Wednesday, December 7, 2011

सोचना क्या ? गंदा है पर धंधा है ...

रिटेल सेक्टर में एफडीआई को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच बना गतिरोध फिलहाल खत्म हो गया है। वैसे जिद्द पर अड़ी सरकार ने कहा कि वो इसे वापस नहीं ले रही है, बल्कि तब तक के लिए स्थगित जरूर कर रही है जब तक इस पर आम सहमति ना बन जाए। सरकार के इस कदम  को विपक्ष ने भी सराहा और संसद के दोनों सदनों में पूरे दिन शांतिपूर्ण तरीके से काम काज  शुरु हो गया।

अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण फैसला लिया सरकार ने जिसके लिए संसद की कार्यवाही नौ दिन तक बाधित रही । यानि विपक्ष के साथ ही सरकार के सहयोगी भी इस मसले पर सरकार के साथ नहीं थे, लेकिन सरकार जिद्द पर अड़ी हुई थी कि नहीं वो एफड़ीआई से पीछे नहीं हट सकते। संसद के रुख से साफ हो गया था कि बिना पीछे हटे संसद की कार्यवाही  सुचारू रूप से नहीं  चल सकती, लेकिन इस जिद्द के पीछे आखिर कौन था, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार के हाथ बंधे दिखाई दे रहे थे। फिर मेरा सवाल ये भी है कि अगर एफड़ीआई देश के लिए वाकई फायदेमंद थी तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वैसा रुख क्यों नहीं अपनाया जो न्यूक्लीयर डील के दौरान अपनाया था। उस समय प्रधानमंत्री ने सरकार को दांव पर लगा दिया था, वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। ममता की धमकी के आगे क्यों झुक गई सरकार...। 

दरअसल मुझे लगता है कि सरकार यहां वालमार्ट के दबाव में काम कर रही थी। वो वालमार्ट को दिखाना चाहती थी कि हम तो बहुत चाहते हैं कि एफडीआई को मंजूरी मिल जाए, लेकिन विरोध काफी है, और विरोध की धार वो वालमार्ट को भी दिखा रहे थे, यही वजह है कि वालमार्ट को साधने में नौ दिन लग गए। मित्रों हमारे देश में "लाइजनिंग" को मान्यता नहीं है, लेकिन दुनिया के कई देशों में लाइजनिंग को कानूनी दर्जा मिला हुआ है। जानकार बता रहे हैं कि विदेश लाइजनर पिछले दो तीन सालों से देश में डटे हुए हैं और वो नेताओं के साथ ही मंत्रियों के संपर्क में हैं। वो लाइजनिंग करने में "सबकुछ" इस्तेमाल करते हैं।

दोस्तों ये सबकुछ को समझना बहुत जरूरी है। किसी को खुश करने के लिए जितनी भी चीजें और तरीके शामिल हैं, वो सब इसमें शामिल है। मुझे लगता है कि जो कुछ मैं कहना चाहता हूं आप समझ गए होंगे। पता चला है कि लाइजनर ने  एफडीआई के लिए भारत में भी कई करोड़ रुपये खर्च किए हैं। ऐसे में अगर पहले ही सरकार एफडीआई से पीछे हट जाती तो हमारे नेता और अफसर वालमार्ट के नुमाइदों के सामने क्या मुंह दिखाते। इसलिए उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की कि हम तो चाहते हैं, लेकिन संसद में इसके लिए बहुमत नहीं है। 

अच्छा कहीं वालमार्ट के लिए लाइजनिंग करने वाले सभी मामलों  का खुलासा ना कर दें, इसलिए सरकार ने एफडीआई को वापस लेने के बजाए स्थगित किया है। यानि सरकार अभी भी वालमार्ट को ये समझाने की कोशिश करेगी कि हमने हथियार नहीं डाले हैं, हम आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे। बहरहाल पर्दे के पीछे का खेल बहुत गंदा है, पर ये भी क्या करें इनका तो धंधा है। 
 

1 comment:

  1. One things is clear that we can not prevent multinationals in retail for a long time. It is a agreement in G22. What we can do is to safeguard our industry to face the stiff competition in some reasonable way and the most important thing our government can do is to make our manufacturing sector strong and also they can make it necessary for multinationals to buy at least 50% goods from Indian manufacturing units and small scale industries.
    www.rajnishonline.blogspot.com

    ReplyDelete