष 2०1० में श्री शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ का प्रधानाचार्य भी नियुक्त कर दिया गया। प्रार्थिनी मन से दायित्व का निर्वहन करने लगी थी तो अब उनके असलाहधारी लोगों की निगरानी पहले की तुलना में कम हो गयी और प्रार्थिनी मोबाईल आदि पर इच्छानुसार व्यक्तियों से बात करने लगी। इस बीच बदायूं निवासी पत्रकार बीपी गौतम और प्रार्थिनी के बीच संपर्क स्थापित हुआ। प्रकृति व व्यवहार मिलने के कारण विवाह कर लिया, जिससे स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती बेहद आक्रोशित हैं, जिसके चलते वह प्रार्थिनी को धमका रहे हैं और उसका बकाया वेतन भी नहीं दे रहे हैं।
प्रार्थिनी ने जब उनसे मोबाईल पर वेतन देने की बात कही तो काफी दिनों तक वह आश्वासन देते रहे, लेकिन बाद में स्पष्ट मना करते हुए धमकी भी देने लगे कि वह उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे और पति को सब कुछ बताकर वैवाहिक जीवन तहस-नहस करा देंगे, साथ ही चेतावनी दी कि किसी से उनके बारे में चर्चा तक की तो चाहे तुम धरती के किसी कोने में जाकर छिप जाना, छोडेंगे नहीं। महोदय स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती के पास आपराधिक प्रवृति के लोगों का भी आना-जाना है, जिससे प्रार्थिनी उनकी धमकी से बेहद डरी-सहमी है, क्योंकि वह कभी भी कुछ भी करा सकते है, इसलिए प्रार्थिनी को सुरक्षा मुहैया कराते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कड़ी कानूनी कार्रवाई करबाने की कृपा करें।
प्रार्थिनी
(साध्वी चिदर्पिता गौतम)
पत्नी श्री बीपी गौतम
निवासी-एफ-14, फेस-2
श्रीराम नगर कालोनी-बदायूं।
इस पूरी कहानी को पढ़कर ये तो साफ हो गया है कि स्वामी चिन्मयानंद साधु के बेश में एक भेड़िया है। लेकिन एक सवाल भी मन में कौंध रहा है कि शिकायत करने वाली साध्वी भी कोई दूध की धुली नहीं है। आज के जमाने में कोई नारी इतनी अवला नहीं है कि कोई साधु उसे जबरन बूांधकर रख सके। मतलब जब तक साध्वी चाहती रहीं तब तक तो वो उनकी सेवा करती रहीं और अब उन्हें ज्ञान हुआ कि वो गलत कर रही हैं तो साधु की शिकायत कर रही हैं।
ReplyDeleteआज के वक़्त और ऐसी शिकायत ....एक औरत ,एक साध्वी की ...गले से नहीं उतर रही .....सालो एक साधु की छत्र छाया में रहने वाली ...इतनी कमज़ोर तो नहीं हो सकती ..कि वो अपने लिए सालो कुछ नहीं कर पाई ....और २०१० में ही उसे अपने बारे में सोचने का मौका कैसे मिला ?????
ReplyDeleteसाध्वी का अजीब सा सच ...कुछ समझ नहीं आ रहा ....३ बार पढने के बाद भी ऐसा लग रहा है कि ...यहाँ साध्वी कहीं से भी सच्ची नहीं लग रही ...एक ओर नाटक साधु और साध्वी का ||
ReplyDeleteसत्य समझना मुश्किल है...
ReplyDeleteअंजू चौधरी जी से सहमत।
ReplyDeleteस्वामी चिन्मयानंद जहां दोषी हैं वहीं साध्वी भी कम दोषी नहीं....
