Wednesday, December 21, 2011

जान देने वाले जाड़े से डर गए ...

लोकपाल बिल के मसले पर टीम अन्ना और सरकार के बीच चल रही नूरा कुश्ती जल्दी थमने वाली नहीं है। अब ये लड़ाई सड़कों पर वसूले जाने वाले टोल टैक्स की तरह हो गई है, जो अनंतकाल तक चलती रहेगी। दिल्ली से शुरू होकर ये लड़ाई अब मायानगरी यानि मुंबई पहुंच गई है। अब देखिए अन्ना जी लोकपाल के लिए जान देने की बात कर रहे थे, जाड़े से डर गए।

खैर मुझे उनकी सेहत की चिंता है, आप स्वस्थ रहें, मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। अन्ना जी दिल्ली में वाकई ठंड बहुत होती है, इसीलिए यहां लोग शाम को दो ड्रिंक्स ले लेते हैं। अब आम आदमी तो ऐसा नहीं कर सकता ना कि ठंड हो तो मुंबई खिसक ले, बेचारे दो ड्रिंक्स लेकर किसी तरह यहीं डटे रहते हैं। अच्छा हुआ आप यहां से चले गए नहीं, आप लोकपाल छोड़कर लोगों को पेड़ बांधकर पीटने में लग जाते। पता लगा कि लोकपाल मूवमेंट से 
जुडे लोग शराब छुडाने के लिए लोगों पर लाठियां भांज रहे हैं। 

अन्ना जी आज खुद को ठगा से महसूस कर रहे है, कल मैने टीवी पर उन्हें देखा, बहुत निराश लग रहे थे। दरअसल इसके लिए आप और आपकी टीम की बेअंदाजी जिम्मेदार है। लोकपाल कानून बने बगैर पूरे देश में जीत का जश्न मनाने के साथ ही देश की हर समस्या का समाधान आप लोग बताने लगे। बेअंदाजी भी ऐसी कि आम आदमी को लगने लगा कि ये लोग हत्थे से बाहर हो गए हैं। अरविंद केजरीवाल ने विभागीय बकाये का भुगतान प्रधानमंत्री को भेजा। हां भाई प्रधानमंत्री निवास पर बकाए के भुगतान करने के लिए काउंटर खुला है, कोई भी आए और यहां बकाये का भुगतान करे। प्रशांत भूषण जी कश्मीर समस्या का हल करने लगे और आप शराब पीने वालों को पेड़ से बांध कर पीटने की सलाह देने लगे। इतना ही नहीं चुनाव वाले इलाकों में जाकर एक पार्टी के खिलाफ जहर भी उगलने लगे।

अब राहुल गांधी के खिलाफ आप इसलिए आग उगलने लगे कि वो आपके गांव रालेगन सिद्धी के प्रधान से नहीं मिले। अन्ना जी जब आपने राहुल के खिलाफ जहर उगला तो मुझे हैरानी नहीं हुई, मुझे हैरानी तब हुई जब इस नौजवान ने आपकी बातों का आज तक कोई जवाब नहीं दिया। वैसे तो मेरा मानना है कि राहुल राजनीति की एबीसीडी नहीं जानता है, लेकिन उसके संस्कार की तारीफ करनी होगी। वरना किसी और नौजवान के बारे में आप टिप्पणी करके देखिए... खैर ज्यादा दूर नहीं बस वहीं राज ठाकरे को सीधे कुछ कह कर देख लें, उदाहरण वहीं मिल जाएगा। 

खैर विषयांतर हो रहा हूं। मेरा कहने के मकसद सिर्फ ये था कि अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ फोकस होकर लड़ाई लड़ते तो जनता पूरी तरह आपके साथ रहती। अब ये लड़ाई राजनीतिक हो गई है। इसमें जात धर्म की बात हो रही है। आप अनशन तुडवाने के लिए दलित और मुश्लिम बच्चियों को तलाशते हैं और मंच से इसका ऐलान कर छोटे बच्चों में जात धर्म का जहर बोते हैं। 

बहरहाल केंद्र सरकार जितनी कमजोर दिखाई दे रही थी, उसने जो लोकपाल का जो मसौदा तैयार किया है, उससे इतना तो साफ है कि वो एक सीमा के आगे नहीं झुक सकती और झुकना भी नहीं  चाहिए। प्रधानमंत्री जी देश आपको ईमानदार मानता है, भ्रष्टाचार का खात्मा कैसे हो, ये जरूर आप देखे और इस मामले में ठोस पहल जरूरी है। 

(नोट. दोनों तस्वीर खुशदीप के ब्लाग से साभार)

आप मेरे मुख्य ब्लाग आधा सच पर देख सकते हैं " बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री ... http://aadhasachonline.blogspot.com
  

5 comments:

  1. दिल्ली में इस वक़्त सच में ठण्ड तो कमाल की है ...और ऊपर से अनशन ...ठण्ड और भूख की दोहरी मार ...कौन सहेगा

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  2. लाज तो बचनी थी न साहब!

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  3. kuhase mein kuch dikhta nahi n ... jane dijiye bhai

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  4. भ्रष्‍टाचार की बात करने तक तो ठीक है पर ब्‍लैकमेल करने की हद तक जाना ये कतई उचित नहीं........ और टीम अन्‍ना यही करने लग गई है..... आखिर सबसे सर्वोपरि संसद है, कोई माने या न माने, उससे ऊपर कोई नहीं......

    अब मुख्‍य बात, ''जान देने वाले जाडे से डर गए.....'' लाख टके की बात की आपने।

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  5. सबको अपनी फिक्र खुद ही करनी होती है न .

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