सच मानने के सिवा कोई चारा ही नहीं ..कुछ प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं यह पोस्ट
ReplyDeleteमीरा बनने के चक्कर में, किस-किस ने घर न छोड़ा,
ReplyDeleteकौन-कौन कहाँ न फंसी, किस-किस ने कब है छोड़ा,
बहुत बेदर्द कहानी है, हर स्त्री की जुबानी है,
बात बहुत पुरानी है, झेली यह जिंदगानी है,
घर से बाहर कदम रखा, हर आँख ने तक के रखा,
मंसूबा सभी ने बना के रखा, महबूबा बक के कहा,
क्या बयाँ करूँ दास्ताँ, मेरी भी वही है,
मैं तो चुप ही रह गई, तुने बात कही है,
..... सियाना मस्कीनी
काम वासना का ज्वार जब आता है तो मान मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर रख देता है। इसे साधने का सबसे अच्छा उपाय गृहस्थ जीवन है। इस घटना से यही सीख मिलती है।
ReplyDeleteदोष हम किसी को देते नहीं हैं।
हरेक नर नारी अपने किए कर्मों का फल अवश्य भोगेगा।
यहां नहीं तो परलोक में भोगेगा।
न्याय तो यहां किसी के साथ होता नहीं है।
आपकी पोस्ट का चर्चा यहां है,
ReplyDeleteदेखिए :
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/12/dirty-sex.html
साध्वी ने जब हिम्मत की , तभी सवेरा !..कम से कम एक और कुकर्मी , बलात्कारी का भंडाफोड़ तो हुआ! अन्य लाखों बहिनों की रक्षा हो सकेगी ! अक्सर महिलाएं हिम्मत नहीं कर पाती है सत्य को सामने लाने का, अपमान के डर से! लेकिन जब हिम्मत कर सकें तभी सवेरा समझिये! हम उस महिला से सहानुभूति रखते हैं और कामना करते हैं की उस बेशरम और बलात्कारी और हिंसक , फर्जी-संत को फांसी से लटका दिया जाए ताकि भविष्य में सर उठाने वाले मनचले-संतों को सबक मिल सके और वे किसी स्त्री की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने से पहले अपनी बहन-बेटी के बारे में सोचें !...धर्म के नाम पर कुकृत्य बहुत हो चुका ! महिलाएं अब और नहीं ठगी जायेंगी !
ReplyDeletesachchaai kya hai bhagvaan hi jaane.apraadhi to dono hi lagte hain.koi kisi ki jindagi se bina uski marji ke itne saalon tak khilvaad nahi kar sakta.
ReplyDeletehindu dharm ka vesh nahin hai...yahan pratyek vyakti ka vivek hi uska dharm hai anpadh aur murkh log hindu dharm ke bare main tippani na karein...yahan na pustak , na guru na sagathan ,na koi sant kisi ka bhi aikadhikar nahin hai aur dekha jaya dtih sabka hai ...
ReplyDeletesach me bahut hi vidambana hai.
ReplyDeleteसच क्या है? दस वर्षों तक शोषण सहन करने के बाद आज अचानक इतना साहस? इस प्रकरण से तमाम प्रश्न उग आए हैं। मेरे प्रश्नों का यह अर्थ भी नहीं है कि दूसरा पक्ष निर्दोष है।
ReplyDelete1- रंगीन वस्त्र-धारी लोगों को साधू कहना मूर्खता है क्योंकि -"साधू ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाए;सार-सार को गही देए थोथा देए उड़ाए"।
ReplyDelete2-आर एस एस साम्राज्यवादियों का पिच्छलग्गू संगठन है और उसके नेताओं से साधुत्व की उम्मीद करना आकाश-कुसुम तोड़ना है।
3-सत्ता और आतंक के बल पर धमका कर और जबरिया साध्वी का रूप दर्शा कोमल गुप्ता को हिप्नोटाइज़ करके छली साधू के कृत्यों ने उसे भी बदनामी मे घसीट लिया है।
4-देर आयद दुरुस्त आयद के मुताबिक कोमल गुप्ता के साहस को दाद देने की बजाए भारतासना करके लोग पाखंड का ही बचाव कर रहे हैं जो निंदनीय है।
@मुझे नहीं पता कि सच क्या है, लेकिन भगवाधारियों के बारे में समय समय पर जिस तरह की बाते सामने आती हैं, वो इस समाज की बहुत ही भयावह तस्वीर सामने रखती हैं।
ReplyDeleteआदरणीय महेंद्र जी, वास्तव में साध्वी का अजीब सच कुछ समझ नहीं आ रहा और आपको भी नहीं आ रहा होगा, मात्र सनसनी फैलाने के लिए ऐसी रिपोर्टों को ब्लॉग पर प्रस्तुत करना कहाँ तक उचित है.
सच तो मुझे भी नहीं पता
ReplyDeleteमैने तो साध्वी ने जो एफआईआर लिखाई है, उसकी हू बहू कापी यहां डाली है। चूंकि मामला एक बड़े भगवाधानी नेता से जुडा है, इसलिए मामले की जानकारी सभी को होना चाहिए